देश में पहली बार जाति के आधार पर जनगणना होने जा रही है. मोदी सरकार ने पिछले हफ्ते आगामी जनगणना के साथ जातियों की भी गिनती करने का फैसला किया है. जातिगत जनगणना को सामाजिक न्याय के लिए दरवाजा खोलने का पहला कदम बताया जा रहा है. कांग्रेस ने जातिगत जनगणना के फैसले का स्वागत करते हुए आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने की मांग उठा दी है. इसके साथ ही बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के घटक दलों ने ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण वाली रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की मांग की है.
मोदी सरकार जातीय जनगणना के जरिए सिर्फ जातियों का आंकड़ा ही नहीं जुटाएगी बल्कि ये भी पता लगाएगी कि उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति क्या है. ऐसे में ओबीसी आरक्षण के समीक्षा की रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट पहले ही राष्ट्रपति को सौंपी जा चुकी है, जिसे लागू करने की मांग उठने लगी है. इस तरह जातिगत जनगणना के साथ अगर सरकार रोहिणी कमीशन को अमलीजामा पहनाने का काम किया जाता है तो ओबीसी की दो बड़ी जातियां यादव और कुर्मी समुदाय के लिए सियासी टेंशन बढ़ा सकती हैं.