जलाया, काटा… लेकिन खत्म नहीं हुआ अस्तित्व; हजारों साल से ‘जिंदा’ है ये पेड़, मेंटेनेंस पर खर्च होंगे 1.6 करोड़

यह कहानी एक पेड़ की है, जो हजारों वर्षों से भारत के बदलते इतिहास का गवाह रहा है. इसने सम्राट अशोक का स्वर्णिम काल देखा, स्वतंत्रता संग्राम की हलचल महसूस की. महात्मा बुद्ध को अपनी छांव दी. इन सबके बीच, तमाम विपदाएं भी झेलीं. इस पेड़ को जलाया गया, काटा गया. लेकिन इसकी जड़ों ने बार-बार जीवित होकर फिर से एक पेड़ का रूप ले लिया. यह वही बोधि वृक्ष है, जो बिहार के गया जिले में स्थित है.

इतिहास, आस्था और चमत्कारों से जुड़ी एक अद्भुत विरासत बोधि वृक्ष.है. ‘बोधि’ शब्द का अर्थ है ‘ज्ञान’ और ‘वृक्ष’ यानी पेड़ इस तरह यह बना ज्ञान का पेड़. यह पवित्र वृक्ष बिहार के गया जिले के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में स्थित है. माना जाता है कि ईसा पूर्व 531 में महात्मा बुद्ध ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या कर जीवन का परम सत्य प्राप्त किया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र वृक्ष को तीन बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, फिर भी यह हर बार चमत्कारिक रूप से फिर से उग आया?

सम्राट अशोक की रानी ने कटवा दिया था ये पेड़

इस पेड़ को लेकर कई कहानियां हैं. ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में जब सम्राट अशोक बौद्ध धर्म अपना चुके थे. किंवदंती है कि अशोक की पत्नी तिष्यरक्षिता ने ईर्ष्या में आकर चोरी-छिपे इस पेड़ को कटवा दिया. उस समय सम्राट किसी यात्रा पर थे. हालांकि, वृक्ष पूरी तरह नष्ट नहीं हो सका और कुछ ही वर्षों में उसकी जड़ों से फिर एक नया पेड़ उग आया. यह बोधि वृक्ष की दूसरी पीढ़ी माना जाता है, जो करीब 800 वर्षों तक जीवित रहा.

बंगाल के राजा ने आग से नष्ट करने की कोशिश की

इस पेड़ पर दूसरी बार फिर विपदा आई. सातवीं शताब्दी में बंगाल के राजा शशांक, जो बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी था, उसने इस वृक्ष को जड़ से खत्म करने की कोशिश की. उसने पेड़ को कटवाया और उसकी जड़ों में आग भी लगवा दी, लेकिन फिर भी पेड़ पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ. कुछ वर्षों बाद उसकी जड़ों से एक और वृक्ष उग आया, जिसे तीसरी पीढ़ी का बोधि वृक्ष माना जाता है. यह लगभग 1250 वर्षों तक रहा.

झेली प्राकृतिक आपदा

लेकिन वर्ष 1876 में आई एक प्राकृतिक आपदा में यह वृक्ष पूरी तरह नष्ट हो गया. इसके बाद ब्रिटिश अधिकारी लॉर्ड कनिंघम ने 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरा से बोधि वृक्ष की एक शाखा मंगवाकर यहां पुनः स्थापित कराया. यह वर्तमान में बोधगया में स्थित चौथी पीढ़ी का वृक्ष है.

बोधि वृक्ष का श्रीलंका से कनेक्शन

सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म प्रचार हेतु श्रीलंका भेजा था. उन्होंने साथ में बोधि वृक्ष की टहनी भी दी थी, जिसे अनुराधापुरा में लगाया गया. वह वृक्ष आज भी वहां जीवित है और श्रीलंका की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों में शामिल है. अनुराधापुरा श्रीलंका की आठ विश्व धरोहर स्थलों में से एक है.

भारत में अन्य स्थानों पर भी बोधि वृक्ष की उपस्थिति

मध्यप्रदेश के सलामतपुर की पहाड़ी (भोपाल और विदिशा के बीच) पर भी बोधि वृक्ष की एक शाखा मौजूद है. यह पेड़ वर्ष 2012 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे द्वारा भारत दौरे के दौरान लगाया गया था. इस पेड़ की सुरक्षा में 24 घंटे पुलिस तैनात रहती है और इसके रखरखाव पर हर साल 12 से 15 लाख रुपये तक का खर्च आता है.

रखरखाव पर खर्च होंगे डेढ़ करोड़ रुपये

बोधिवृक्ष के संरक्षण के लिए विशेष योजना तैयार की गई है. अब तक इसके रखरखाव पर सालाना 5 लाख रुपये खर्च किए जा रहे थे, लेकिन नए समझौते के तहत यह बजट बढ़ाकर 16 लाख रुपये प्रति वर्ष कर दिया गया है. मार्च 2025 में बोधगया टेंपल मैनेजमेंट कमिटी (BTMC) ने केंद्रीय वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून के साथ बोधिवृक्ष के रखरखाव के लिए अगले 10 वर्षों के लिए 1.6 करोड़ रुपये का समझौता किया है.

यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है बोधिवृक्ष

बोधिवृक्ष की संपूर्ण देखभाल की जिम्मेदारी बीटीएमसी (BTMC) के अधीन है, जो FRI देहरादून के साथ समय-समय पर वैज्ञानिक सलाह और सहयोग के लिए अनुबंध करता है. बोधिवृक्ष का रूटीन चेकअप हर 90 दिनों में एक बार अनिवार्य रूप से किया जाता है, जिसे FRI के विशेषज्ञों की टीम अंजाम देती है. बोधिवृक्ष यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है. यही वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

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Pradesh Samna
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