उज्जैन। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक होलाष्टक की मान्यता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार इस बार 7 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत होगी, 13 मार्च को होलिका दहन के साथ इसका समापन होगा।
लेकिन 14 मार्च से सूर्य मीन राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य की मीन संक्रांति को मलमास माना गया है। मलमास में भी शुभ मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। ऐसे में इस बार लगातार सवा महीना मांगलिक कार्य नहीं होंगे। 15 अप्रैल को मलमास समाप्त होने के बाद एक बार फिर शहनाई की गूंज सुनाई देगी।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया 7 मार्च को शुक्रवार के दिन मृगशिरा नक्षत्र व वृषभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में होलाष्टक का आरंभ होगा, जो 13 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा तक रहेगा। होलिका दहन के बाद 14 मार्च को होलाष्टक का समापन हो जाएगा।
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन से मांगलिक कार्य शुरू होना थे, लेकिन इस बार 14 मार्च को होलाष्टक समाप्त होने के साथ ही सूर्य का मीन राशि में प्रवेश हो रहा है। सूर्य का मीन राशि में परिभ्रमण मीन मास अथवा मल मास कहा जाता है। मल मास में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इसलिए 14 मार्च से 14 अप्रैल तक मांगलिक कार्य नहीं होंगे। 15 अप्रैल को मलमास समाप्त होने के साथ विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, गृह आरंभ आदि मांगलिक कार्य हो सकेंगे।
अष्टक की आठ रात्रि साधना के लिए विशेष
धर्म शास्त्र की मान्यता के अनुसार तंत्र, मंत्र व यंत्र की सिद्धि के लिए रात्रि साधना का विशेष महत्व है। शास्त्र में सिद्ध रात्रि, कालरात्रि, मोह रात्रि आदि रात्रियों को विशेष बताया गया हैं। होली से पहले होलाष्टक भी यह आठ रात्रियां भी साधना की सिद्धि के लिए विशेष मानी गई है।
इन रात्रियों में साधक यंत्र-मंत्र तंत्र की सिद्धि के लिए विशिष्ट साधना करते हैं। होली की रात्रि आठ दिवसीय साधना का महत्वपूर्ण दिन है। इस रात साधना का क्रम पूर्ण होता है। होलिका दहन के बाद चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन होलाष्टक का समापन हो जाता है।
मध्य मालवा प्रांत में होलाष्टक का अवरोध नहीं माना जाता है अर्थात होलाष्टक किसी मांगलिक कार्य में बाधा नहीं है। इस दृष्टि से परंपरा एवं पर्व काल तथा कुछ स्थानों पर लग्नसरा की स्थिति या गृह प्रवेश की स्थिति रहेगी।
इस संबंध में विद्वानों में मतांतर हो सकता है। किंतु ग्रंथ एवं मान्यताओं के चलते यदि देखें तो मध्य मालवा में होलाष्टक की मान्यता नहीं है। लेकिन फिर भी होली जैसे त्योहार के चलते लोग लोकाचार के कारण मध्य मालवा में भी इसका पालन करते हैं। विशेषत: होलाष्टक की मान्यता महाराष्ट्र, कुछ दक्षिण व उत्तर के प्रांत में है।
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