बिहार महागठबंधन में सीट शेयरिंग तय!पारस-सहनी के लिए कांग्रेस-RJD करेगी त्याग

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फाइनल होता नजर आ रहा. इंडिया गठबंधन की चार बैठकों के बाद सीट बंटवारे को अमलीजामा पहनाने का काम शुरू हो गया है. मुकेश सहनी की वीआईपी और पशुपति पारस की पार्टी के लिए कांग्रेस और आरजेडी त्याग करने के लिए रजामंद हो गए हैं. कांग्रेस और आरजेडी पिछली बार से कम सीटों पर चुनाव लड़ेंगी तो सीपीआई माले ज्यादा सीटों पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमाएगी.

इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर 12 जून को घटक दलों की चौथी बैठक तेजस्वी यादव के घर पर हुई थी. तेजस्वी यादव ने महागठबंधन की पार्टियों को सीटों के साथ-साथ चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नाम की सूची मांगी थी. कांग्रेस और सीपीआई माले ने उम्मीदवारों के नाम आरजेडी को नहीं बताए हैं, लेकिन सीट के नामों की फेहरिस्त जरूर सौंप दी है. इस तरह से इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे की बात आगे बढ़ती ही नहीं बल्कि फाइनल होती दिख रही है.

कांग्रेस ने आरजेडी को सौंपी अपनी फेहरिस्त

बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है. महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावारू, प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार और पार्टी विधायक दल के नेता शकील अहमद खान ने सोमवार को आरजेडी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से मुलाकात की. कांग्रेस नेताओं ने आरजेडी को अपनी सीटों की लिस्ट सौंप दी है.

कांग्रेस ने 2020 के चुनाव में जीती अपनी 19 सीटों के अलावा दूसरे नंबर पर रहने वाली 39 सीटों के नाम को शामिल किया है. साथ ही कांग्रेस ने कुछ अन्य सीटों पर चुनाव लड़ने की प्लानिंग की है, जिस पर पिछली बार लेफ्ट चुनाव लड़ी थी. पिछले चुनाव में 70 सीट पर कांग्रेस चुनाव लड़ी थी और उसकी नजर इस बार के चुनाव में भी 70 सीटों पर ही लड़ने की है, लेकिन इस बार सीट की संख्या के साथ उसका फोकस जीत वाली सीटों पर भी है. इसीलिए कांग्रेस तर्क दे रही है कि पिछली बार उसने अपनी परंपरागत सीटें छोड़ दी थी, लेकिन वो सीटें इस बार चाहिए.

पारस-सहनी के लिए कांग्रेस-RJD करेगी त्याग

बिहार में महागठबंधन के दलों के बीच सीट शेयरिंग पर बात आगे बढ़ने लगी है. 12 जून यानि गुरुवार को तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के सभी दलों को एक हफ्ते के अंदर अपनी सीटों का नाम देने को कहा था. इसी लिहाज से कांग्रेस ने अपने चुनाव लड़ने वाली सीटों के नाम और संख्या की लिस्ट आरजेडी सुप्रीमों को सौंप दी है, लेकिन इंडिया गठबंधन में इस बार पिछली बार से ज्यादा घटक दल हैं. ऐसे में आरजेडी और कांग्रेस को सीटों का त्याग करना होगा.

2020 के चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा-कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट पार्टियां थी, लेकिन इस बार सहयोगी दलों की संख्या बढ़ गई है. बिहार में महागठबंधन का हिस्सा इस बार आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई माले, मुकेश सहनी की वीआईपी और पशुपति पारस की पार्टी है. तेजस्वी के घर पर इंडिया गठबंधन के घटकदलों के नेताओं की गुरुवार को हुई बैठक में यह तय हुआ है कि मुकेश सहनी और पशुपति पारस गठबंधन का हिस्सा रहते हैं तो कांग्रेस-आरजेडी को कुछ सीटों का त्याग करना होगा.

हालांकि, मुकेश सहनी और पशुपति पारस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों के नाम और सीटों की संख्या आरजेडी को नहीं सौंपी है. मुकेश सहनी ने ऐलान किया था कि वो 60 सीट पर चुनाव लड़ेंगे जबकि पशुपति पारस कह चुके हैं कि उन्हें सम्मानजनक सीटें मिलेंगी, तभी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनेंगे. महागठबंधन के पुराने साथी सीपीआई और सीपीएम ने अपनी लिस्ट अब तक नहीं सौंपी है. पिछली बार सीपीआई 6 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सीपीएम ने 4 सीट पर किस्मत आजमाई थी.

कांग्रेस 55 से 60 सीट पर क्या लड़ेगी चुनाव?

