पंजाबी कभी हाथ में रखते थे दिल्ली की सत्ता की चाबी, फिर क्यों होते गए दूर… जानें सियासी ताकत

दिल्ली विधानसभा चुनाव की लड़ाई हर रोज एक सियासी करवट लेती नजर आ रही है. पूर्वांचलियों के बाद अब पंजाबी राजनीतिक चर्चा के केंद्र में आ गए है. पंजाबियों पर दिए गए बीजेपी प्रत्याशी प्रवेश वर्मा के बयान पर अरविंद केजरीवाल ने सीधा निशाना साधा. प्रवेश वर्मा के बयान को केजरीवाल पंजाबियों के अपमान से जोड़कर बीजेपी को पंजाबी विरोधी कठघरे में खड़ा करने की कवायद में है. ऐसे में सवाल उठता है कि दिल्ली की सियासत में पंजाबी वोटर कितनी अहमियत रखते हैं और चुनाव में क्या सियासी खेल बनाने व बिगाड़ने की भी ताकत रखते हैं?

केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली विधानसभा सीट पर बीजेपी से चुनाव लड़ रहे प्रवेश वर्मा ने आम आदमी पार्टी शासित पंजाब की गड़ियों को दिल्ली में आने को लेकर बयान दिया है. प्रवेश वर्मा ने कहा था कि दिल्ली में पंजाब नंबर की हजारों गाड़ियां घूम रही है. वो यहां क्या कर रही हैं किसी को पता नहीं हैं. दिल्ली में गणतंत्र दिवस को मनाने की तैयारियां चल रही हैं. ऐसे में पंजाब नंबर वाली गाड़ियों की जांच होनी चाहिए. पूर्व सांसद और नई दिल्ली सीट से कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित ने भी ऐसे बयान दिए थे.

पंजाबियों के अपमान से केजरीवाल ने जोड़ा

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने आम आदमी पार्टी पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में पंजाब की सरकारी मशीनरी को इस्तेमाल करने के आरोप लगाए हैं. प्रवेश वर्मा के बयान को आम आदमी पार्टी पंजाबियों के अपमान से जोड़ रही है. केजरीवाल ने प्रवेश वर्मा के बयान को लेकर सवाल खड़े किए कि क्या सारे पंजाबी आतंकवादी और देशद्रोही हैं. दिल्ली में लाखों पंजाबी रहते हैं, जिनके परिवारों और उनके पूर्वजों ने देश के लिए न जाने कितनी कुर्बानियां दी हैं.

उन्होंने कहा कि दिल्ली में पाकिस्तान से आए बड़ी संख्या में पंजाबी रहते हैं, जिन्होंने दिल्ली को संवारा है. इस तरह से पंजाबियों को देश के लिए खतरा बोलकर बीजेपी ने दिल्ली में रहने वाले लाखों पंजाबियों को अपमानित किया है. इसके लिए बीजेपी को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए. केजरीवाल की तरह आम आदमी पार्टी के नेताओं ने भी बीजेपी को पंजाबी विरोधी कठघरे में खड़ा करने की कवायद की है. ऐसे में प्रवेश वर्मा ने पंजाब के सीएम भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल पर मानहानी करने का दावा किया है. ऐसे में दिल्ली में पंजाबी समाज एक बार फिर से सियासी चर्चा के केंद्र में है.

दिल्ली में समझें पंजाबी वोटों की सियासत

दिल्ली की सियासत में कभी सत्ता की असल चाबी पंजाबी समुदाय के हाथों में हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे वो खत्म हो गई. आजादी के बाद देश के हुए बंटवारे के बाद पाकिस्तान से बड़ी संख्या में पंजाबी समुदाय के लोग दिल्ली में अलग-अलग क्षेत्रों में बसे थे. राजधानी में 20 फीसदी से ज्यादा आबादी पंजाबी समुदाय की है. इसमें 4 फीसदी पंजाबी सिख और 16 फीसदी पंजाबी ब्राह्मण व खत्री हैं. पंजाबी वोटर करीब दिल्ली की 15 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं.

दिल्ली के विकासपुरी, राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, जंगपुरा, कालका जी, गांधी नगर, कृष्णा नगर, करोल बाग, राजेंद्र नगर, मॉडल टाऊन और रोहिणी विधानसभा सीट पर पंजाबी वोटर जीत हार तय करते हैं. ऐसे में कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी पंजाबी वोटों को लुभाने की कवायद में है, जिसके लिए ही केजरीवाल ने प्रवेश वर्मा के बयान को लेकर आक्रामक रुख अपना रखा है.

