दिल्ली दंगाः शरजील इमाम क्यों फंसा जबकि ये 15 लोग बरी हो गए, जानिए सबकुछ

नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए एक वक्त देश भर में काफी चर्चा का मुद्दा रहा था. इसके विरोध में शाहीन बाग में बड़ा प्रदर्शन हुआ. ये दिसंबर 2019 की बात थी. तभी जामिया के इलाके में दंगे भी हुए थे. जिसमें करीब पांच बरस के बाद दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 12 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए हैं.

दरअसल, 15 दिसंबर, 2019 को जामिया नगर इलाके में हुई हिंसा में कई डीटीसी बसों, निजी वाहनों और पुलिस की संपत्ति को आग के हवाले कर दिया गया था. साथ ही, कई अधिकारियों पर भारी पथराव भी किया गया था. अदालत ने माना कि ये एक स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं था, बल्कि एक सुनियोजित योजना का नतीजा था.

अदालत ने शरजील इमाम को हिंसा भड़काने का सरगना माना है लेकिन 15 लोगों को बरी भी किया है. क्यों शरजील इमाम फंस गया जबकि दूसरे लोग छूट गए, आइये समझें.

क्यों फंसा शरजील इमाम?

साकेत कोर्ट के जज विशाल सिंह ने कहा कि शरजील इमाम मास्टरमाइंड था, जिसके कारण 15 दिसंबर, 2019 को सीएए के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन में बड़े पैमाने पर दंगे, आगजनी और हिंसा हुई. अदालत ने माना कि इमाम के भड़काऊ और कई मायनों में जहरीले भाषणों ने दंगों को भड़काया.

जिससे लोग सड़कों पर उतरने के लिए भी आगे आए.अदालत ने कहा कि शरजील का भाषण घृणा भड़काने वाला था, जिससे एक धर्म के लोग दूसरे के खिलाफ खड़े हुए. जज के मुताबिक इमाम ने जानबूझकर मुस्लिम समुदाय का इस्तेमाल किया, उन्हें सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के नाम पर चक्का जाम के जरिये लोगों की जिंदगी को को बाधित किया.

शरजील के खिलाफ मुकदमा लड़ने वाले का कहना था कि इमाम ने सार्वजनिक बैठकें आयोजित की, भड़काऊ पर्चे बांटे और मुस्लिम छात्रों और कार्यकर्ताओं को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया.

साथ ही, 11 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शरजील का भाषण और उसके बाद 13 दिसंबर, 2019 को जामिया विश्वविद्यालय का भाषण, अशांति भड़काने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास था.इधर इमाम की दलील थी कि वह गैरकानूनी सभा का हिस्सा नहीं था और उसका भाषण हिंसा भड़काने वाला नहीं था.

इमाम पर कौन सी धाराएं चलेंगी

अदालत ने इमाम के विरुद्ध धारा 109 आईपीसी (अपराध के लिए उकसाना), 120बी आईपीसी (आपराधिक षडयंत्र), 153ए आईपीसी (समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 143, 147, 148, 149 आईपीसी (अवैध रूप से एकत्र होना, दंगा करना, सशस्त्र दंगा करना) के तहत आरोप तय किए हैं.

साथ ही, धारा 186, 353, 332, 333 आईपीसी (लोक सेवकों के कार्य में बाधा डालना, पुलिस अधिकारियों पर हमला करना), 308, 427, 435, 323, 341 आईपीसी (गैर इरादतन हत्या, शरारत, आगजनी करने का प्रयास) तथा सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण कानून की धारा 3/4 के तहत भी आरोप तय किया है.

इमाम के अलावा और कौन फंसे?

इमाम के अलावा, अदालत ने भीड़ का नेतृत्व करने और हिंसा भड़काने के आरोप में आशु खान, चंदन कुमार और आसिफ इकबाल तन्हा के खिलाफ भी आरोप तय किए. अदालत ने इन सभी केमोबाइल लोकेशन और मीडिया इंटरव्यू को सबूत के तौर पर माना.

कोर्ट ने इमाम के इस दलील क खारिज कर दिया कि उसने केवल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली जैसे शहर में बड़े पैमाने पर चक्का जाम कभी भी शांतिपूर्ण नहीं हो सकता.

अदालत ने नौ और आरोपियों अनल हुसैन, अनवर काला, यूनुस और जुम्मन के खिलाफ भी आरोप तय किए. वहीं, राणा, मोहम्मद हारुन और मोहम्मद फुरकान पर भी आरोप तय किए जा सकते हैं. अदालत ने ये भी कहा है कि आरोपी असल अंसारी, मोहम्मद हनीफ के खिलाफ आरोप अलग से तय किए जाएंगे.

किन लोगों को अदालत ने किया बरी?

अदालत ने15 आरोपियों -मोहम्मद आदिल, रुहुल अमीन, मोहम्मद जमाल, मोहम्मद उमर, मोहम्मद शाहिल, मुदस्सिर फहीम हासमी, मोहम्मद इमरान अहमद साकिब खान, तंजील अहमद चौधरी, मोहम्मद इमरान मुनीब मियां, सैफ सिद्दीकी, शाहनवाज और मोहम्मद यूसुफ को उनके खिलाफ लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया.

अदालत ने माना कि दंगों में उनकी भागीदारी स्थापित करने के लिए केवल मोबाइल लोकेशन का डेटा मिला, जो कि नाकाफी है. अदालत ने कहा कि जब तक कि आदमी के खुद वहां मौजूद होने के सबूत नहीं मिल जाते, तब तक केवल मोबाइल फोन के लोकेशन के बिनाह पर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने या दोषमुक्त करने के लिए नहीं किया जा सकता.

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