केंद्र सरकार को चिट्‌ठी लिखकर कहा, वहां खदान का विरोध हो रहा है, अनुमति निरस्त कर दें

रायपुर: हसदेव अरण्य में विरोध की यह आवाज कई सालों से गूंज रही है। 2018 के चुनाव में भी यह मुद्दा था।छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य स्थित परसा कोल ब्लॉक पर राज्य सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। लंबे समय से चल रहे विरोध प्रदर्शन को देखते हुए सरकार खदान के लिए दी गई वन स्वीकृति को रद्द कराने की काेशिश में जुट गई है। वन विभाग ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर खदान के लिए दी गई वन भूमि के डायवर्शन की अनुमति को निरस्त करने का आग्रह किया है।वन विभाग के अवर सचिव केपी राजपूत ने सोमवार को केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में वन महानिरीक्षक को एक पत्र लिखा। इसमें कहा गया, हसदेव अरण्य कोल फील्ड में व्यापक जनविरोध के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित हो गई है। ऐसे में जनविरोध, कानून व्यवस्था और व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए 841 हेक्टेयर की परसा खुली खदान परियोजना के लिए जारी वन भूमि डायवर्शन स्वीकृति को निरस्त करने का कष्ट करें। इससे पहले सरकार ने विधानसभा में आये एक अशासकीय संकल्प का समर्थन किया था। इसमें केंद्र सरकार से हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान परियोजनाओं का आवंटन निरस्त करने की मांग की गई थी।वन विभाग ने सोमवार को यह पत्र लिखा है।हसदेव अरण्य में खनन परियोजनाओं का विरोध कर रही संस्थाओं ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने कहा, इसे संघर्ष की जीत की दिशा में इसे देखना चाहिए। लेकिन हसदेव को बचाने के लिए यह कम है। परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति ग्रामसभा के फर्जी प्रस्ताव के आधार पर हासिल की गई थी। राज्य सरकार ने वन संरक्षण नियम-1980 की धारा 2 के तहत वन स्वीकृति का अंतिम आदेश जारी किया था। इसे वापस लेना पूरी तरह से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। यदि केंद्र सरकार कार्यवाही नही करती है तो राज्य सरकार तत्काल वन स्वीकृति को निरस्त करे। जब तक हसदेव की खनन परियोजनाएं रद्द नही होती आंदोलन जारी रहेगा और व्यापक होगा।ग्रामीण कई महीनों से वहां धरना दे रहे हैं।आवंटन के साथ ही शुरू हुआ था विरोधकेंद्रीय पर्यावरणए वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2019 में ही परसा कोयला खदान को पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान की थी। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति सहित स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया था, जिस प्रस्ताव के आधार पर यह स्वीकृति दी गई है वह ग्राम सभा फर्जी थी। उनकी ग्राम सभा में इस परियोजना का विरोध हुआ था। सरकार ने बात नहीं सुनी और फरवरी 2020 में केंद्रीय वन मंत्रालय ने परसा कोयला खदान के लिए स्टेज-1 वन मंजूरी जारी कर दी। अक्टूबर 2021 में इस परियोजना के लिए स्टेज- 2 वन मंजूरी जारी की गई थी। 6 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने भी वन भूमि देने की अंतिम मंजूरी जारी कर दी।पिछले साल पदयात्रा कर आदिवासी ग्रामीण रायपुर पहुंचे थे।पिछले साल 300 किमी पदयात्रा कर रायपुर पहुंचे थे ग्रामीणपरसा कोयला खदान से प्रभावित फतेहपुर, साल्ही और हरिहरपुर, घाटबर्रा जैसे गांवों के लोग अब भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है, सरकार पर्यावरणीय चिंताओं के साथ उनके संविधानिक अधिकार का अतिक्रमण कर रही है। उन लोगों ने पिछले साल अक्टूबर में 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अपनी तकलीफ बताई थी। फर्जी ग्राम सभा की शिकायत की थी। उसके बाद भी सरकार ने उसकी जांच नहीं कराई है। इस बीच केते एक्सटेंसन के लिए 43 हेक्टेयर में घना जंगल काट दिया गया है। इस साल मार्च से ही ग्रामीण धरने पर बैठे हैं।

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