पूरा नौतपा बिना तपे निकल गया. भुवन भास्कर भगवान सूर्य रोहिणी नक्षत्र से निकलकर मार्गशीर्ष नक्षत्र में प्रवेश कर चुके हैं. कायदे से इस नक्षत्र में बारिश की फुहारे पड़नी चाहिए, लेकिन सबकुछ उल्टा हो रहा है. शायद सूर्यदेव ही कन्फ्यूज हो गए हैं या फिर उनकी नक्षत्रों से बन नहीं रही. इसलिए वह अपनी उल्टी चाल चल रहे हैं. आइए, इस प्रसंग में सूर्य देव की इस गति की विवेचना करने की कोशिश करते हैं और इसका मतलब समझने की कोशिश करते हैं.
मार्गशीर्ष नक्षत्र में होती है मानसून की एंट्री
इन नौ दिनों के बाद भगवान सूर्य धीरे धीरे मार्गशीर्ष नक्षत्र की ओर बढ़ते हैं. इससे वह पृथ्वी से दूर होने लगते हैं. यही वह समय होता है जब मानसून की एंट्री के लिए माहौल तैयार होता है. इस समय में हल्की फुल्की बारिश भी होती है, जिसे प्री मानसून की बारिश कहते हैं. फिर 15 दिनों तक इस नक्षत्र में रहने के बाद सूर्य देव आद्रा में प्रवेश करते हैं. इस आद्रा में अच्छी बारिश होती है. इस बारिश की वजह से आम की फसल पकती है और किसान धान की बुवाई शुरू करते हैं.
रोहिणी में नहीं पड़ी गर्मी
अब चूंकि नक्षत्रों के खेल में पूरा सिस्टम डिस्टर्ब हो चुका है. इसलिए पहले इस खेल को समझते हैं. भगवान सूर्य जब रोहिणी में थे, यानी नौतपा में थे, उस समय कई बार बारिश हो गई और तापमान सामान्य कम रहा. मान्यता है कि ऐसी परिस्थिति का सीधा असर मानसून की बारिश पर पड़ता है. भरसक बारिश कम होती है और होती भी है तो एक बारिश से दूसरी बारिश के बीच का अंतर बढ़ जाता है. इसकी वजह से खरीफ की फसल सूखने लगती है. इस बात को मौसम वैज्ञानिकों ने भी माना है.
फसल की बर्बादी के संकेत
मौसम विभाग के दिल्ली केंद्र से जारी रिपोर्ट के मुताबिक इस साल बारिश तो खूब होगी, लेकिन एक बारिश से दूसरी बारिश के बीच समय का अंतर काफी हो सकता है. अब जान लीजिए कि मार्गशीर्ष में इतनी गर्मी का क्या असर होगा. दरअसल मार्गशीर्ष में इतनी गर्मी की वजह से मानसून में अवरोध पैदा होगा. इसकी वजह से बहुत संभव है कि आद्रा नक्षत्र में बारिश ना हो. यदि ऐसा हुआ तो मुख्य रूप से आम और धान की फसल पर बुरा असर होगा. आम की फसल तो केमिकल की मदद से पक जाएगी, लेकिन धान की फसल बर्बाद हो सकती है.
प्रचलित हैं ये कहावतें
मारवाड़ी में एक कहावत है कि “दोए मूसा, दोए कातरा, दोए तिड्डी, दोए ताव। दोयां रा बादी जल हरै, दोए बिसर, दोए बाव।।” अर्थात, पहले दो दिन हवा (लू) न चले तो चूहे अधिक होंगे. दूसरे दो दिन हवा न चले तो कातरे (फसलों को नष्ट करने वाले कीट) बहुत होंगे. तीसरे दो दिन हवा न चले तो टिड्डी दल आने की आशंका रहती है. चौथे दो दिन हवा न चले, तो बुखार आदि रोगों का प्रकोप रहता है. इसी प्रकार एक और कहावत है कि “नौतपा नव दिन जोए तो पुन बरखा पूरन होए” भी काफी प्रचलित है. इसका अर्थ है कि अगर नौतपा (सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश) के दौरान 9 दिन तक तेज गर्मी रहे, तो अच्छी बारिश होती है.
महाकवि घाघ ने कविता में बताया
इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए महाकवि घाघ ने लिखा है कि ‘आवत आदर ना दियो, जात ना दिनो हस्त, का करिहे ऊ पाहुना और का करिहें गृहस्थ’. इसका मतलब है कि यदि आद्रा नक्षत्र चढ़ते बारिश ना हो तो पूरी गृहस्थी चौपट हो सकती है और हथिया नक्षत्र जाते जाते ना बरसे फसल नहीं कट पाएगी. इसका एक और अर्थ है कि आपके घर कोई मेहमान आए और उसको आदर ना मिले तथा जाते समय उसके हाथ पर कुछ द्रव्य ना दिया जाए तो वह आपके बारे में अच्छा नहीं सोचेगा.