हिंदी फिल्मों का निर्माण अब केवल बॉलीवुड तक सीमित नहीं रहा. ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक फिल्ममेकर्स हिंदी में फिल्में बना रहे हैं और दुनिया भर में प्रतिष्ठा अर्जित कर रहे हैं. अनेक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में उनकी फिल्में दिखाई जा रही हैं, पुरस्कृत हो रही हैं और ऑस्कर की रेस में भी जा रही हैं. जाहिर है इससे सिनेमा के माध्यम से हिंदी भाषा को विश्वस्तरीय ख्याति मिल रही हैं. हिंदी भाषा वहां पहुंच रही है, जहां बहुत से लोग ना तो इसे बोलते हैं और ना ही इसे ठीक से समझ पाते हैं. एक तरफ जब विदेशी भाषाओं की फिल्में हिंदी सब-टाइटल के साथ देखने को मिलती हैं तो दूसरी तरफ संतोष और अनुजा जैसी मूल रूप से हिंदी में बनी फिल्में अंग्रेजी में सब-टाइटल के साथ देशी-विदेशी दर्शकों के बीच पहुंच रही हैं.
ये बात इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि संतोष और अनुजा जैसी फिल्में न तो भारत में बनाई गईं और ना ही भारत की ओर से इन्हें ऑस्कर में भेजा गया था. गोयाकि इन फिल्मों की कहानी की पृष्ठभूमि भारतीय जरूर हैं और इसके संवाद की भाषा भी हिंदी है. कहानी का आधार राजमहलों, कॉरपोरेट घरानों या सेलिब्रिटी जमात की भी नहीं है बल्कि कहीं खेत-खलिहान वाला ग्रामीण समाज है तो कहीं कारखानों के मजदूर वर्ग की ख्वाहिशें और उनका जीवन संघर्ष.
ब्रिटेन के बाद अमेरिका में बनी हिंदी फिल्म
अमेरिकी हिंदी शॉर्ट फिल्म अनुजा को ऑस्कर 2025 के लिए नॉमिनेट किया गया है. इसका नामांकन लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म श्रेणी में हुआ है. इससे पहले अनुजा का वर्ल्ड प्रीमियर ऑस्कर-क्वालीफाइंग 24वें डेडसेंटर फिल्म फेस्टिवल में हुआ था. अक्टूबर 2024 में इसने मोंटक्लेयर फिल्म फेस्टिवल में भाग लिया, जहां इसे ऑडियंस अवॉर्ड मिला. फिल्म को सेंट लुइस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, होलीशॉर्ट्स लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया जा चुका है. अनुजा फिल्म के डायरेक्टर और स्टोरी राइटर एडम जे ग्रेव्स हैं, जोकि एक ख्यातिप्राप्त फिलॉस्फर भी हैं.
खास बात ये कि इस फिल्म के कुल 11 प्रोड्यूसर्स हैं, जिनमें गुनीत मोंगा, प्रियंका चोपड़ा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. फिल्म को सलाम बालक ट्रस्ट प्रोडक्शन हाउस और शाइन ग्लोबल कंपनी के बैनर तले प्रोड्यूस किया गया है. सलाम बालक ट्रस्ट सलाम बॉम्बे बनाने वाली फिल्म मेकर मीरा नायर के परिवार से ताल्लुक रखता है. यह गैर लाभकारी संगठन है. अनुजा दो बहनों की कहानी है. दोनों बहनें एक फैक्ट्री में काम करती हैं. इनमें बड़ी बहन का नाम पलक है जबकि छोटी का नाम अनुजा है. पूरी फिल्म 9 साल की बच्ची अनुजा की जिंदगी के ईर्द-गिर्द घूमती है. फिल्म में उन दोनों के संवाद के जरिए शादी को लेकर परंपरागत और पुरुषवादी मानसिकता पर भी प्रहार किया गया है.
विदेशी हिंदी फिल्मों में इंडियन ग्रासरूट्स की कहानी
वहीं पिछले साल ऑस्कर में पहुंची संतोष को इंडो-ब्रिटिश फिल्ममेकर संध्या सूरी ने बनाया था. इसमें भी उत्तर प्रदेश के एक गांव में एक निम्न आय वर्ग की महिला के साथ होने वाले अन्याय और उसकी तकलीफों को दिखाया गया था. इस फिल्म को ब्रिटिश एकेडमी ने फॉरेन लेंग्वेज कटेगरी के लिए ऑस्कर में भेजा था. पिछले साल ही भारत की तरफ से भेजी गई किरण राव की हिंदी फिल्म लापता लेडीज तो इंटरनेशनल कटेगरी की टॉप पंद्रह फिल्मों में जगह नहीं बना सकी लेकिन संतोष शॉर्टलिस्ट होने में कामयाब हो गई हालांकि यह फिल्म भी नॉमिनेट नहीं हो सकी.
NRI फिल्ममेकर्स ने बनाई भारतीय भाषाओं में फिल्में
हिंदी भाषा की फिल्में बनाने के लिए विदेशों में बसे और वहां जन्मे फिल्ममेकर्स किस प्रकार आगे आ रहे हैं- ये दोनों फिल्में उसका नजीर हैं. लेकिन यह सूची लंबी है. और इसकी परंपरा भी पुरानी है. देविका रानी के जमाने में भी फिल्मों को विदेशी फिल्म प्रोडक्शन हाउस के वित्तीय सहयोग मिले हैं. पिछले कुछ दशक में देखें तो यह चलन बढ़ा. हमारे तमाम एनआरआई फिल्ममेकर्स ने ऐसी कई फिल्में बनाई हैं, जिनमें अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू जैसी भाषाओं का धड़ल्ले से उपयोग हुआ है. इन फिल्मों ने दुनिया भर के फिल्म समारोहों में सुर्खियां बटोरीं. भारतीय रीति रिवाज, पर्व त्योहार, शादियां के बैंड बाजा और बारात को खूब दिखाया गया.
सिनेमा के जरिए ग्लोबल होती हिंदी
ऐसे फिल्ममेकर्स में गुरिंदर चड्ढा, शेखर कपूर, मीरा नायर, दीपा मेहता, रितेश बत्रा या आसिफ कपाड़िया आदि का नाम बखूबी लिया जा सकता है. इनकी बनाई फिल्में बेंड इट लाइक बेकहम, ब्राइड एंड प्रेजुडिस, बैंडिट क्वीन, 1947 द अर्थ, मिडनाइट चिल्ड्रन, वाटर, द लंच बॉक्स या इरफान खान अभिनीत फिल्म वॉरियर ने दुनिया के मंच पर भारतीय भाषाओं का परचम फहराया है. अब संतोष और अनुजा के फिल्ममेकर्स मीरा नायर, दीपा मेहता की उस परंपरा को नए सिरे से मूलत: हिंदी में आगे बढ़ा रहे हैं. सिनेमा के माध्यम से हिंदी ग्लोबल हो रही है.
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