कांग्रेस ने भले ही आरजेडी को 70 सीटों के नाम की सूची सौंपी हो, लेकिन इंडिया गठबंधन की शुरुआती बातचीत से संकेत मिल रहे हैं कि पिछली बार से कम सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार 55 से 60 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. कांग्रेस को पिछले चुनाव से 10 से 15 सीटों का समझौता करना होगा.

वहीं, आरजेडी पिछले चुनाव में 144 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार उसे भी कुछ सीटों पर त्याग करना होगा. पशुपति पारस और मुकेश सहनी को इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनाने में तेजस्वी यादव की ही भूमिका अहम रही है. ऐसे में कांग्रेस के साथ आरजेडी को भी कम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा. आरजेडी को 2025 में 130 में से 135 सीट पर चुनाव लड़ना पड़ सकता है.

क्या माले को मिलेंगी पहले से ज्यादा सीटें

कांग्रेस और आरजेडी को सीटों का त्याग करना पड़ रहा है तो सीपीआई माले की सीटों में इजाफा हो सकता है. सीपीआई माले ने पिछली बार 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटें जीतने में कामयाब रही है, लेकिन इस बार माले ने 42 सीटों की डिमांड रखी है. माले मध्य बिहार की नालंदा, नवादा, गया, औरंगाबाद, कैमूर की सीटों के साथ-साथ चंपारण, मिथिला और जमुई में सीटें मांग रही है. सीपीआई माले का तर्क है कि उसे पहले से अगर ज्यादा सीटें मिलेंगी तो महागठबंधन का परफॉर्मेंस बढ़ेगा. सीपीआई माले को सीटें पिछली बार से कुछ ज्यादा मिल सकती है, लेकिन उसके डिमांड के लिहाज से नहीं.

विनेबिलिटी पर सीट और कैंडिडेट का चयन

इंडिया गठबंधन के सभी घटकदलों ने तय किया है कि कोटा सिस्टम के बजाय जीत के आधार पर सीट बंटवारा किया जाए. इस बार एक-एक सीट पर महागठबंधन के दल बैठकर विनेबिलिटी के आधार पर उम्मीदवारों का चयन करेंगे. इस तरह से इंडिया गठबंधन ने बिहार चुनाव लड़ने और जीत दर्ज करने की रणनीति बनाने का काम किया है. महागठबंधन की हुई चौथी बैठक में तेजस्वी यादव ने ज्यादा मार्जिन से हारने वाली प्रत्याशियों को बदलने का प्लान बनाया है, जिसमें माना जा रहा है कि 15 हजार से अधिक वोटों से हारने वाली सीटों को रखा गया है.

कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के मुताबिक पार्टी के 45 वर्तमान विधायकों के अलावा सभी विधायकों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. लेकिन जानकारी के मुताबिक सिटिंग विधायकों के टिकट नहीं काटे जाएंगे. इसके अलावा तेजस्वी यादव का फॉर्मूला अगर चला तो ज्यादा मार्जिन से हारी हुई सीटों पर इस बार नए कैंडिडेट चुनाव लड़ते हुए नजर आएंगे. ये कांग्रेस और आरजेडी ही नहीं बल्कि लेफ्ट के दलों के लिए होगा.

2024 के एजेंडे पर चुनाव लड़ने का प्लान

इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग फॉर्मूले के साथ-साथ ज्वाइंट कैंपेन को लेकर रणनीति बनाई जा रही है. 2024 वाले विनिंग फॉर्मूले पर ही एनडीए को सियासी मात देने की रणनीति इंडिया गठबंधन बना रहा है. बिहार में सामाजिक समानता और संविधान के सम्मान को महागठबंधन ने अपने कैंपेन के केंद्र बिंदु में रखकर चुनाव लड़ने की प्लानिंग की है. माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन में अगले 15 दिन में कैंपेन का औपचारिक आगाज हो जाएगा, जिसमें सभी दलों के केंद्रीय नेतृत्व शामिल होंगे.

कांग्रेस का पूरा फोकस बिहार में सामाजिक न्याय के एजेंडे पर है, जो आरजेडी से लेकर लेफ्ट, मुकेश सहनी और पशुपति पारस को भी सूट करता है. आरजेडी की पूरी सियासत ही दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वोटों की रही है. कांग्रेस भी अब बिहार में इसी एजेंडे पर आगे बढ़ रही है. राहुल गांधी ने 2024 के चुनाव के बाद से बिहार में जितने भी कार्यक्रम किए हैं या फिर शामिल हुए हैं, उसका एजेंडा सामाजिक न्याय ही रहा है. महागठबंधन ने बिहार में सामाजिक समानता और संविधान के सम्मान का एजेंडा सेट करते हुए सियासी जंग फतह करने की रणनीति बनाई है.

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