एक सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के लिए क्या-क्या कर सकता है? मंडी को ऐसे राहत पहुंचा सकती हैं कंगना रनौत
हिमाचल प्रदेश के मंडी समेत कई जिलों में बाढ़ कहर बरपा रही है, जिसके चलते लाखों लोग प्रभावित हुए हैं. कुदरत के कहर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 20 जून को मानसून ने एंट्री मारी थी, जिसके बाद से मरने वालों की संख्या 78 हो गई है. अकेले मंडी जिले में 14 लोगों की मौत हुई है. अनुमान लगाया गया कि बाढ़ की वजह से 572 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है. बाढ़ से बिगड़े हालात का जायजा लेने के लिए मंडी से भारतीय जनता पार्टी की सांसद कंगना रनौत भी पहुंचीं, जहां उन्होंने पीड़ितों से बातचीत की. इस दौरान मंडी सांसद ने फंड न होने की बात कही.
कंगना ने रविवार यानी 6 जुलाई को आपदाग्रस्त सिराज विधानसभा का दौरा किया. उन्होंने राज्य की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार पर निशाना साधा. उनका कहना है कि हम पहुंच तो जाते हैं. हमारा दायरा बहुत कम है, लेकिन उनके पास फंड नहीं है. केंद्र जो भी फंड देता है वो राज्य सरकार के जरिए आता है. सांसद के काम सीमित होते हैं, ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है क्या कोई सांसद अपने क्षेत्र में आपदा के समय राहत कार्य नहीं कर सकता है या उसके पास बिल्कुल भी फंड नहीं होता है? आइए जानते हैं कि एक सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के लिए क्या-क्या कर सकता है…
कंगना रनौत ने क्या दिया बयान?
सबसे पहले बात करते हैं कि बीजेपी सांसद व एक्ट्रेस कंगना रनौत ने क्या कहा है, ‘केंद्र सरकार ने तुरंत सेना भेजकर राहत अभियान चलाया. स्थानीय स्तर पर हमने प्रभावित परिवारों को राहत सामग्री पहुंचाई. प्रधानमंत्री भले ही विदेश यात्रा पर हों, लेकिन उन्हें यहां क्या हो रहा है, इसकी जानकारी है और केंद्र सरकार हरकत में आ गई है. एक सांसद के तौर पर मेरा काम फंड लाना और जमीनी हकीकत को सरकार तक पहुंचाना है. मंडी आने के बाद यहां की स्थिति देख काफी दुख हुआ कि लोगों के सामने ऐसी त्रासदी हुई. काफी नुकसान हुआ है.’
कंगना से जबा देरी से मंडी पहुंचने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, ‘मेरा कोई कैबिनेट तो है नहीं, मेरे दो भाई हैं जो साथ-साथ चल रहे हैं. मैं पहुंच तो जाती हूं, मेरा काम है केंद्र से राहत कोष लेकर आना, मेरे पास अपना तो कोई फंड है नहीं, न कोई अधिकारी हैं और न ही कोई कैबिनेट है. सांसद के काम सीमित होता है, हम भी पहाड़ी हैं, हिमाचली हैं. केंद्र का फंड राज्य सरकार के पास आता है, ये लोग पैसा खाकर बैठे हैं. मेरे पास तो फंड आएगा नहीं, देना तो उन्हीं (हिमाचल सरकार) को है.’
एक सांसद की भूमिका और जिम्मेदारियां
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में संसद सदस्य यानी एमपी का पद बहुत महत्वपूर्ण है. उसकी कई भूमिकाएं और जिम्मेदारियां होती हैं, चाहे वह सत्ताधारी पार्टी से हो या फिर विपक्ष से. कानून बनाने से लेकर प्रोग्राम को डिजाइन करना और उनकी निगरानी करना सांसद की जिम्मेदारी होती है. हालांकि प्रोग्राम्स के क्रियान्वयन में उनकी कोई भूमिका नहीं होती है. सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है.
एक सांसद के पास ‘पर्स की शक्ति’ की जिम्मेदारी भी होती है, जिसका मतलब होता है कि सरकार के खर्चों को मंजूरी देने और नियंत्रित करने की शक्ति. यह शक्ति उन्हें बजट और कराधान पर नियंत्रण रखने के कारण हासिल होती है. सांसद सरकार के वित्तीय मामलों में भूमिका निभाते हैं और इस शक्ति का उपयोग वे यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि सरकार का पैसा प्रभावी ढंग से और जनता के हित में खर्च किया जाए.
सांसद अपने क्षेत्र में क्या-क्या कर सकता है?
1993 में शुरू की गई सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीएलएडीएस) के तहत हर सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र में विकास के लिए हर साल 5 करोड़ रुपए दिए जाते हैं. इस योजना का संचालन सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की ओर से किया जाता है. एमपीएलएडीएस के तहत सांसद निधि को जिले में संबंधित कार्यान्वयन एजेंसियों के जरिए भेजा जाता है.
सांसद MPLADS के तहत अपने क्षेत्र में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की सिफारिश कर सकता है. इसमें सड़कें, स्कूल, अस्पताल, पेयजल सुविधाएं और अन्य बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा, सांसद जनता की समस्याओं को संसद में उठाता है और सरकार से उनके समाधान के लिए अपील करता है. साथ ही साथ वह अपने क्षेत्र में सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए काम कर सकता है. इसके अलावा प्राकृतिक आपदाओं के समय अपने क्षेत्र के लोगों को राहत प्रदान करने में मदद कर सकता है. बाढ़, सूखा, महामारी जैसी स्थिति में राहत सामग्री, राशन, मेडिकल सहायता, राहत शिविर लगाने के साथ-साथ और सरकार से राहत पैकेज की मांग कर सकता है.