इस श्राप की वजह से भगवान विष्णु को लेना पड़ा था मतस्य अवतार

आज तक कई भगवान को श्राप मिले हैं और ऐसे में आज हम आपको उस श्राप के बारे में बताने जा रहे हैं जो भगवान विष्णु को ऋषि ने दिया और इसके चलते भगवान विष्णु को मतस्य अवतार लेना पड़ा था।

आइए जानते हैं।

क्या है श्राप- ऋषि दुर्वासा हमेशा से ही क्रोध में रहने वाले और दूसरों को श्राप देने वाले ऋषियों में से एक माने जाते थे। श्राप से भरा हुआ जीवन लाभदायक नहीं होता है। इसमें बहुत सारे कष्ट झेलने पड़ते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण से लेकर शिव तक कोई भी ऐसे भगवान नहीं है जो श्राप से बचे हुए हों। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि इन्ही श्रापों की वजह से सृष्टि का कल्याण भी हुआ है। तो आज हम आपको बताने वाले हैं कि ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु को क्यों और कैसे श्राप दिया था ? ऋषि भृगु असुर गुरु शुक्राचार्य के पिता थे। इन्होने भगवान विष्णु को बार-बार धरती पर जन्म लेने का श्राप दिया था।

जिसकी वजह से भगवान विष्णु को मतस्य अवतार लेना पड़ा। गुरु शुक्राचार्य देवों के गुरु बृहस्पति से ज्यादा ज्ञानी थे। इसके बाद भी देवराज इन्द्र ने बृहस्पति को ही अपना गुरु माना था। इस बात को गुरु शुक्राचार्य ने अपना अपमान मानकर असुरों का देवता बनकर देवताओं से बदला लेना चाहा। लेकिन सभी देवों को अमर होने का वरदान मिला हुआ था। फिर जब शुक्राचार्य जी को इस बात का पता चला कि असुर कभी भी देवताओं से नहीं जीत पाएंगे। तब शुक्राचार्य ने भगवान शिव की तपस्या की। जिससे वह उनसे मृत-संजीवनी का वरदान प्राप्त कर सकें। इसके बाद जब शुक्राचार्य तपस्या के लिए जाने लगा। तो उसने देवताओं से अपने माता-पिता की सुरक्षा के लिए असुरों को उनकी कुटिया में रहने का आदेश दिया। देवताओं ने भी इसका अच्छे से फायदा उठाया और असुरों पर आक्रमण कर दिया।

लेकिन काव्यमता ने अपने तेज का इस्तेमाल करके एक सुरक्षा कवच का निर्माण किया। जिसकी वजह से देवता असुरों को कोई नुकसान नहीं पंहुचा पाए। इस तरह से देवता असुरों से हारने लगे। भगवान हरि को जब इस बात का ज्ञात हुआ तब वो देवों की रक्षा करने के लिए इन्द्र का रूप लेकर कुटिया में आए और उन्होंने सुदर्शन चक्र से शुक्राचार्य की माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। फिर ऋषि भृगु ने गुस्से में आकर भगवान को श्राप दिया कि उनको बार-बार धरती पर जन्म लेकर जन्म-मरण के कष्टों को महसूस करना होगा। लेकिन इसके बाद इन्होने कामधेनु गाय की मदद से काव्यमाता को दुबारा जीवित कर लिया था। परन्तु भगवान विष्णु को दिया हुआ श्राप वापिस नहीं लिया। ये ही कारण था जिससे इन्हे बार-बार धरती पर जन्म लेना पड़ता था। भगवान राम के जन्म से “रामायण” और कृष्ण के अवतार से “महाभारत” की रचना हुई।

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