जिन 3 बड़े मुद्दों पर फ्रंटफुट पर खेली कांग्रेस, उन्हीं पर एकदम क्यों उलट रहे थरूर?

ऑपरेशन सिंदूर, टैरिफ के बाद अब चीन के मुद्दे पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पार्टी से उलट राय रखी है. थरूर ने कहा कि पीएम मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बातचीत संतुलन बहाल करने की दिशा में एक आवश्यक कदम है. उन्होंने उम्मीद जताई सरकार अपने रुख पर कायम रहेगी. थरूर से पहले कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा था.

कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीजिंग के सामने झुकने और पाकिस्तान-चीन ‘जुगलबंदी’ पर चुप्पी साधने का आरोप लगाया था. कांग्रेस के ही दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने भी इसपर सरकार को आगाह किया. मनीष तिवारी ने कहा कि चीन पर अत्यधिक निर्भरता अपनी ही कीमत पर आती है.

शशि थरूर ने क्या कहा?

कांग्रेस जहां चीन के मुद्दे पर सरकार को घेर रही है. वहीं, विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष थरूर ने कहा कि शी जिनपिंग के साथ मोदी की बातचीत पिछले साल के अंत में शुरू हुई मधुरता की अगली कड़ी लगती हैकांग्रेस सांसद ने कहा कि ट्रंप ने जो किया है, उसके बाद यह और भी जरूरी हो गया है.

उन्होंने कहा कि हम दोनों महाशक्तियों के शिकार होने का जोखिम नहीं उठा सकते. हमें कम से कम दोनों के साथ कुछ व्यावहारिक संबंध बनाने होंगे, और चूंकि अमेरिका के साथ संबंध स्पष्ट रूप से एक बुरे दौर से गुजर रहे हैं, इसलिए हमें चीन के साथ संबंधों को मज़बूत करने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा.

ऑपरेशन सिंदूर और टैरिफ पर क्या बोले थे?

ये कोई पहला मौका नहीं है जब थरूर पार्टी लाइन से हटकर बयान दिए हैं. उन्होंने टैरिफ और ऑपरेशन सिंदूर पर भी बयान दिया था. टैरिफ पर एक ओर जहां कांग्रेस सरकार पर हमलावर रही तो वहीं थरूर का रुख सॉफ्ट रहा.

अमेरिका के ट्रैफिक वाले कदम को अनावश्यक बताते हुए थरूर ने कहा, ट्रंप ने चीन या यूरोपीय संघ पर ऐसे दंडात्मक कदम नहीं उठाए हैं, जबकि दोनों ही देश मास्को के साथ कहीं ज़्यादा ऊर्जा व्यापार करते हैं. उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में यह भी कहा कि अमेरिका खुद अपने उद्योगों के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम और अन्य रसायन खरीदता है.

कांग्रेस नेता ने सरकार से आग्रह किया कि वह टैरिफ पर बराबरी करके और अमेरिका से परे व्यापार संबंधों का विस्तार करके जवाबी कार्रवाई करे. ऑपरेशन सिंदूर पर तो थरूर खुलकर मोदी सरकार के साथ खड़े रहे. सरकार ने तो भारत का पक्ष रखने के लिए उन्हें विदेश भी भेजा था. उन्होंने इस जिम्मेदारी को खूब निभाया और पाकिस्तान को धोया.

क्यों पार्टी के उलट बयान देते रहते हैं थरूर?

थरूर विदेश मामलों में खासतौर से पार्टी से अलग बयान देते हैं. जानकार इसकी वजह उनका महत्वाकांक्षी होना बताते हैं. थरूर विदेश मामलों के एक्सपर्ट रहे हैं. वह संयुक्त राष्ट्र में रह चुके हैं. बताया जाता है कि सलमान खुर्शीद को विदेश मामलों के विभाग का प्रमुख बनाए जाने से थरूर नाराज हैं.

थरूर केरल से आते हैं. 2026 में वहां पर चुनाव है. सीएम पद पर उनकी पहले से नजर रही है. कहा जाता है अगर इस बार पार्टी उनको सीएम फेस नहीं बनाई तो वह अलग राह चुन सकते हैं. बीजेपी उनको दोनों हाथों से लपक भी लेगी, क्योंकि उसको केरल में बड़ा चेहरा चाहिए.

इसके अलावा वह 2029 को लेकर भी अपना सियासी भविष्य तलाश रहे हैं. केरल में अगर बात नहीं बनती है तो उनकी नजर 2029 पर भी है. अगर फिर से मोदी सरकार सत्ता में आती है तो बीजेपी उनको इनाम देने से शायद ही पीछे हटे. जानकार कहते हैं कि विदेश मंत्री के तौर पर उनका पक्ष मजबूत रहा है, इसके अलावा HRD मिनिस्ट्री में भी वह काम कर चुके हैं. अगर विदेश मंत्रालय में सब कुछ सेट नहीं बैठा तो उनके सामने HRD मिनिस्ट्री का ऑप्शन दिया जाता है.

विचारधारा न बन जाए बाधा

संघ परिवार के गलियारों में थरूर की विचारधारा ही वह रास्ता है जहां उन्हें झटका लगा सकता है. हम भारत को हिंदू पाकिस्तान नहीं बनने दे सकते… जैसे बयानों के लिए वह संघ परिवार के गुस्से का शिकार हुए थे. उनके दक्षिणपंथी रुख की राह में अगर कभी ऐसा हुआ तो भी, संभावित रूप से अड़चनें पैदा कर सकते हैं.

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Pradesh Samna
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