दिल्ली की सत्ता की धुरी थे कभी पंजाबी

आजादी के बाद से ही दिल्ली की सियासत में पंजाबियों का अपना दबदबा हुआ करता था. मदन लाल खुराना, एचकेएल भगत, विजय कुमार मल्होत्रा, जगप्रवेश चंद्रा, बलराज खन्ना, ओम प्रकाश माकन, गुरुमुख निहाल सिंह और केदार नाथ साहनी जैसे कद्दावर पंजाबी नेता हुआ करते थे. पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखने वाले निहाल सिंह, शीला दीक्षित, मदन लाल खुराना और सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री रही हैं. इस तरह दिल्ली नगर निगम से लेकर विधानसभा तक पंजाबियों का सियासी वर्चस्व कायम था, लेकिन उदारीकरण के बाद यूपी और बिहार से बड़ी संख्या में आए हुए लोगों का दबदबा बढ़ा. इस तरह से दिल्ली की सियासत से पंजाबी दूर हो गए और सियासत पूर्वांचलियों के इर्द-गिर्द सिमट गई.

जनसंघ के दौर से पंजाबी बीजेपी के साथ

दिल्ली में जनसंघ के दौर से ही पंजाबी समुदाय बीजेपी का कोर वोटबैंक माना जाता रहा है. मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी की तिकड़ी ने जनसंघ के दिल्ली चैप्टर की स्थापना की थी. इसके बाद में ये तीनों नेता दिल्ली बीजेपी की रीढ़ की हड्डी बन गए. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मदन लाल खुराना ने ही दिल्ली में बीजेपी को मजबूत करने के लिए काफी सक्रियता के साथ काम किया. उन्होंने दिल्ली में बीजेपी को ना सिर्फ खड़ा किया बल्कि कांग्रेस के मुकाबले मजबूत भी बनाया.

पंजाबी वोटरों के सहारे ही बीजेपी साल 1993 में सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने में कामयाब भी रही थी. खुराना दिल्ली के सीएम बने थे. दिल्ली के पंजाबी नेताओं की बात करें तो खुराना आखिरी पंजाबी नेता थे, जिन्होंने दिल्ली की सियासत में अपना जबरदस्त दबदबा दिखाया था. इससे पहले नगर निगम में बलराज खन्ना की जबरदस्त धाक हुआ करती थी. बीजेपी इस बार पंजाबी वोटों के सहारे ही सत्ता में वापसी करना चाहती है, जिसके लिए पंजाबी समाज से आने वाले वीरेंद्र सचदेवा को बीजेपी ने पार्टी की दिल्ली में कमान सौंप रखी है.

कांग्रेस की दिल्ली में रही पंजाबी सियासत

कांग्रेस ने दिल्ली में सिख वोटों के साथ-साथ पंजाबी पर भी अपनी पकड़ को बनाए रखा था. एचके एल भगत, ओम प्रकाश माकन और गुरुमुख निहाल सिंह जैसे दिग्गज पंजाबी नेता हुआ करते थे. शीला दीक्षित का जन्म पंजाब के कपूरथला में हुआ था, जिनका नाम पहले शीला कपूर हुआ करता था. पंजाबी परिवार में जन्म लेने वाली शीला कांग्रेस के दिग्गज नेता उमा शंकर दीक्षित के बेटे विनय दीक्षित से शादी कर शीला दीक्षित बन गई थीं.

कांग्रेस ने शीला दीक्षित की अगुवाई में 15 साल तक दिल्ली में राज किया. इसके अलावा ओम प्रकाश माकन के बेटे ललित माकन कांग्रेस के पंजाबी चेहरा हुआ करते थे, जिनकी सियासी विरासत को उनके भतीजे अजय माकन ने बढ़ाया. दिल्ली सरकार से लेकर केंद्र की सरकार में अजय माकन मंत्री रहे. सुभाष चोपड़ा, किरण वालिया और अरविंदर सिंह लवली जैसे पंजाबी-सिख नेता हुआ करते थे. कांग्रेस ने फिर से माकन को आगे कर दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.

