धर्मेंद्र अपना सरनेम ‘देओल’ क्यों नहीं लगाते? क्या है ही-मैन की असली कहानी, खुद ही कर दिया था बड़ा खुलासा
धर्मेंद्र का वास्तविक नाम धर्म सिंह देओल है लेकिन अपने नाम में अपना सरनेम नहीं लगाते. उनको ही-मैन भी कहा जाता है. पिछले करीब पैंसठ साल से अपने चाहने वालों के बीच सिर्फ धर्मेंद्र नाम से जाने जाते हैं. एक शब्द का ऐसा नाम जो बोलने में आसान है, लिखने में सरल है और सुनने में कर्णप्रिय है. धर्मेंद्र का अर्थ भी बड़ा अनोखा है. जैसे जितेंद्र का मतलब होता है जो इंद्रियों का स्वामी हो, जिसने इंद्रियों पर जीत हासिल कर ली हो, उसी तरह धर्मेंद्र का मतलब है- जो धर्म का स्वामी हो, जो धर्म के अनुसार जीता हो, उसे ही धर्मेंद्र कहते हैं. हालांकि कलाकार धर्मेंद्र ने खुद को हमेशा धर्मनिरपेक्ष माना है. उनका कहना है- वह हर देशवासी के दिल में बसते हैं. क्योंकि उनके फैन्स तो सभी धर्म, मजहब वाले हैं.
हालांकि धर्मेंद्र ने भले ही अपने प्रोफेशनल करियर में कभी अपना सरनेम नहीं लिखा लेकिन उनके सारे बच्चे सरनेम लगाते हैं. पहली पत्नी के चारों बच्चे मसलन सनी देओल, बॉबी देओल, विजेता देओल और अजीता देओल लिखते हैं. यहां तक कि दूसरी पत्नी और मशहूर अभिनेत्री हेमा मालिनी से हुईं दोनों बेटियां भी सार्वजनिक जीवन में अपने पिता का सरनेम लिखती रही हैं- ईशा देओल और अहाना देओल. ईशा देओल ने कई फिल्मों में सफलतापूर्वक अभिनय भी किया है. अब दोनों का विवाह हो चुका है.
धर्मेंद्र पहली फिल्म से ही सरनेम नहीं लिखते
जाहिर है यह बात बहुत दिलचस्प हो जाती है कि जब धर्मेंद्र के सारे बच्चे उनका सरनेम लिखते आ रहे हैं तो वो खुद अपना सरनेम क्यों नहीं लिखते. आखिर क्या है इसकी वजह. इसकी वास्तविकता जानने के लिए हमें आज से पैंसठ साल पहले जाने की जरूरत है. धर्मेंद्र जब पहली बार फिल्मी पर्दे पर आए, वह साल था- सन् 1960. धर्मेंद्र राष्ट्रीय स्तर पर फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट के विनर घोषित हुए थे. विजेता होने के नाते फिल्म इंडस्ट्री में सुर्खियां हासिल तो कर ली क्योंकि पंजाब के लुधियाना से आए एक खूबसूरत नौजवान ने कॉन्टेस्ट जीता है. लेकिन अभिनय का मौका तब भी बड़ी मुश्किल से ही मिला.
सन् 1960 में अर्जुन हिंगोरानी के निर्देशन में उनकी पहली फिल्म आई- दिल भी तेरा हम भी तेरे. इस फिल्म के क्रेडिट रोल पर भी गौर करें तो यहां उनका नाम केवल धर्मेंद्र चस्पां है. इस पहली फिल्म में भी उन्होंने अपना सरनेम देओल नहीं लिखा था. इससे साफ होता है कि प्रोफेशनल लाइफ में बिना सरनेम वाला नाम लिखने का फैसला उनकी पहली फिल्म से भी पहले का है. हालांकि घर के सदस्य उनको धरम नाम से पुकारते थे. पंजाबी जुबान में धर्म को धरम उच्चारण किया जाता है.
जितेंद्र भी अपना सरनेम नहीं लिखते
गौरतलब है कि धर्मेंद्र ने जिस दौर में फिल्मों में कदम रखा था, उस वक्त सितारों में अपना अलग-सा फिल्मी नाम रखने का एक चलन था. यह सिलसिला अशोक कुमार और दिलीप कुमार से ही शुरू हो गया था. बाद के दौर में प्रदीप कुमार, मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार, राजकुमार, किशोर कुमार से लेकर आज के अक्षय कुमार तक. जिन्होंने अपने नाम में कुमार नहीं लगाया उन्होंने कुछ ऐसे नाम रखे जो अलग हों और सुनने में अच्छे लगते हों या जिसके खास मायने हों. अभिनेत्रियों में मधुबाला, नरगिस, नूतन, साधना जैसे नाम सामने आए तो अभिनेताओं में धर्मेंद्र, जितेंद्र, मोतीलाल, गुरुदत्त, जीवन, जगदीप, रहमान, गोविंदा आदि.
