मध्यप्रदेश पुलिस की प्रशिक्षण शाखा ने अपने सभी केंद्रों को रंगरूटों के लिए रामचरितमानस के बाद अब भगवद्गीता पाठ का सत्र आयोजित करने का निर्देश दिया है, क्योंकि इससे उन्हें नेक जीवन जीने में मदद मिलेगी. यह निर्देश अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी, प्रशिक्षण) राजा बाबू सिंह ने राज्य के सभी आठ प्रशिक्षण स्कूलों के अधीक्षकों को जारी किया है. इन केंद्रों में कांस्टेबल पद के लिए चयनित लगभग 4,000 युवा लड़के और लड़कियां जुलाई से नौ महीने का प्रशिक्षण ले रहे हैं.
राजा बाबू सिंह ने जुलाई में प्रशिक्षण सत्र का उद्घाटन करते समय इन संस्थानों में रामचरितमानस का पाठ करने का निर्देश दिया था. उन्होंने कहा था कि इससे उनमें अनुशासन आएगा. रामचरितमानस में भगवान राम के गुणों और जंगल में उनके 14 साल के वनवास का वर्णन है.
भगवद्गीता पढ़ने की पहल शुरू
साल 1994 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी राजा बाबू सिंह ने प्रशिक्षण केंद्रों के संचालकों से कहा कि अगर हो सके तो अभी चल रहे भगवान कृष्ण से जुड़े पवित्र महीने (अगहन कृष्ण) के दौरान भगवद्गीता का कम से कम एक अध्याय पढ़ने से जुड़ी पहल शुरू करें. उन्होंने निर्देश दिया कि यह प्रशिक्षण लेने वालों के रोजाना के ध्यान सत्र से ठीक पहले किया जा सकता है.
जीवन जीने में करेगा मार्गदर्शन
एडीजी ने प्रशिक्षण केंद्रों को अपने संदेश में कहा कि भगवद्गीता हमारा शाश्वत ग्रंथ है. इसका नियमित पाठ निश्चित रूप से हमारे प्रशिक्षण लेने वालों को एक नेक जीवन जीने में मार्गदर्शन करेगा और उनका जीवन बेहतर होगा. इस अधिकारी ने वर्ष 2019 के आसपास ग्वालियर रेंज के पुलिस प्रमुख के रूप में काम करते हुए इसी तरह का एक अभियान शुरू किया था और कई स्थानीय जेल कैदियों और अन्य लोगों में भगवद्गीता की प्रतियां बांटी थीं.
इस मुद्दे पर सियासत तेज
वहीं, पुलिस की इस पहल पर राज्य में सियासी पारा चढ़ गया है. कांग्रेस मीडिया कॉर्डिनेटर अभिनव बरौलिया ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष संस्था में धार्मिक ग्रंथों का पाठ कराना संविधान की भावना के खिलाफ है. सरकार प्रशासनिक संस्थाओं को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रही है.
वहीं, बीजेपी प्रवक्ता दुर्गेश केसवानी ने पलटवार करते हुए कहा कि भगवद्गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के आदर्श और कर्म के सिद्धांतों को सिखाने वाला ग्रंथ है. उन्होंने कहा कि अगर पुलिस ट्रेनिंग में गीता का एक अध्याय पढ़ने से अधिकारी और जवानों में अनुशासन, संयम और सत्य के प्रति निष्ठा आती है, तो इसे सकारात्मक रूप में देखा जाना चाहिए.