44 साल पुराना यूपी का वो दिहुली कांड, जिसमें 24 दलितों को सरेआम भूना गया, आज सजा का ऐलान

उत्तर प्रदेश के दिहुली नरसंहार में 24 दलितों की सरेआम हत्या कर दी गई थी. फिरोजाबाद जिले से करीब 30 किलोमीटर दूर जसराना के दिहुली गांव में 18 नवंबर 1981 को डकैतों ने 24 दलित समाज के लोगों को गोली से भून दिया था. दिहुली नरसंहार मामले में आरोपियों को सजा देने में 44 साल लग गए. इस मामले में 11 मार्च को मैनपुरी की एक अदालत ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है, जिनके सजा का ऐलान आज को होगा. इस घटना ने यूपी की नहीं बल्कि देशभर को हिलाकर रख दिया था.

दिहुली नरसंहार मामले के दूसरे दिन 19 नवंबर 1981 को लायक सिंह ने जसराना थाने में राधेश्याम, संतोष सिंह और 15 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस तरह कुल 17 आरोपी नामजद थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है, जबकि एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अब भी फरार है. एडीजे इंद्र सिंह ने दिहुली नरसंहार पर फैसला सुनाते हुए तीन आरोपियों-कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को दोषी करार दिया. साथ ही फरार गिन्ना के खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर दिया है.

44 साल पुराना यूपी का दिहुली कांड

फिरोजाबाद से 30 किलोमीटर दूर जसराना कस्बे के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 शाम पांच बजे डकैत संतोष-राधे और उनके गिरोह के सदस्यों ने हमला कर बोलकर 24 दलितों की गोलियों से भून दिया था. इस नरसंहार को अंजाम देने वाले अधिकांश अभियुक्त अगड़ी जाति से थे, जबकि मरने वाले दलित समाज से थे.

नरसंहार में मरने वालों में ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर और प्रीतम सिंह शामिल थे. इसके अलावा 9 लोग घायल हुए थे.

मुखबिरी के शक में उतारा मौत के घाट

दरअसल, संतोष, राधे श्याम के साथ कुंवरपाल एक ही गिरोह में हुआ करते थे. संतोष और राधे श्याम अगड़ी जाति से थे, जबकि कुंवरपाल दलित जाति से आते थे. डकैत कुंवरपाल की एक अगड़ी जाति की महिला से मित्रता थी, ये बात संतोष और राधे को नागवार गुजरी थी. यहीं से दुश्मनी की शुरुआत हुई. इसके बाद कुंवरपाल की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या हो गई, जिसके चलते दलित समाज के लोगों के लगा कि उनकी हत्या संतोष और राधे गैंग ने कराया है.

कुवंरपाल की हत्या के बाद यूपी पुलिस ने कार्रवाई करते हुए संतोष-राधे गैंग के दो सदस्यों को गिरफ़्तार करके उनसे भारी मात्रा में हथियार बरामद किए थे. संतोष, राधे और बाकी अभियुक्तों को यह शक था कि उनके गैंग के इन दो सदस्यों की गिरफ्तारी के पीछे दिहुली गांव के जाटव जाति के लोगों का हाथ है. पुलिस ने इस घटना में जाटव जाति के तीन लोगों को गवाह के तौर पर पेश किया तो यह शक और गहरा गया. पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, इसी रंजिश की वजह से दिहुली हत्याकांड हुआ.

डकैतों ने सरेआम गोलियों से भूना

संतोष-राधे ने दलित समाज को सबक सिखाने के लिए दिहुली कांड को अंजाम दिया था. 18 नवंबर 1981 शाम पांच बजे की बात है. ठंड अपनी दस्तक रहे थी, गांव के लोग अपने घर लौट ए थे. संतोष-राधे अपने साथी डकैतों हथियार लेकर दिहुली गांव पर हमला कर दिया. डकैतों ने औरतों-बच्चों किसी को नहीं बख्शा, जो मिला उसे मौत के घाट उतार दिया.

