नई दिल्ली । यूक्रेन से युद्ध लड़ रहे रूस के तेल पर प्राइस कैप लगाने के लिए यूरोपीय संघ (ईयू) ने अस्थायी रूप से सहमति जाहिर की है। यूरोपीय संघ की सरकारों ने रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप पर सहमति जाहिर की है। यानी की रूस इस कीमत से अधिक की दर पर अपना तेल दूसरे देशों को नहीं बेच सकेगा। यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। अब उसके तेल पर प्राइस कैप लगाकर ये देश रूस को आर्थिक रूप से और कमजोर करना चाहते हैं। रूस अपने तेल का निर्यात कर बड़ी राशि जुटाता है। लेकिन इस प्राइस कैप के बाद भारत को नुकसान हो सकता है।
सितंबर 2022 तक रूस अपने तेल को ब्रेंट क्रूड के मुकाबले 20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता बेच रहा था। पिछले छह महीने में भारत सस्ते रूसी तेल का बड़ा खरीदार बनकर उभर रहा है। लेकिन 60 डॉलर के प्राइस कैप लगाने से भारत को आने वाले दिनों में नुकसान होगा है। फिलहाल भारत को रूस की ओर से तेल छूट पर मिल रहा है। हालांकि भारत के लिए फिलहाल किसी तरह की मुश्किल बढ़ती हुई नजर नहीं आ रही है। क्योंकि मौजूदा समय में 60 से 70 डॉलर प्रति बैरल की दर से ही रूस से तेल खरीद रहा है। भारत का रूस से तेल खरीदना अमेरिका को रास नहीं आ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसकी आलोचना भी की थी। लेकिन भारत ने रूस से तेल का आयात बंद नहीं किया।
सूत्र के अनुसार भारत अभी भी रूसी क्रूड के लिए ब्रेंट से 15-20 डॉलर प्रति बैरल कम भुगतान कर रहा है। इसका मतलब है कि डिलीवर किए गए कार्गो की कीमत भी प्राइस कैप के आसपास ही है। इसकारण प्राइस कैप लगने के बावजदू भारत पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ने की संभावना है।
दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 10 महीने के न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं। भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की उम्मीद की है। भारत रूस बड़ी मात्रा में तेल आयात कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले जहां भारत रूस से केवल फीसदी तेल खरीदता था ये आंकड़ा अब 20 फीसदी तक पहुंच चुका है। रूस के सस्ते तेल की वजह से भारतीय तेल रिफाइनरी कंपनी दुनिया भर में मुनाफा कमाने वाली साबित हो रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मार्केट में काफी समय से कच्चे तेल की कीमतों में नरमी बनी हुई है।
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