ग्वालियर। किसी मामले में कोई वकील अगर आपकी अपेक्षा के अनुसार काम नहीं करता है या आपको ऐसा लगता है कि उसकी सेवाओं में कोई कमी रही है तो उसके खिलाफ आप अब कंज्यूमर फोरम का दरवाजा नहीं खटखटा सकते। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट हुआ है कि वकालत के पेशे में दी जाने वाली सेवाओं को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट से बाहर कर दिया है। इस फैसले पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि वकालत का पेशा अन्य पेशों से अलग होता है उसमें सफलता पर किसी का नियंत्रण नहीं होता है। हालांकि इस फैसले पर शहर के अधिवक्ताओं का सकारात्मक पक्ष देखने मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए कह रहे हैं कि एक विधिक अधिकारी किसी मामले में अपनी बुद्धि और मेहनत के आधार पर पूरा सहयोग करता है लेकिन वह हर हाल में सफल होगा, ऐसा कहना संभव नहीं होता है।
2007 में शामिल किया था
अधिवक्ता प्रभात शर्मा बताते हैं कि नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन ने 2007 में फैसला देते हुए कहा था कि वकीलों की सेवाएं कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 की धारा दो (ओ) के तहत आती हैं, क्योंकि वह भी पैसे लेकर सर्विस देते हैं, इसलिए उन्हें इस श्रेणी में लिया जाना चाहिए। हालांकि इसके बाद इस आदेश को स्टे कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले ने 2007 में हुए उस फैसले को बदल दिया।
दोबारा विचार किया जाना चाहिए
इस बारे में उपभोक्ता फोरम के अधिवक्ता शिव शर्मा का कहना है कि इस आदेश में एक खास बात सामने आई है जिसमें कहा गया है कि डाक्टर भी सर्विस देने का काम करते हैं, लेकिन इस एक्ट के अंतर्गत उन्हें शामिल कर लेने से वह खुलकर अपने क्षेत्र में काम कर पाते हैं। इसलिए ऐसे में इस बात पर दोबारा विचार किया जाना आवश्यक है कि चिकित्सकों को इस श्रेणी से बाहर रखा जाए अथवा नहीं।
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