हजारों साल पुरानी रोशनी! सहारनपुर की धरती से निकले प्राचीन दीपक दीपावली पर फिर चर्चा में, जानें क्या है इनका ऐतिहासिक महत्व उत्तरप्रदेश By Nayan Datt On Oct 19, 2025 देशभर में दीपावली की रात लाखों दीयों से रोशन होती है. उसी समय सहारनपुर की धरती अपने भीतर छिपी उस रोशनी को महसूस करती है, जो हजारों साल पहले यहां जल चुकी है. यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि पुरातत्व की सच्ची गवाही है. सहारनपुर की मिट्टी में मिले दीपक, जिन्होंने कभी सिंधु सभ्यता से लेकर गुर्जर प्रतिहार काल तक इस भूमि को आलोकित किया था. वह आज भी सुर्खियों में है. यह भी पढ़ें निकाह के 48 घंटे बाद ही मौत का रहस्य! सऊदी से लौटे युवक की… Oct 19, 2025 अयोध्या में दीपोत्सव का दिव्य नजारा! घाटों पर जगमगाएंगे 26… Oct 19, 2025 विरासत यूनिवर्सिटी हेरिटेज रिसर्च सेंटर, शोभित विश्वविद्यालय के कोऑर्डिनेटर राजीव उपाध्याय बताते हैं कि सहारनपुर जिले के सरसावा टीले से गुर्जर प्रतिहार काल के लगभग एक हजार साल पुराने मिट्टी के दीपक खुदाई में मिले थे. वहीं, तीतरो क्षेत्र के बरसी गांव से सिंधु सभ्यता के करीब चार हजार साल पुराने मिट्टी के दीये निकले हैं. उपाध्याय कहते हैं कि इन दीपकों का आकार और संरचना उस दौर की कलात्मकता और जीवनशैली का जीवंत दस्तावेज हैं. सहारनपुर को मिल रही नई पहचान बरसी गांव, जिसे महाभारत कालीन श्री महादेव बरसी मंदिर के लिए जाना जाता है, अब एक और पहचान पा रहा है. अब इसकी सभ्यता के दीपों की धरती के तौर पहचान बनती जा रही है. इसी क्षेत्र की यह खोज यूपी के सांस्कृतिक पुरातत्व मानचित्र पर सहारनपुर को नई पहचान दे रही है. शामली के जलालाबाद क्षेत्र में कुषाण कालीन सभ्यता के दीपक मिले हैं, जबकि सहारनपुर के गंगोह और सरसावा में उत्तर वैदिक कालीन बस्तियों के अवशेषों के साथ मिट्टी के बर्तन, देवी-देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियां और 1500 साल पुरानी मां दुर्गा की प्रतिमा भी पाई गई हैं. हजारों साल पुराने दीपक ये सब प्रमाण आज भी पुरातत्व विभाग के अभिलेखों में दर्ज हैं और धीरे-धीरे देश की प्राचीन विरासत की पंक्तियों में सहारनपुर को जोड़ते जा रहे हैं. इतिहासकारों का मानना है कि सहारनपुर कभी सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र का हिस्सा था. नदी के विलुप्त होने के बाद आर्यों ने यहीं अपने साधना स्थल बनाए और यह भूमि संस्कृति, अध्यात्म और प्रकाश की स्थायी प्रतीक बन गई. दीपावली की रात जब लोग घरों में दीये जलाते हैं, तब सहारनपुर की मिट्टी में दबे ये हजारों साल पुराने दीपक इतिहास की लौ बनकर जल उठते हैं. मानो वे यह कह रहे हों कि रोशनी का यह पर्व केवल वर्तमान नहीं, बल्कि उस परंपरा की अमर कथा है जिसे हमारे पूर्वजों ने हजारों साल पहले इस धरती पर लिखा था. Share