क्या है तेलंगाना का कालेश्वरम प्रोजेक्ट जिस पर छिड़ी सियासत, रेड्डी सरकार और BRS आमने-सामने, अब होगी CBI जांच देश By Nayan Datt On Sep 1, 2025 तेलंगाना में कालेश्वरम प्रोजेक्ट सुर्खियों में बना हुआ है. इस प्रोजेक्ट को लेकर रेवंत रेड्डी सरकार और बीआरएस आमने-सामने आ गई है. मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने प्रोजेक्ट को लेकर सीबीआई जांच की घोषणा की है. विधानसभा में कालेश्वरम परियोजना पर न्यायिक आयोग (judicial commission) की रिपोर्ट पर हुई चर्चा के अंत में सोमवार तड़के बोलते हुए रेड्डी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में अंतर्राज्यीय मुद्दे, विभिन्न केंद्रीय और सरकारी विभाग और एजेंसियां शामिल हैं, इसलिए इस जांच को सीबीआई को सौंपना सही है. यह भी पढ़ें सड़क पर खड़ी थी खून से सनी लावारिस स्कूटी, अंधेरे में धब्बों… Sep 1, 2025 एकाधिकार और दबदबे की नीति खतरनाक… SCO के मंच से पीएम मोदी ने… Sep 1, 2025 सीएम ने कहा कि राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण (एनडीएसए) और न्यायिक आयोग की रिपोर्टों ने इस परियोजना से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर गहन और व्यापक जांच की जरूरत पर जोर दिया है. न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कई खामियों और अनियमितताओं की पहचान की है, जिन पर आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है. क्या है यह प्रोजेक्ट? केएलआईपी (KLIP) गोदावरी नदी पर स्थित एक बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना (Multi-Stage Irrigation Project) है, जो तेलंगाना के भूपालपल्ली जिले के कालेश्वरम में है. कालेश्वरम परियोजना का निर्माण बीआरएस सरकार के कार्यकाल में हुआ था. परियोजना का शिलान्यास 2016 में किया गया था. इसका मकसद तेलंगाना में खेती, पीने के पानी और उद्योगों के लिए पानी उपलब्ध कराना था. तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने इसे तेलंगाना की जीवनरेखा कहा था. साथ ही यह दुनिया की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई योजनाओं में से एक मानी जाती है. कालेश्वरम का असर प्राणहिता और गोदावरी नदियों के मिलने की जगह तक है. यह 1,800 किलोमीटर से भी लंबी नहरों के जाल (canal network) से पानी पहुंचाती है. इस परियोजना की परिकल्पना बीआरएस सरकार ने की थी, जिसका नेतृत्व के. चंद्रशेखर राव कर रहे थे. इसका मकसद तेलंगाना के 13 जिलों में 16 लाख एकड़ से ज्यादा भूमि को सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराना और मौजूदा आयाकट को स्थिर करना था. इसका टारगेट गोदावरी नदी के 240 टीएमसी फीट पानी को संग्रहित और वितरित करना है, जिसमें से 169 टीएमसी फीट सिंचाई के लिए, 30 टीएमसी फीट हैदराबाद को पेयजल के लिए, 16 टीएमसी फीट विभिन्न और औद्योगिक उपयोगों के लिए और 10 टीएमसी फीट रास्ते में आने वाले गांवों को पेयजल आपूर्ति के लिए प्रस्तावित है. विवादों में रहा प्रोजेक्ट कालेश्वरम परियोजना शुरू से ही विवादों में रही. पहले इसका स्थान तुम्मिडीहट्टी तय हुआ था, लेकिन बाद में सरकार ने इसे मेडिगड्डा शिफ्ट कर दिया. इसकी वजह बताई गई कि वहां पानी उपलब्ध नहीं है, जबकि केंद्रीय जल आयोग (CWC) की रिपोर्ट में वहां 200 टीएमसी से ज्यादा पानी बताया गया था. आरोप यह भी है कि बैराज मजबूत नींव पर नहीं, बल्कि कमजोर नींव पर बनाए गए, जिस वजह से सुंडिला बैराज धंस गया और अन्नाराम और सुंडिला बैराजों में दरारें आईं. CBI जांच की घोषणा कांग्रेस ने चुनावी वादे में इसकी जांच की बात कही थी. सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष की अगुवाई में न्यायिक आयोग बनाया. 15 महीने की जांच में उन्होंने 110 से ज्यादा गवाहों से पूछताछ की, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर और मंत्री टी. हरीश राव भी शामिल थे. अब सरकार विधानसभा में रिपोर्ट पर चर्चा कर रही है और सभी दलों से आगे की कार्रवाई पर सुझाव ले रही है. इसी के बाद अब सीबीआई जांच की घोषणा की गई है. वहीं, बीआरएस का कहना है कि परियोजना को सभी जरूरी मंजूरियां मिली थीं और विधानसभा ने भी इसे मंजूरी दी थी. रेड्डी ने कहा कि कालेश्वरम परियोजना के लिए जो कर्ज पर अब तक सरकार 49,835 करोड़ रुपये चुका चुकी है. इसमें से 29,956 करोड़ रुपये ब्याज और 19,879 करोड़ रुपये मूलधन के तौर पर दिए गए. उन्होंने बताया कि उन्होंने केंद्र से बात करके 26,000 करोड़ से ज़्यादा का कर्ज पुनर्गठन (restructure) कराया. उनका आरोप था कि बीआरएस सरकार ने ऊंचे ब्याज पर कर्ज लिया और जनता का पैसा लूटने के लिए बैराज की जगह तुम्मिडीहट्टी से बदलकर मेडिगड्डा कर दी, जबकि रिटायर्ड इंजीनियरों की रिपोर्ट इसके खिलाफ थी. आयोग की रिपोर्ट में क्या कहा गया? सरकार ने रविवार को पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस पी.सी. घोष की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में रखी. आयोग ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर को कानून के अनुसार जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और कार्रवाई करना राज्य सरकार पर निर्भर है. बीआरएस ने विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट किया और आरोप लगाया कि उन्हें अपनी बात रखने का समय नहीं दिया गया. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि उस समय सिंचाई मंत्री मनमाने आदेश देते थे और वित्त मंत्री लापरवाह थे, लेकिन तीनों बैराज की योजना, निर्माण और संचालन में अनियमितताओं की सीधी जिम्मेदारी तत्कालीन मुख्यमंत्री पर आती है. Share