आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सियासत में 11 साल तक एकछत्र राज किया और राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही. दिल्ली के सहारे पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन दिल्ली की सत्ता से बाहर होना आम आदमी पार्टी के बड़ा झटका रहा. दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार आम आदमी पार्टी में बड़ी ओवरहालिंग कर नए तरीके से संगठन को धार देने की कवायद की है, क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय रुतबे को भी बरकरार रखने की चुनौती खड़ी हो गई है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद AAP की सर्वोच्च इकाई पीएसी की अरविंद केजरीवाल के घर शुक्रवार को बड़ी बैठक हुई, जिसमें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने शिरकत किया. इस दौरान विधानसभा चुनाव की हार पर मंथन और संगठन में नेताओं की जिम्मेदारी को लेकर चर्चा हुए, जिसके बाद कई दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष को बदलने के साथ चार राज्यों में प्रभारी और सहप्रभारी नियुक्त की गई है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में नए अध्यक्ष बनाया गया है. इस तरह से आम आदमी पार्टी के बदलाव के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं?
आम आदमी पार्टी में अहम बदलाव
केजरीवाल के अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष की पद से गोपाल राय की छुट्टी कर दी गई है. गोपाल राय की जगह सौरभ भारद्वाज को सूबे में पार्टी की कमान सौंपी है. इसके अलावा मेहराज मलिक को जम्मू कश्मीर का अध्यक्ष बनाया गया है. गोपाल राय को गुजरात का प्रभारी तो दुर्गेश पाठक सह प्रभारी बनाया गया है. गोवा का प्रभारी पंकज गुप्ता को बनाया है, जिनके साथ दीपक सिंगला, आभाष चंदेला और अंकुश नारंग सह प्रभारी बनाया गया है. मनीष सिसोदिया को पंजाब का प्रभारी तो सत्येंद्रजैन सह प्रभारी हैं. संदीप पाठक को छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया है.
दिल्ली की कमान सौरभ भारद्वाज के हाथ
आम आदमी पार्टी का सियासी उदय दिल्ली की सियासत से हुआ है और एक दशक तक राज किया. ऐसे में दिल्ली चुनाव में मिली हार ने अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका था. केजरीवाल ने दिल्ली में प्रदेश संगठन की कमान संभाल रहे गोपाल राय से लेकर सौरभ भारद्वाज को सौंप दी है. भारद्वाज प्रदेश अध्यक्ष होंगे.दिल्ली के ग्रेटर कैलाश सीट से तीन बार विधायक रहे हैं, लेकिन इस बार बीजेपी की शिखा राय से हार गए हैं.
सौरभ भारद्वाज आम आदमी पार्टी के तेज तर्रार नेता माना जाते हैं जबकि गोपाल राय शांत स्वभाव वाले नेता हैं. दिल्ली में सियासी बदलाव के बाद आम आदमी पार्टी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. बीजेपी अब सत्ता में है और रेखा गुप्ता लगातार एक्टिव हैं. ऐसे में केजरीवाल ने दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष पद से गोपाल राय की छुट्टी पर सौरभ भारद्वाज की ताजपोशी कर दी है, दो हिंदुत्व की राजनीति के साथ आक्रमक पॉलिटिक्स करना जानते हैं.
बीजेपी की हिंदुत्व की पॉलिटिक्स को काउंटर करने के लिए भारद्वाज को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है. भारद्वाज विधायक रहते हुए अपने इलाके की मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ कराने का कार्यक्रम शुरू किया था. इतना ही नहीं भारद्वाज काफी पड़े लिखे नेता हैं और उनकी अपनी सियासी पहचान भी है. मीडिया के सामने अपनी बात को मजबूती से रखना जानते हैं. ब्राह्मण समाज से आते हैं, दिल्ली में ब्राह्मणों की आबादी अच्छी खासी है. इसी समीकरण को देखते हुए केजरीवाल ने दांव चला है.
मिशन 2027 पर केजरीवाल का फोकस
आम आदमी पार्टी में हुए सियासी बदलाव को अरविंद केजरीवाल के मिशन 2027 से जोड़कर देखा जा रहा है. आम आदमी पार्टी ने चार राज्यों में प्रभारी-सहप्रभारी की नियुक्ति की गई है, जिसमें से तीन राज्यों में 2027 में विधानसभा चुनाव होंगे.पंजाब, गुजरात और गोवा का विधानसभा चुनाव 2027 में है. आम आदमी पार्टी ने तीनों ही राज्यों में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिसके मद्देनजर ही अरविंद केजरीवाल ने अपने वरिष्ठ नेताओं की नियुक्त कर सेनापति तैनात कर दिया है.
