द्रौपदी मुर्मू पर दांव लगा भाजपा सियासी मकसद में कामयाब

नई दिल्ली । राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग कल हो चुकी है। इस दौरान खूब क्रॉस वोटिंग हुई और तमाम विधायकों-सांसदों ने पार्टी लाइन से हटकर वोट डाला। इसमें कांग्रेस और अन्य दलों के आदिवासी विधायकों ने भी मुर्मू को समर्थन दिया है। इससे यह बात साफ हो जाती है कि द्रौपदी मुर्मू को बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार उतारकर भाजपा बिल्कुल सही दांव चला है। साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि इस दांव का सियासी फायदा आने वाले वक्त में भाजपा को मिलने वाला है। असल में भाजपा एक्सपेंशन मोड में है और नया वोट बैंक तलाश रही है। अभी तक पार्टी के पास कोई ऐसा आदिवासी चेहरा नहीं था जो देशभर में उसके पक्ष में प्रभाव पैदा कर सके। मुर्मू की राष्ट्रपति भवन में एंट्री होने के साथ भाजपा की समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए कैंपेनिंग के दौरान मैदान से जो तस्वीरें सामने आई हैं उससे भाजपा जरूर खुश होगी। छत्तीसगढ़ और झारखंड में कई घरों के सामने द्रौपदी मुर्मू की तस्वीरें देखने को मिलीं। गौरतलब है कि मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए उतारने का भाजपा का मकसद 2024 के आम चुनाव के साथ-साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में आदिवासी वोटरों को लुभाना भी रहा है। अब बात करें चुनावी गणित की तो छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी प्रभावित सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था। कांग्रेस ने शिड्यूल्ड ट्राइब्स के लिए रिजर्व 128 सीटों में से 86 पर जीत हासिल की थी। केवल गुजरात की बात करें तो 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने शिड्यूल्ड ट्राइब्स के लिए आरक्षित 27 सीटों पर भाजपा की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था। उसने यहां पर 15 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा को 9 सीटों पर जीत मिली थी। बता दें कि गुजरात में अगले दिसंबर में चुनाव होने वाले हैं वहीं, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में 2023 में चुनाव होंगे। यहां भाजपा द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी का फायदा उठाना चाहेगी। राजस्थान की बात करें तो यहां पर 25 एसटी आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 13 और भाजपा ने आठ जीती थीं। छत्तीसगढ़ में एसटी के लिए रिजर्व 29 सीटों में से कांग्रेस के खाते में 27 सीटें गई थीं। बाकी दो सीटें भाजपा ने जीती थीं। द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी के दम पर भाजपा ने विपक्षी एकता में भी सेंध लगाने में कामयाबी हासिल की। यही वजह रही कि राष्ट्रपति उम्मीदवार हो या उपराष्ट्रपति उम्मीदवार विपक्ष पूरी तरह से बिखरा नजर आया। खासतौर पर खुद को मुख्य विपक्षी दल के तौर पर देखने वाले कांग्रेस के लिए हालात ज्यादा मुश्किल रहे। बता दें कि विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार का चयन कांग्रेस नहीं, बल्कि टीएमसी और टीआरएस के सुझाव पर हुआ। वहीं उम्मीदवार की  चयन प्रक्रिया में मुख्य भूमिका एनसीपी चीफ शरद पवार ने निभाई। वोटिंग के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिरोमणि अकाली दल ने मुर्मू को समर्थन दिया। यहां तक कि टीएमसी चीफ ममता और कांग्रेस प्रवक्ता अजोय कुमार का बयान भी मुर्मू को लेकर बेहद नर्म लहजे वाला रहा।

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