पितृ पक्ष पितरों को समर्पित वह अवधि है, जिसमें उनके निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि कर्मकांड किए जाते हैं. पितृ पक्ष को आमतौर पर श्राद्ध भी कहते हैं, जो कि पूरे 15 दिनों तक चलता है. पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है, जिसका समापन अश्विन अमावस्या पर होता है. इस बार श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक चलेगा. अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए पितृ पक्ष को बहुत ही शुभ माना जाता है.
15 दिवसीय इस अवधि में पूर्वजों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है. हालांकि, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनको नजरअंदाज करने पर पितृ दोष लग सकता है. आइए जानें कि पितृ पक्ष में श्राद्ध के नियम क्या हैं.
श्राद्ध के नियम क्या हैं?
- पितरों के लिए किया गया श्राद्ध हमेशा कृष्ण पक्ष में करना चाहिए. इसी तरह श्राद्ध और तर्पण आदि के लिए पूर्वाह्न की बजाय अपराह्न का समय ज्यादा पुण्य दायी माना गया है.
- धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान कभी भी पूर्वाह्न, शुक्लपक्ष और अपने जन्मदिन के दिन श्राद्ध नहीं करना चाहिए. कहते हैं कि इस समय पर किए गए श्राद्ध का फल नहीं मिलता है.
- श्राद्ध से जुड़े कार्य शाम को सूरज डूबते समय और रात के समय कभी नहीं करने चाहिए, क्योंकि इसे राक्षसी बेला कहा गया है. इस दौरान किए गए श्राद्ध का फल नहीं प्राप्त होता है.
- पितृ पक्ष में श्राद्ध कभी भी दूसरे की जमीन पर नहीं करना चाहिए. अगर खुद के घर या जमीन पर श्राद्ध करना संभव न हो तो किसी देवालय, तीर्थ, नदी किनारे, जंगल में जाकर करना चाहिए.
- श्राद्ध के भोजन को ग्रहण करने के लिए कम से कम एक या तीन ब्राह्मण को बुलाना चाहिए. श्राद्ध के कार्य के लिए गाय के घी और दूध का इस्तेमाल करना चाहिए.
- श्राद्ध में किसी ब्राह्मण को श्रद्धा और आदर के साथ आमंत्रित करना चाहिए. ब्राह्मण को श्राद्ध का भोजन कराते समय या दान करते समय अभिमान नहीं करना चाहिए.
- श्राद्ध का भोजन ब्राह्मण को मौन रखकर ग्रहण करना चाहिए और उसे व्यंजनों की या फिर श्राद्ध करवाने वाले को प्रसन्न करने के लिए प्रशंसा नहीं करना चाहिए.
- पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में किसी भी दोस्त को नहीं बुलाना चाहिए. कहते हैं कि श्राद्ध के भोजन पर मित्र को बुलाने से श्राद्ध पुण्य हीन हो जाता है.
- पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए हमेशा कुतपकाल में ही दान करना शुभ और पुण्यदायी माना गया है. श्राद्ध का भोजन गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों के लिए भी निकालना चाहिए.
- पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध का भोजन बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए. इस बात का खास ध्यान रखें कि दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन नहीं बनाना चाहिए.