भारत अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के लिए पूरी दुनिया में पहचाना जाता है, लेकिन सामाजिक कुरीतियां आज भी मानवता को शर्मसार कर रही हैं. ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के पाटन थाना क्षेत्र के पौंडी ग्राम पंचायत के चपोद गांव में सामने आया, जहां जातिगत भेदभाव के कारण एक बुजुर्ग का अंतिम संस्कार 24 घंटे तक रुका रहा. इसके बाद पुलिस और जिला प्रशासन की मौजूदगी में बुजुर्ग का अंतिम संस्कार हुआ.
चपोद गांव के शिवकुमार चौधरी का निधन 25 मार्च हो गया था, जो कि अनुसूचित जाति से आते है. उनकी मृत्यु के बाद परिजनों और गांववालों ने तय किया कि गांव के बाहर स्थित मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा, लेकिन जब वे वहां शव लेकर पहुंचे, तो गांव के कुछ दबंगों ने उनका विरोध किया और अंतिम संस्कार करने से रोक दिया. विरोध कर रहे दबंगों का कहना था कि मुक्तिधाम के आसपास उनकी खेतों में फसल लगी हुई है और अंतिम संस्कार से वहां भीड़ जमा होने से फसल खराब हो सकती है.
आक्रोशित लोगों ने किया विरोध
इस घटना से आक्रोशित मृतक के परिजनों और अनुसूचित जाति के अन्य लोगों ने इसका विरोध किया और स्थानीय प्रशासन तक शिकायत पहुंचाई. शिकायत मिलने के बाद स्थानीय तहसीलदार और पुलिस मौके पर पहुंच गई, लेकिन समस्या का तत्काल समाधान नहीं हो सका. अगले दिन पुलिस और जिला प्रशासन की मौजूदगी में अंतिम संस्कार संपन्न कराया गया. इस घटना के बाद गांव में सार्वजनिक मुक्तिधाम की मांग तेज हो गई है.
लोगों ने कलेक्टर से की मुक्तिधाम निर्माण का मांग
अनुसूचित जाति के लोगों का कहना है कि पहले भी कई बार अंतिम संस्कार के दौरान ऐसी समस्याएं आई हैं, लेकिन प्रशासन ने अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया. इस घटना से आक्रोशित रविदास समाज के सदस्यों ने कलेक्टर दीपक सक्सेना से मुलाकात की और ज्ञापन सौंपकर गांव में तत्काल मुक्तिधाम निर्माण की मांग की. कलेक्टर ने तुरंत तहसीलदार को निर्देश दिया कि गांव में शासकीय भूमि पर मुक्तिधाम के लिए जगह चिन्हित की जाए ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े.
‘सम्मानपूर्वक नहीं करने दिया अंतिम संस्कार’
यह घटना न केवल जातिगत भेदभाव का उदाहरण है, बल्कि प्रशासन की उदासीनता को भी दर्शाती है. एक तरफ जहां देश तकनीकी और आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ अब भी समाज में जात-पात के आधार पर अंतिम संस्कार तक में भेदभाव किया जा रहा है. पूरे मामले में मृतक के परिजनों का कहना है कि हम अपने परिवार के सदस्य का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करना चाहते थे, लेकिन हमें रोका गया.
सार्वजनिक मुक्तिधाम
यह हमारे लिए बहुत दुखदायी था. इसके साथ ही रविदास समाज के अंतरण रोहितास ने बताया कि हमने कलेक्टर से मांग की है कि जल्द से जल्द गांव में एक सार्वजनिक मुक्तिधाम बनाया जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हो.चपोद गांव की यह घटना प्रशासन और समाज दोनों के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करती है. अंतिम संस्कार जैसे महत्वपूर्ण कार्य में जातिगत भेदभाव न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि समानता की राह में अब भी लंबा सफर तय करना बाकी है. अब देखना होगा कि प्रशासन मुक्तिधाम निर्माण की मांग को कितनी जल्दी पूरा करता है.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.