चश्मदीदों के मुताबिक, संतोष गिरोह ने पूरे जाटव टोले को घेर रखा था, जो दिखाई देता उसको गोली मार देते थे. इस तरह 24 दलित समाज के लोगों को गोलियों से भून दिया था. गांव में डकैतों ने लूट-पाट की और उसके बाद सभी आरोपी ठाकुरों के मोहल्ले में चले गए. बताया जाता है कि वह पंचम सिंह, रवेंद्र सिंह, युधिष्ठिर सिंह, रामपाल सिंह के घर पर रात को डेढ़ बजे तक रहे. वहां डकैतों ने पार्टी भी की थी. घटना इतना भाहवत थी कि गांव के लोग रात तक डर के कारण अपने मोहल्ले में नहीं गए.

डर से दलित समाज का पलायन

दिहुली वारदात के बाद दलित समाज के लोगों ने दिहुली गांव से पलायन शुरू कर दिया था, लेकिन सरकार के आदेश पर पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी गांव में कैंप लगाकर रहने लगे. घटना के बाद कई महीनों तक पुलिस और पीएसी गांव में तैनात रही थी. दलित लोगों से गांव में ही रुकने की अपील की थी.

दिहुली नरसंहार मामले में लायक सिंह, वेदराम, हरिनारायण, कुमर प्रसाद और बनवारी लाल गवाह बने. लायक सिंह ने ही संतोष सिंह, राधे श्याम सहित उनके डकैत सदस्यों के खिलाफ नामजद 19 नवंबर को एफआईआर दर्ज कराई थी. गवाह को सुरक्षा दी गई. दलित समाज के लोगों से पलायन करने से रोका गया. हालांकि, अब ये सभी जिंदा नहीं हैं, लेकिन उनकी गवाही के आधार पर ही अभियोजन पक्ष ने केस को मजबूत रखा. विशेष रूप से कुमर प्रसाद ने बतौर चश्मदीद घटना का पूरा विवरण अदालत में पेश किया था, जिसके आधार पर दोषी करार दिया गया है.

इंदिरा गांधी ने गांव का दौरा किया

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे. इस वारदात के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी दिहुली गांव का दौरा किया था. गांव में उन्होंने पीड़ित परिवारों को सांत्वना दी और गांव में पुलिस चौकी बनवाने के साथ अलग बिजली के फीडर की स्थापना का आदेश दिया था. विपक्ष ने इस कांड के बाद कांग्रेस सरकार पर सवाल खड़े किए थे. तब विपक्ष के नेता बाबू जगजीवनराम ने भी दिहुली गांव का दौरा करके दलित समाज के लोगों के इंसाफ की लड़ाई लड़ने का आश्वासन दिया था. कांग्रेस सरकार की जमकर किरकिरी हुई थी.

44 साल के बाद मिला इंसाफ

1981 में दिहुली कांड हुआ था. हाईकोर्ट के आदेश पर इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में 1984 में ट्रांसफर किया गया था. 1984 से लेकर अक्टूबर 2024 तक केस में वहां पर ट्रायल चला. इस घटना में कुल 17 अभियुक्त थे, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है. 11 मार्च को फ़ैसले से पहले एडीजे (विशेष डकैती प्रकोष्ठ) इंद्रा सिंह की अदालत में जमानत पर रिहा चल रहे अभियुक्त कप्तान सिंह हाजिर हुए थे.

अदालत ने कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल नाम के तीन अभियुक्तों को दोषी क़रार दिया और अब इन्हें सज़ा सुनाई जाएगी. एक अन्य अभियुक्त ज्ञानचंद्र को भगोड़ा घोषित किया गया है. रामसेवक, मैनपुरी जेल में बंद हैं, उन्हें अदालत में पेश किया गया था, जबकि तीसरे अभियुक्त रामपाल की ओर से हाजिरी के लिए माफी मांगी गई थी, लेकिन उनकी अपील खारिज करके उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया गया है. अदालत उन्हें आज सजा सुनाएगी.

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