सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है, हिंदू धर्म में भगवान शिव को सभी देवी देवताओं में सबसे बड़ा माना जाता है, ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव ही दुनिया को चलाते हैं, वह जितने भोले हैं उतने ही गुस्सै वाले भी हैं, शास्त्रों के मुताबिक सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है, शिव जी को प्रसन्न करने के लिए लोग व्रत करते हैं, भगवान शिव का एक नाम पशुपतिनाथ है, जिसका अर्थ है कि भगवान शिव चारों दिशाओं में विद्यमान हैं. भगवान पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर नेपाल में स्थित है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री पशुपतिनाथ परब्रह्म शिव के अनादि रूप हैं, वह ‘पंच वक्रम् त्रिनेत्रम्’ नाम से जाने जाते हैं. ॐकार के उत्पत्ति भगवान शिव के दक्षिण मुह से ‘अ’ कार, पश्चिम मुंह से ‘उ’ कार, उत्तर मुंह से ‘म’ कार, पूर्व मुंह से चन्द्रविन्दु और उर्ध्व ईशान मुंह से ‘नाद’ के रूप में हुई थी।
भगवान पशुपति के आठ नाम –
ॐ महादेवाय चन्द्रमूत्र्तये नम: ।।ॐ ईशानाय सूर्यमूत्र्तये नम: ।।ॐ उग्राय वायुमूत्र्तये नम: ।।ॐ रुद्राय ऽग्निमूत्र्तये नम: ।।ॐ भवाय जलमूत्र्तये नम: ।।ॐ शव्र्वाय क्षितिमूत्र्तये नम: ।।ॐ पशुपतये यजमानमूत्र्तये नम: ।।ॐ भीमाय ऽऽकाशमूत्र्तये नम: ।।इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भगवान आशुतोष शिव से पंच तत्व की उत्पत्ति के श्रोत पंच वक्र त्रिनेत्र ही हैं, श्री पशुपति नाम ही एक मात्र यजमान मूर्ति और पूजनीय हैं बाकि सब प्रतीकात्मक हैं।
नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. इस भव्य मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में सोमदेव राजवंश के ‘पशुप्रेक्ष’ नामक राजा ने करवाया था, इस मंदिर के निर्माण से जुड़े कुछ ऐतिहासिक मत भी हैं और इस पर यकीन करें तो मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में किया गया था, भगवान भोलेनाथ के धाम पशुपतिनाथ में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है, लेकिन वह इसे बाहर से देख सकते है, मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग है, कहते हैं कि ऐसा विग्रह दुनिया में कहीं और नहीं है, हिंदू पुराणों के अनुसार पशुपतिनाथ मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। भगवान शिव ने यहां पहुंचकर एक चिंकारे का रूप धारण किया और गहरी नींद में सो गए, जब भगवान शिव वाराणसी में नहीं मिले, तब देवताओं ने उन्हें बागमती के किनारे इस स्थान पर पाया, देवता उन्हें वापस वाराणसी ले जाने का प्रयास करने लगे, इसी दौरान चिंकारे के रूप में भगवान शिव ने बागमती नदी के दूसरे किनारे की ओर छलांग लगा दी, छलांग लगाने के दौरान ही उनका सींग चार टुकडों में टूट गया था, कहते हैं कि तभी से भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में प्रकट हुए। करीब चार हजार साल पुरानी महाभारत की कथा के अनुसार, जब पांडव स्वर्गप्रयाण के लिए हिमालय की ओर जा रहे थे, उस समय उत्तराखंड के केदारनाथ में भगवान शिव ने भैंसे के रूप में पांडवों को दर्शन दिया था, दर्शन देने के बाद भैंसे के रूप में शिव वहीं जमीन में समाने लगे, यह देख भीम ने उनकी पूछ पकड़ ली, यह जगह केदारनाथ के नाम से विख्यात हुई, जबकि नेपाल में धरती से बाहर जहां उनका सिर प्रकट हुआ, वह पशुपतिनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। पशुपतिनाथ मंदिर के चारों दिशाओं मे अष्ट भैरव और उत्तर में दक्षिणकाली की मूर्ति है, मंदिर के ऊपर में षोडश मातृका की मूर्ति है, मंदिर के पूर्व में श्रीकृष्ण परिवार की मूर्ति है, मंदिर के दक्षिण में श्रीराम परिवार की मूर्ति है, मंदिर के पश्चिम तरफ पांडव परिवार की मूर्ति है, मंदिर के उत्तर तरफ ब्रह्मा और विष्णु भगवान की मूर्तियां हैं, भगवान पशुपतिनाथ की एक निराकार सहित चार मुंह हैं, नेपाल की पशुपतिनाथ के समान लिंग, वाग्मती समान की नदी और गुह्यश्वरी समान की पीठ तीनों लोक में नहीं हैं।