बिहार में ‘रोजा इफ्तार’ की बहार, कोई करे इनकार तो कई बेकरार, क्या मुसलमानों को साधने का यही है हथियार?

बिहार में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछाई जाने लगी है. चुनावी माहौल के बीच रमजान का महीना चल रहा है, जिसके चलते रोजा इफ्तार दावत की बहार देखने को मिल रही. सियासी पार्टियां रोजा इफ्तार के बहाने मुस्लिम समुदाय वोटबैंक को साधने की है, जिसके लिए नमाज पढ़ने वाली टोपी लगाने से लेकर गमछे को पहनने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. इस तरह मुस्लिम रंग में रचे-बसे हुए नेता नजर आ रहे हैं, किसी की दावत में जाने से मुस्लिम तंजी में इनकार कर रही तो किसी की महफिल में जाने को बेकरार हैं. इस तरह बिहार में मुस्लिम पॉलिटिक्स होती दिख रही है?

जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर और सीएम नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार दावत हो चुकी है. रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में रोजा इफ्तार पार्टी दी थी, जिसमें बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान सहित कई लोगों ने शिरकत की, लेकिन मुस्लिम तंजीमों के बॉयकाट के चलते महफिल सूनी रही. सोमवार को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और एलजेपी चिराग पासवान के द्वारा रोजा इफ्तार पार्टी रखी है. कांग्रेस की रोजा इफ्तार पार्टी भी होनी है. अब सबकी निगाहें इन पार्टियों पर टिकी हैं कि कौन-कौन इस पार्टी में शामिल होता है और कौन दूरी बनाए रखता है?

नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी का बॉयकाट

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास एक अणे मार्ग में रविवार को रोजा इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया था. वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू के रवैए से नाराज मुस्लिम संगठनों ने शिरकत नहीं किया. मुस्लिम संगठनों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इमारत-ए-शरिया, जमीयत उलेमा हिंद (अरशद मदनी, महमूद मदनी), जमीयत अहले हदीस, जमात-ए-इस्लामी हिंद, खानकाह मुजीबिया और खानकाह रहमानी जैसे अहम मुस्लिम तंजीमें नीतीश की दावत में शामिल नहीं हुए.

मुस्लिम संगठनों की तरफ से नीतीश कुमार को लिखे गए पत्र में कहा कि आपकी इफ्तार दावत का मकसद सद्भावना और भरोसा को बढ़ावा देना होता है, लेकिन ये भरोसा केवल औपचारिक, दावतों से नहीं बल्कि ठोस नीति और उपायों से होता है. आपकी सरकार का मुस्लिम समाज की जायज मांगों को नजरअंदाज करना, एक तरह की औपचारिक दावतों को निरर्थक बना देता

है. नीतीश की इफ्तार दावत में सिर्फ मुस्लिम रहनुमा की तौर पर सिर्फ मितन घाट के सज्जादानशीं हजरत सैयद शाह शमीमउद्दीन अहमद मुनअमी ने ही नीतीश कुमार के रोजा इफ्तार में शिरकत की थी. तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी को भी इफ्तार दावत का न्योता मिला था, लेकिन वो भी शरीक नहीं हुए. नीतीश कुमार के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है.

नीतीश के बाद लालू और चिराग की इफ्तार पार्टी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अपने आवास पर इफ्तार पार्टी के दावत देने के बाद सोमवार को पटना में दो बड़ी इफ्तार पार्टियां हो रही हैं. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और एलजेपी (आर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान भी इफ्तार पार्टी दे रहे हैं. दोनों ही नेताओं की इफ्तार पार्टी सोमवार को हो रही है. आरजेडी की इफ्तार पार्टी पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास पर हो रही है, जिसमें लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के साथ कई राजनीतिक हस्तियों के शामिल होने की संभावना है. कांग्रेस और वाम दलों के नेता भी शिरकत कर सकते हैं.

वहीं, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी पटना में हैं. रविवार शाम नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी में भाग लिया था. सोमवार को चिराग अपनी पार्टी की ओर से इफ्तार की दावत दे रहे हैं. उम्मीद है कि सीएम नीतीश कुमार भी चिराग पासवान की इफ्तार पार्टी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन मुस्लिम तंजीमों क्या नीतीश के इफ्तार पार्टी की तरह ही बॉयकाट करेंगी या फिर शामिल होंगी. हालांकि, चिराग भी एनडीए का हिस्सा हैं, वक्फ बिल पर भी उनका स्टैंड जेडीयू की तरह है. ऐसे में माना जा रहा है कि चिराग पासवान की इफ्तार पार्टी से भी मुस्लिम तंजीमें किनारा कर सकती हैं.

लालू यादव की इफ्तार पार्टी पर लोगों की निगाहें

पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव की इफ्तार पार्टी को राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि रविवार को नीतीश कुमार की रोजा इफ्तार पार्टी का देश के तमाम अहम मुस्लिम संगठनों ने बहिष्कार किया था और शामिल भी नहीं हुए. ऐसे में देखना है कि लालू यादव के रोजा इफ्तार महफिल में मुस्लिम तंजीमों में कौन शामिल होता है और कौन नहीं, लेकिन जिस तरह इमारत-ए-शरिया पर नीतीश कुमार की पकड़ कमजोर हुई है और आरजेडी का दखल बढ़ा है.

इमारत-ए शरिया के नीतीश के बॉयकाट का लेटर आरजेडी के ट्वीटर पर भी पोस्ट किया गया था. उस बिहार की सियासत पर राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं. माना जा रहा है कि लालू यादव की इफ्तार में तमाम मुस्लिम तंजीमों के लोग शामिल होकर सियासी संदेश दे सकते हैं.

मुस्लिम को साधने के लिए रोजा इफ्तार की दावत

बिहार में तकरीबन 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो प्रदेश की 243 विधानसभा सीटें में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. इस तरह मुस्लिम समुदाय बिहार में सियासी रूप से किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते है.

मुस्लिम वोटों की सियासी ताकत को देखते हुए लालू प्रसाद यादव से लेकर नीतीश कुमार और चिराग पासवान ही नहीं असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर तक मुस्लिम वोटों को अपने साथ जोड़ने की स्ट्रैटेजी पर काम कर रहे हैं. मुस्लिम वोटों को साधने के लिए रोजा इफ्तार पार्टी का आयोजन का सहारा ले रहे हैं ताकि, 2025 में जीत का परचम फहरा सकें.

बिहार में मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न कैसा रहा है?

2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की कुल 243 सीटों में से 24 मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे. इनमें से 11 विधायक आरजेडी, 6 कांग्रेस, 5 जेडीयू,1 बीजेपी और 1 सीपीआई (एमएल) से जीत दर्ज किए थे. बीजेपी ने दो मुस्लिम कैंडिडेट को उतारा था, जिनमें से एक जीत दर्ज की थी. साल 2000 के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीते थे.

2020 के विधानसभा चुनाव में 19 मुस्लिम विधायक चुनकर आए, जो 2015 के चुनाव से कम हो गए थे. 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की है. पार्टी ने 5 सीट जीती है. वहीं, अगर अन्य पार्टियों से जीते मुस्लिम उम्मीदवारों की बात करें तो राजद से 8, कांग्रेस से 4, भाकपा (माले) से एक और बसपा से एक मुस्लिम उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. इस तरह बिहार में मुस्लिम वोटर काफी अहम है, जिसके लिए ही सारे जतन किए जा रहे हैं.

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