फांसी vs इंजेक्शन: मौत की सज़ा का कौन सा तरीका बेहतर? पवन जल्लाद ने बताया- ‘निर्भया के दोषियों को लटकाने का अनुभव’
निर्भया रेप कांड के चारों दोषियों को फांसी पर लटका कर सुर्खियों में आए पवन जल्लाद ने मौत की सजा पाए अपराधियों को मौत की नींद सुलाने को लेकर विकल्प दिए जाने की मांग का विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट में मौत की सजा के अमल के लिए विकल्प दिए जाने की मांग से जुड़ी याचिका दाखिल की गई है. इस पर पवन जल्लाद का कहना है कि फांसी के जरिए मौत देना, अपराधियों में डर और दहशत पैदा करने का काम करती है. जबकि जानलेवा इंजेक्शन में वो डर कहां से आएगा.
पवन जल्लाद ने ‘निर्भया’ के साथ गैंग रेप और मर्डर करने के हत्यारों को मौत की सजा सुनाई गई थी. आरोपियों में अक्षय ठाकुर (31) के अलावा पवन गुप्ता (25), मुकेश सिंह (32) और विनय शर्मा (26) थे. इन्हें पवन जल्लाद ने भी फांसी पर लटकाया था.
कोर्ट की टिप्पणी के बाद बहस शुरू
मौत की सजा के विकल्प देने की मांग वाली याचिका का विरोध करते हुए पवन जल्लाद पर ने कहा, “फांसी दोषियों में डर और दहशत पैदा करने का काम करती है. जबकि जानलेवा इंजेक्शन में वो डर नहीं आ पाता है? पवन का कहना है कि फांसी देना सबसे उपयुक्त और पारंपरिक तरीका है.
दरअसल, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में फांसी दिए जाने के तरीके में बदलाव की मांग वाली एक याचिका दाखिल की गई है. लेकिन, केंद्र सरकार ने इस याचिका का विरोध किया है. हालांकि कोर्ट ने सरकार के रूख पर नाराजगी जताते हुए कहा कि समय के हिसाब से बदलाव किया जाना चाहिए. इस टिप्पणी के बाद देश में इस मसले पर बड़ी बहस शुरू हो गई है.
पवन जल्लाद का कहना, “मौत की सजा पाए दोषियों को फांसी देने के लिए फांसी पर लटकाना एक अच्छा तरीका है क्योंकि इसमें दोषी धीरे-धीरे मरता है और समाज में एक बड़ा मैसेज जाता है. जबकि इसके उलट इंजेक्शन से कोई दर्द नहीं होता और इसका कोई डर भी नहीं होता.”
लटकाने पर कितनी देर में होती है मौत
पवन ने कहा, “फांसी पर लटकाया जाना एक पारंपरिक तरीका है और इस वजह से अपराधियों में खौफ भी पैदा होता है. देश के चर्चित जल्लादों में से एक पवन ने बताया कि उनका परिवार कई पीढ़ियों से फांसी देता आ रहा है और वह खुद अपने दादा के साथ फांसी देने जाया करते थे.
पवन मेरठ में रहते हैं और वह समय-समय पर मेरठ जिला जेल में अपनी हाजिरी लगाते हैं. साथ ही नई फांसी से जुड़े आदेश का इंतजार करते हैं. फांसी पर लटकाने के करीब 15 मिनट बाद सजायाफ्ता की मौत हो जाती है, जबकि इसकी आधिकारिक घोषणा 30 मिनट बाद की जाती है.’ पवन के अनुसार, मेरठ जिला जेल से एक फांसी के लिए मानदेय के रूप में 10 हजार रुपये मिलते हैं. वो चाहते हैं कि यह मानदेय बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दिया जाए.