पठानकोट शहर के डलहौजी रोड स्थित भगवान शनिदेव का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है। मंदिर में पिछले कई वर्षो से सेवा में जुटे बाबा श्याम गिरि जी महाराज बताते हैं कि यह स्थान एक तपोभूमि है। इस स्थान पर सांप इत्यादि बहुत हुआ करते थे। यहां पर महात्मा भक्तराम गिरि व निक्का राम गिरि दोनों भाइयों ने तपस्या की और वहीं समा गए। इसके पश्चात उन्होंने इस स्थान की सेवा संभाली। वह बताते हैं कि यह स्थान पहले जंगल था और भगवान शिव का पुरातन मंदिर है। इसके बाद भगवान शनिदेव के मंदिर का निर्माण शहर के दानवीर वीरेंद्र सहदेव ने अपने पूज्य पिता स्वर्गीय राय चंद्र व माता स्वर्गीय शांति देवी की याद में बनवाया। वह बताते हैं वीरेंद्र सहदेव की माता शांति देवी भगवान शनिदेव की अथाह भक्तनी थीं। इनके देहांत के बाद उनके पुत्र वीरेंद्र सहदेव को भगवान शनिदेव ने दर्शन देकर मंदिर निर्माण के लिए प्रेरित किया। इसके बाद वीरेंद्र सहदेव ने अपनी तमाम पूंजी को इस नेक काम में लगाकर जनवरी 2003 को मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में हर शनिवार को विशाल भंडारा लगाया जाता है। प्रत्येक शनिवार को मंदिर में माथा टेकने वाले श्रदालुओं की लम्बी कतारें लग जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर में अपनी राशी के स्तम्भ पर मौली बांधने से मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर में 12 राशियों के स्तम्भ बने हैं जो भी कोई अपनी राशि के अनुसार स्तम्भ पर मौली बांधता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर में समय-समय पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।