मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस ग्रुप एक बार फिर बड़ी फाइनेंशियल तैयारी में जुट गई है. कंपनी लगभग 180 अरब रुपये (करीब 2 अरब डॉलर) की रकम एसेट-बैक्ड सिक्योरिटीज (Asset-Backed Securities) के ज़रिए जुटाने की योजना बना रही है. यह डील देश की अब तक की सबसे बड़ी ऐसी डील्स में से एक मानी जा रही है. इस डील की सबसे खास बात यह है कि ये सिक्योरिटीज एक ट्रस्ट के जरिए जारी की जाएंगी और इसके पीछे रिलायंस के इन्फ्रास्ट्रक्चर और टेलीकॉम डिविजन से जुड़े लोन होंगे. जानकारों का मानना है कि यह कदम रिलायंस के आर्थिक ढांचे को और मजबूत करने की दिशा में एक अहम पहल है.
3 से 5 साल की मैच्योरिटी
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन सिक्योरिटीज की मैच्योरिटी 3 से 5 साल के बीच होगी और इस डील का प्रबंधन अंतरराष्ट्रीय इन्वेस्टमेंट बैंक बार्कलेज पीएलसी कर रहा है. हालांकि, फिलहाल रिलायंस और बार्कलेज—दोनों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. यह डील ऐसे समय में हो रही है जब रिलायंस,जो भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है और दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनिंग सुविधाएं चलाती है,अंतरराष्ट्रीय हालातों के बीच आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है. खासतौर पर, भारत और अमेरिका के बीच रूस से तेल खरीद को लेकर चल रहे तनाव के संदर्भ में यह डील अहम मानी जा रही है.
नया रिकॉर्ड बना सकती है रिलायंस
भारत में सेक्रिटाइजेशन (यानि प्रतिभूतिकरण) का बाजार अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है, लेकिन इसमें तेजी आ रही है. ICRA की जून 2025 की रिपोर्ट बताती है कि इस फाइनेंशियल ईयर के अंत तक यह बाजार 2.5 लाख करोड़ रुपये को पार कर सकता है. रिलायंस की यह डील इस सेगमेंट में एक नया बेंचमार्क साबित हो सकती है.
भारत में ऐसी डील दो तरह से होती हैं, पास-थ्रू सर्टिफिकेट्स (PTCs) और डायरेक्ट असाइनमेंट के जरिए. रिलायंस की यह डील PTC फॉर्मेट में होगी, जिससे निवेशकों को एक मजबूत और हाई-क्वालिटी सिक्योरिटी में निवेश का मौका मिलेगा. अब तक यह मार्केट ज़्यादातर NBFCs (नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों) के हाथ में रहा है, लेकिन रिलायंस की एंट्री से इस सेक्टर में नई हलचल आ सकती है.
सितंबर तक डील पूरी होने की उम्मीद
माना जा रहा है कि यह पूरा ट्रांजैक्शन सितंबर के मध्य तक पूरा हो सकता है. रिलायंस इससे पहले भी अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कई नए और इनोवेटिव तरीके आजमा चुकी है. यह डील न सिर्फ रिलायंस के लिए एक रणनीतिक फाइनेंशियल कदम होगी, बल्कि यह भारत के पूंजी बाजार के लिए भी एक मिसाल बन सकती है.