बदनावर, धार। जिस तरह बदनावर की कचोरी का स्वाद करीब आठ देश में लोगों को भाया है, वैसे ही बदनावर क्षेत्र के घेवर ने अमेरिका, दुबई और नेपाल जैसे देश में दस्तक दे दी है। क्षेत्र के अप्रवासी भारतीयों ने इन देशों में अपने परिचितों को यह घेवर खिलाया तो उन्हें खूब पसंद आया। मालवांचल में स्नेह के बंधन को और मजबूत करने वाली अनोखी परंपरा घेवर की भी है। बहनों द्वारा रक्षाबंधन के दौरान भाइयों को खिलाई जाने वाली मिठाई में घेवर प्रमुख रहता है।
मध्यकाल में मालवांचल में रिसासतों और ठिकानों का विस्तार प्रारंभ हुआ था। मराठा साम्राज्य आने के बाद मालवा में संपूर्ण भारत का एक प्रमुख व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया था। उस दौरान गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र के कई योद्धा व व्यापारिक जातियां मालवा आईं और यहीं की होकर रह गईं। वे अपने साथ वहां की कला-संस्कृति के साथ खानपान की शैली भी लेकर आईं।
बदनावर मालवा का प्रवेश द्वार
हरियाली अमावस्या से रक्षाबंधन तक खूब पसंद की जाने वाली मिठाई घेवर उन्हीं में से एक है, जो राजस्थान के मारवाड़ की सबसे प्रसिद्ध मिठाई है। धार जिले के बदनावर को मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है। इस कारण यहां की कचोरी के बाद घेवर भी क्षेत्र समेत देश-विदेश में तेजी से प्रसिद्ध हो गया है। इस साल श्रावण में करीब 26 क्विंटल घेवर की खपत हुई है।
छोटे गांव में बने घेवर की विदेश में धूम
बदनावर के निकट छोटा-सा ग्राम ढोलाना है, जहां के बने घेवर का स्वाद विदेश में भी खूब भाता है। गांव में ही तीन स्थानों पर घेवर बनाए जाते हैं। 28 वर्ष से घेवर बनाने वाले मगनलाल जैन का कहना है यहां घेवर शुद्ध घी से बनाए जाते हैं। सूखे घेवर की मांग अधिक रहती है। इस वर्ष करीब नौ क्विंटल घेवर हमारे द्वारा ही तैयार किए गए थे, जो गत वर्ष से तीन क्विंटल अधिक है।
जबकि गांव समेत कुल 13 क्विंटल घेवर बनाए गए थे। यहां के घेवर विदेश के साथ ही राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के अलावा प्रदेश के भोपाल, ग्वालियर, इंदौर व उज्जैन भी ले जाए जाते हैं। यही नहीं कई सेलिब्रिटी के मुंह पर ढोलाना के घेवर का स्वाद होने से स्पेशल तौर पर बुलवाए जाते हैं। शुद्ध देशी से निर्मित घेवर की कीमत 700 रुपये प्रति किलो है।
श्रावण की शुरुआत के साथ बनने लगते हैं घेवर
बदनावर में श्रावण मास की शुरुआत से ही रंग-बिरंगे घेवर बनाने का काम कारीगर शुरू कर देते हैं। लोगों की पसंद के मुताबिक डायफ्रूट घेवर, रबड़ी घेवर, चाकलेटी घेवर भी बनाए जाते हैं। इनमें वनस्पती व देशी घी से अलग-अलग घेवर बनाए जाते हैं। हरियाली अमावस्या यानी दिवासे पर इनकी खूब बिक्री होती है। बिक्री का यह दौर रक्षाबंधन तक चलता है।
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