हिंदू धर्म में रंग पंचमी का त्योहार बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. ये त्योहार होली के पांंच दिन बाद मनाया जाता है. रंग पंचमी को देवी-देवताओं की होली कहा जाता है. मान्यता है कि रंग पंचमी पर देवी-देवता स्वर्ग से उतरकर धरती पर आते हैंं और होली खेलते हैं. इस दिन देवी-देवताओं को अबीर-गुलाल चढ़ाना चाहिए. उनकी विशेष रूप से पूजा अर्चना करनी चाहिए.
मान्यताओं के अनुसार, रंग पचंमी के त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई. मान्यता है कि रंग पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी ने होली खेली थी. इस दिन विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा करनी चाहिए. उन्हें अबीर-गुलाल चढ़ाया चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भी करनी चाहिए. उनको भी अबीर-गुलाल चढ़ाना चाहिए.इस दिन पूजा के समय कथा का पाठ भी करना चाहिए. मान्यता है कि इससे जीवन में खुशहाली बनी रहती है.
आज है रंग पंचमी (Rang Panchami 2025)
हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 18 मार्च को 10 बजकर 9 मिनट पर हो चुकी है. वहीं इस पंचमी तिथि का समापन 20 मार्च को रात को 12 बजकर 36 मिनट पर होगा. हिंदू धर्म में उदया तिथि मानी जाती है. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, रंग पचमी का त्योहार आज मनाया जाएगा.
रंग पचंमी की कथा (Rang Panchami ki Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी के साथ चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंगों की होली खेली थी. गोपियों ने जब भगवान कृष्ण के प्रेम में राधा रानी को डूबा देखा तो वो भी भगवान की लीला में शामिल होकर उनके साथ होली खेलने लगी थीं. पंचमी तिथि को धरती रंगों में रंग गई थी और बहुत ही सुंदर लग रही थी.
देवी-देवताओं ने जब स्वर्ग से धरती का अद्भुत नजारा देखा तो के मन में भी भगवान और राधा रानी के साथ होली खेलने की इच्छा जागी. फिर देवी-देवता भी गोपियों और ग्वालों का रूप लेकर भगवान और राधा रानी के साथ होली खेलने धरती पर आ गए. यही कारण है कि इसे देवी- देवताओं के होली कहा जाता है. मान्यता है कि आज भी भगवान कृष्ण और राधा रानी वेश बदलकर रंग पंचमी पर भक्तों के साथ रंग खेलने आते हैं.
रंग पंचमी की दूसरी कथा
रंग पंचमी की एक कथा और है. ये कथा भगवान शिव, माता पार्वती और कामदेव से जुड़ी बताई जाती है. कथा के अनुसार, माता पार्वती के हवन कुंड में कूदकर जान दे देने के बाद भगवान शिव साधना में लीन हो गए. इस दौरान धरती से लेकर स्वर्ग तक तारकासुर नामक असुर का अत्याचार बढ़ गया. तारकासुर के वध के लिए जरूरी था कि भगवान शिव और माता पार्वती विवाह करें. तब देवताओं ने भगवान शिव की साधना भंग करने के लिए कामदेव को कहा.
कामदेव ने जब पुष्प बाण चलाया. इससे भगवान शिव की साधना भंग हो गई. फिर उन्होंने क्रोध में तीसरा नेत्र खोल दिया और कामदेव भस्म हो गए. बाद में, देवी रति के विलाप और प्रार्थना करने पर भगवान शिव ने कामदेव को दोबारा जीवन का दान दिया. इस अवसर पर देवी-देवताओं और ऋषियों ने रंगों के साथ त्योहार मनाया. कहा जाता है कि तब से ही रंग पंचमी मनाई जाने लगी.
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