दिल्ली की हार के बाद आम आदमी पार्टी के सामने पंजाब की सत्ता को बचाए रखने की चुनौती है. दो साल के बाद 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए सियासी तौर पर पंजाब काफी अहम है, जिसके चलते ही केजरीवाल ने अपने सबसे वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया को कमान सौंपी है और साथ ही सत्येंद्र जैन को सहप्रभारी बनाया गया है. आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के बाद सिसोदिया दूसरे नंबर के नेता माने जाते हैं. पार्टी के चर्चित चेहरा हैं तो सत्येंद्र जैन को दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक का जनक माना जाता है. यही वजह है कि केजरीवाल ने अपने सबसे भरोसेमंद नेता को पंजाब में लगाया है.
गुजरात की कमान गोपाल राय को मिली
गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पांच सीटें जीती थी और 13 फीसदी वोट मिले थे. 2027 में गुजरात विधानसभा चुनाव हैं, जिस वजह से ही अरविंद केजरीवाल ने गोपाल राय को प्रभारी बनाया है तो दुर्गेश पाठक को सहप्रभारी नियुक्त किया है. दोनों ही नेता अरविंद केजरीवाल के करीबी माने जाते हैं और यूपी के पूर्वांचल से आते हैं. गुजरात में पूर्वांचल के लोगों की ठीक-ठाक संख्या है. ऐसे में आम आदमी पार्टी गोपाल राय और पाठक के जरिए पार्टी के जनाधार को बचाए रखने के साथ उसे बढ़ाने की स्ट्रैटेजी के तहत लगाया है.
गोवा के 2022 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 2 सीटों के साथ 6.77 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी. AAP ने गोवा में कांग्रेस का गेम ही बिगाड़ दिया था. आम आदमी पार्टी अपने इस आधार को किसी भी सूरत में नहीं खोना चाहती है. इसीलिए केजरीवाल ने गोवा में अपने चार सबसे करीबी नेताओं को लगाने का फैसला किया है. गोवा का प्रभारी पंकज गुप्ता को बनाया है, जिनके साथ दीपक सिंगला, आभाष चंदेला और अंकुश नारंग सह प्रभारी बनाया गया है.
राष्ट्रीय रुतबे को बचाए रखने की चुनौती
दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने राष्ट्रीय रुतबे को बचाए रखने की है. आम आदमी पार्टी दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात में जीत दर्ज करने के बाद भी राष्ट्रीय पार्टी बनने का मुकाम हासिल कर सकी थी. दिल्ली चुनाव में हार जाने के बाद केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती उसे बचाए रखने की है. पंजाब, गोवा और गुजरात में अगर आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहता है तो काफी मुश्किल हो जाएगी. यही वजह है कि पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल पार्टी को सियासी आधार को हर हाल में बचाए रखने की कवायद में है, जिसके लिए पीएसी की बैठक में अहम फैसले लिए गए हैं.
पंजाब, गुजरात और गोवा में कांग्रेस ने अपनी सियासी एक्सरसाइज शुरू कर दी है. आम आदमी पार्टी का मुकाबला तीनों ही राज्यों में कांग्रेस से है. आम आदमी पार्टी की बीजेपी, कांग्रेस, समाजवादी या कम्युनिस्ट पार्टी की तरह कोई एक विचारधारा नहीं है.इसका गठन सत्ता में आने के लिए हुआ था. ऐसे में पार्टी के लिए बिना किसी ठोस विचारधारा के विपक्ष में रहना भी एक चुनौती होगी.
वैकल्पिक राजनीति देने के लिए आए थे
आम आदमी पार्टी का किसी विचारधारा के आधार पर गठन नहीं हुआ, जिसके चलते विधायक भी किसी वैचारिक दृष्टिकोण से बंधे नहीं है. अन्ना आंदोलन से राजनीतिक पार्टी का गठन हुआ. अरविंद केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी के गठन की घोषणा करते हुए कहा था कि मजबूरी में हम लोगों को राजनीति में उतरना पड़ा. हमें राजनीति नहीं आती है. हम इस देश के आम आदमी हैं जो भ्रष्टाचार और महंगाई से दुखी हैं, उन्हें वैकल्पिक राजनीति देने के लिए आए हैं.
दिल्ली में हारने के बाद सवाल उठने लगे थे कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय विस्तार पर भी असर पड़ेगा. दिल्ली में सत्ता में रहते आम आदमी पार्टी खूब फली-फूली है.बिना सत्ता से आम आदमी पार्टी को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में बांधे रखना मुश्किल था. आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी ताकत उसका कैडर रहा है, जो इस बार के दिल्ली चुनाव में बहुत ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आया. इसीलिए अरविंद केजरीवाल अपने वरिष्ठ नेताओं को चुनावी राज्यों में एक्टिव कर अपने कैडर को साधे रखने के साथ-साथ पार्टी के सियासी रुतबे को भी बरकरार रखने की कवायद मानी जा रही है.
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