मस्जिद-मंदिर विवाद पर भागवत की टिप्पणी, पांचजन्य ने कहा- राजनीतिक झगड़ों से बचे हिंदू समाज

संघ प्रमुख मोहन भागवत के मंदिरों को लेकर दिए गए बयान के बाद से ही घमासान छिड़ा हुआ है. भागवत के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. इसको लेकर अब पांचजन्य का बयान भी सामने आया है. उनकी तरफ से भागवत के बयान का समर्थन किया गया है. उन्होंने कहा कि भागवत का बयान गहरी दृष्टि और सामाजिक विवेक का आह्वान है. इसके साथ ही इस मुद्दे पर “अनावश्यक बहस और भ्रामक प्रचार” से बचने की चेतावनी दी है.

पांचजन्य ने अपनी संपादकीय में कहा कि मोहन भागवत ने मंदिरों और उनसे जुड़े मुद्दों को राजनीति से ऊपर उठकर समझने तथा संवेदनशीलता के साथ विचार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है. सवाल यह है कि एक समाज के रूप में हम दिन-प्रतिदिन मंदिरों की खोज को और गली-मोहल्लों में वीरान पड़े मंदिरों की खोज-खबर न लिए जाने की प्रवृत्ति को किस प्रकार देखें?

भागवत की अपील सही-पांचजन्य

पांचजन्य ने अपनी संपादकीय में लिखा कि RSS प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान के बाद, मीडिया जगत में तीव्र शब्दों की लड़ाई जैसी स्थिति पैदा हो गई है. या तो यह जानबूझकर बनाई जा रही है. एक स्पष्ट बयान से कई अर्थ निकाले जा रहे हैं. रोज नई प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. संपादकीय ने कहा कि मोहन भागवत का बयान समाज से इस मुद्दे पर समझदारी से निपटने की एक स्पष्ट अपील थी, यह सही है.

आगे लिखा कि मंदिर हिंदुओं के विश्वास के केंद्र हैं, लेकिन उनका राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है. आजकल, मंदिरों से जुड़े मुद्दों पर अनावश्यक बहस और भ्रामक प्रचार को बढ़ावा देना एक चिंताजनक प्रवृत्ति है. सोशल मीडिया ने इस प्रवृत्ति को और तेज किया है.

राजनीतिक स्वार्थों के लिए हिंदू विचारक के रूप में पेश- पांचजन्य

संपादकीय में कहा गया कि कुछ असामाजिक तत्व, जो खुद को सामाजिक समझदार मानते हैं, सोशल मीडिया पर समाज की भावनाओं का शोषण कर रहे हैं और ऐसे असंगत विचारकों से दूर रहना जरूरी है. संपादकीय में कहा गया है कि भारत एक सभ्यता और संस्कृति का नाम है, जो हजारों वर्षों से विविधता में एकता का सिद्धांत न केवल सिखाता रहा है, बल्कि इसे जीवन में भी अपनाया है. वहीं कुछ तत्व, जो ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मूल्यों से रहित हैं, अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए मंदिरों का प्रचार कर रहे हैं, और खुद को हिंदू विचारक के रूप में पेश कर रहे हैं.

राजनीतिक झगड़ों और विवादों से बचे हिंदू समाज

संपादकीय में लिखा गया कि आज के समय में मंदिरों से जुड़े मुद्दों को राजनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चिंताजनक है. सरसंघचालक ने इस प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. यह दृष्टिकोण दिखाता है कि हिंदू समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करते हुए राजनीतिक झगड़ों, व्यक्तिगत महिमामंडन और विवादों से बचना चाहिए.

आगे लिखा कि मोहन भागवत का संदेश एक गहरी सामाजिक चेतना को जागृत करता है. यह हमें याद दिलाता है कि इतिहास के घावों को कुरेदने के बजाय हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करते हुए समाज में सामंजस्य और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देना चाहिए. मंदिरों के पुनरुद्धार और उनके संरक्षण में निहित यह भाव हमें एकजुट कर सकता है, और भविष्य के भारत को मजबूती प्रदान कर सकता है.

क्या है भागवत का वो बयान जिस पर मच गया घमासान

आरएसएस प्रमुख ने कुछ समय पहले ही में देशभर में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता जताई थी. जिस पर उन्होंने कहा था कि कि कुछ लोग, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद, इस तरह के मुद्दों को उठाकर खुद को ‘हिंदुओं के नेता’ मानने लगे हैं.

मोहन भागवत के इस बयान के बाद उन्हें कई आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, शंकराचार्य और रामभद्राचार्य ने इस बयान पर तीखी टिप्पणी की थी.

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