जितेंद्र का मूल नाम रवि कपूर है. कपूर परिवार के कलाकारों के बीच पहचान का संकट खड़ा न हो इसलिए उन्होंने भी सरनेम नहीं लिखा. केवल जितेंद्र लिखा. उनके बेटे तुषार कपूर लिखते हैं और बेटी एकता कपूर. इसी तरह गोविंदा भी अपने नाम में कभी आहूजा सरनेम नहीं लगाते. जबकि उनके बेटे और बेटी अपना पूरा नाम मसलन टीना आहूजा और यशवर्धन आहूजा लिखते हैं. वैसे धर्मेंद्र के अपना सरनेम नहीं लिखने के पीछे कुछ अंकशास्त्री (Numerologist) भी अपना कयास पेश करते हैं. उनका तर्क है- नंबर 6 की वजह से वो केवल अपना नाम ही लिखते हैं. लेकिन मेरा अनुमान है धर्मेंद्र जिस मिजाज के मस्तमौला कलाकार हैं, वो ऐसे टोटकों में शायद ही पडे़ होंगे.
जातीय पहचान छिपाने का मकसद
वास्तव में फैन्स के बीच एक समान भाव की जगह बनाने के लिए उस दौर में कई कलाकार या तो नाम में परिवर्तन करते थे या फिर अपना सरनेम नहीं लिखते थे. सरनेम लिखने से जाति और समुदाय का बोध होता है लेकिन धर्मेंद्र जैसे कलाकार खुद को किसी जाति और समुदाय तक सीमित नहीं रखना चाहते. उनका मानना है वह कलाकार हैं और कलाकारों की पहचान जाति विशेष या समुदाय विशेष से नहीं होती. मनोरंजन का मकसद देश और समाज की एकजुटता से है. धर्मेंद्र नाम और इसके पीछे उनकी सोच को समझना हो तो उनका सोशल मीडिया हैंडल एक्स को देखिए. यहां वो अपना सरनेम जरूर लिखते हैं, मसलन धर्मेंद्र देओल, लेकिन हैंडल है- आपका धरम. फैंस के बीच जगह बनाने के लिए ही उसी दौर में देव आनंद और राजेश खन्ना जैसे कलाकारों ने भी अपने-अपने नाम में बदलाव किए थे.
कई विलेन ने भी सरनेम नहीं लिखे
गौर करें तो धर्मेंद्र की तरह खलनायक का रोल करने वाले कुछ कलाकारों ने भी ना तो अपना सरनेम लिखा और ना ही अपने मजहब को जगजाहिर होने दिया. जबकि उनकी संतानों ने पब्लिक लाइफ में अपना सरनेम लिखा है. मसलन अमजद खान अपने मूल नाम के मशहूर हुए लेकिन उनके पिता पर्दे पर केवल जयंत लिखते थे. जिनका मूल नाम- जकारिया खान था. इसी तरह खास आवाज के मालिक अजीत का मूल नाम हामिद अली खान था. लेकिन फिल्मी पर्दे पर कभी इस नाम का इस्तेमाल नहीं किया. जबकि उनके बेटे शहबाद खान और अरबाज अली खान लिखते हैं. सिर्फ रंजीत लिखने वाले विलेन का भी पूरा नाम गोपाल बेदी है, जिनकी बेटी दिव्यांका बेदी और बेटे चिरंजीव बेदी लिखते हैं. वहीं हास्य कलाकार जगदीप (पूरा नाम- सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी) के बेटे जावेद जाफरी नाम से जाने जाते हैं.
धर्मेंद्र को ही-मैन क्यों कहते हैं?
अब आपको बताते हैं कि धर्मेंद्र को ही-मैन क्यों कहा जाता है. फिल्मों में जांबाज नायकों के लिए दो शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं- ही-मैन और रॉबिनहुड. ये दोनों ही खिताब ह़ॉलीवुड से निकले हैं. रॉबिनहुड वो है जो गरीबों का मसीहा है, वहीं ही-मैन ऐसा नायक होता है जो पराक्रमी और साहसी होता है. अपने यहां पारसी थिएटर के नायक भी साहसी कारनामा करने वाले होते थे. वैसे ही-मैन मास्टर्स ऑफ द यूनिवर्स फ्रेंचाइज का एक ऐसा नायक है जो अपनी बहादुरी के लिए जाना जाता है. छठे दशक में जब धर्मेंद्र को पहली बार फूल और पत्थर फिल्म में शर्टलेस देखा गया था, तब उनकी पर्सनाल्टी ने सबका ध्यान खींचा. धर्मेंद्र की ताकतवर काया और उसके प्रभाव को देखते हुए उन्हें ही-मैन कहा जाने लगा.