धर्म के नाम पर राजनीति..AIMIM का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-जो पार्टियां जातियों पर निर्भर…

सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसालिमीन (AIMIM) के पंजीकरण को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की. कोर्ट ने पार्टी को राहत देते हुए रजिस्ट्रेशन को रद्द करने वाली अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता तिरुपति नरशिमा मुरारी ने दावा किया था कि पार्टी धार्मिक आधार पर वोट मांगती है, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है. जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पुराने धार्मिक ग्रंथों की किसी भी शिक्षा में कोई बुराई नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि कुछ दल ऐसे हैं जो जातिगत भावनाओं पर निर्भर करते हैं, यह भी उतना ही खतरनाक है. व्यापक परिप्रेक्ष्य सुधारों का है. किसी भी पक्ष को शामिल किए बिना, आप सामान्य मुद्दे उठा सकते हैं. जरूरत पड़ने पर अदालत ध्यान रखेगी.

याचिकाकर्ता का कहना है कि AIMIM पूरी तरह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है. इसलिए इसकी मान्यता रद्द की जानी चाहिए. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए याचिका खारिज कर दी है.

क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान में अल्पसंख्यकों को कुछ अधिकारों की गारंटी दी गई है. पार्टी के घोषणापत्र में कहा गया है कि वह उन अधिकारों की रक्षा के लिए काम करेगी. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह समाज के हर पिछड़े वर्ग के लिए है, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पार्टी का संविधान यही कहता है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टी का संविधान भारत के संविधान के खिलाफ नहीं है. यह तर्क कि AIMIM किसी विशेष समुदाय के हित में काम करना चाहती है, खारिज किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को किसी विशेष दल/व्यक्ति पर आरोप लगाए बिना, सुधारों की मांग करते हुए व्यापक दायरे में नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी है.

वकील विष्णु जैन के तर्क पर कोर्ट का जवाब

वकील विष्णु जैन की तरफ से तर्क दिया गया कि वह मुसलमानों में इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देगी. एक राजनीतिक दल, जो भविष्य में सत्ता में आएगा. भेदभाव यह है कि आज अगर मैं चुनाव आयोग के सामने जाकर हिंदू नाम से पंजीकरण करवाऊं. जस्टिस कांत ने कहा कि अगर चुनाव आयोग वेदों या किसी भी चीज़ की शिक्षा पर आपत्ति जताता है, तो कृपया उचित मंच पर जाएं. कानून उसका ध्यान रखेगा. पुराने ग्रंथ, किताबें या साहित्य पढ़ने में कोई बुराई नहीं है. कानून में बिल्कुल भी कोई प्रतिबंध नहीं है.

दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला पढ़ने की दी सलाह

कोर्ट ने वकील के सवाल पर कहा कि यह संविधान के दायरे में ही है. अगर कोई राजनीतिक पार्टी कहती है कि हम संविधान द्वारा संरक्षित बातों की शिक्षा देंगे. इस पर जैन ने कहा कि वह पार्टी कहती है कि वह मुसलमानों के बीच एकता के लिए प्रयास करेगी, सिर्फ मुसलमान ही क्यों? हम सब क्यों नहीं? जस्टिस कांत ने कहा कि यह आपको खंड 8 में मिलेगा. कृपया दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का पैरा 10 पढ़ें, जो वचन देने वाले पक्ष ने 1989 में दिया था.

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Pradesh Samna
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