आम आदमी पार्टी की पंजाबी सियासत

आम आदमी पार्टी का सियासी उदय होने के बाद पंजाबी समुदाय ने केजरीवाल पर पूरा भरोसा जताया. सिख समाज से लेकर पंजाबियों ने एकमुश्त वोट आम आदमी पार्टी को दिया, लेकिन राजनीतिक भागीदारी नहीं मिल सकी. केजरीवाल की सरकार में आतिशी पहली मंत्री रही, लेकिन बाद में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई. आतिशी AAP की दिल्ली में पंजाबी चेहरा हैं और उन्हें ही आगे कर केजरीवाल दिल्ली की चुनावी जंग को फतह करने में लगे हैं. राघव चड्ढा भी आम आदमी पार्टी के पंजाबी चेहरा माने जाते हैं, जो दिल्ली के राजेंद्र नगर सीट से पहले विधायक थे और अब राज्यसभा सांसद हैं.

दिल्ली की सियासत से कैसे दूर हुए पंजाबी

दिल्ली के 2020 के विधानसभा चुनाव में आतिशी को अगर जोड़ लेते हैं तो फिर सात विधायक पंजाबी समाज से जीतकर आए थे और सभी आम आदमी पार्टी से चुने गए थे. चांदनी चौक से प्रहलाद सिंह साहनी, हरी नगर से राज कुमारी ढिल्लन , तिलक नगर से जरनैल सिंह, जनकपुरी सीट से राजेश ऋषि, राजेंद्र नगर से राघव चड्ढा और कृष्णा नगर से एसके बग्गा जीते थे. इसके अलावा कालकाजी से आतिशी विधायक चुनी गई थी. राघव चड्ढा के इस्तीफा दिए जाने के बाद दिल्ली में छह पंजाबी विधायक हैं.

2020 में रिफ्यूजी पंजाबियों से भरे हुए गांधी नगर, कस्तूरबा नगर और मालवीय नगर सीटों से गैर-पंजाबी ही जीते थे. दिल्ली विधानसभा के 1952 में हुए पहले चुनावों में 7 पंजाबी जीते थे, तब विधानसभा की 48 सीटें हुआ करती थीं. इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में 15 पंजाबी विधायक जीतकर आए थे, जिसमें राम भज, जगदीश मुखी, अजय माकन, डॉ. वालिया, महेंद्र सिंह साधी, एचएस बल्ली जैसे नेता शामिल थे.

पंजाबी विधायकों का जीत का आंकड़ा 1998 में बढ़कर 20 तक पहुंच गया. इस बार विजयी होने वाले पंजाबी विधायकों में सुभाष चोपड़ा, अंजली राय (अजय माकन की बुआ), अरविंदर सिंह लवली, किरण वालिया, रमाकांत गोस्वामी जैसे चेहरे थे. 2003 के विधानसभा चुनावों में यह आंकड़ा थोड़ा सा गिरा और इस बार 17 पंजाबी विधायक बने. 2008 के चुनावों में पंजाबियों का ग्राफ गिरा. महज 13 पंजाबी विधायक ही जीत सके, जिसमें विजय कुमार मल्होत्रा ग्रेटर कैलाश से विधायक बने थे.

दिल्ली विधानसभा का 2013 का चुनाव इस लिहाज से खास था कि इस बार अरविंद केजरीवाल मैदान में उतरे थे. पर इस बार कांग्रेस, बीजेपी और आप के 13 पंजाबी विधायक जीते. 2015 के चुनाव में 9 पंजाबी विधायक बने और अरविंद केजरीवाल की कैबिनेट में एक भी पंजाबी नहीं था. 2020 में छह पंजाबी विधायक चुने गए. ऐसे में बहुत साफ है कि दिल्ली के जीवन पर दशकों तक असर डालने वाला पंजाबी समाज कम से कम राजनीति में सिकुड़ रहा है.

2025 में पंजाबी प्रत्याशी आजमा रहे किस्मत

दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार तीनों प्रमुख दलों से कुल 25 उम्मीदवार पंजाबी समुदाय से हैं. आम आदमी पार्टी ने छह पंजाबी को टिकट दिया है, जिसमें दो पंजाबी और चार सिख समुदाय से हैं. बीजेपी ने 8 पंजाबी कैंडिडेट उतारे हैं, जिसमें पांच पंजाबी और 3 सिख समाज से हैं. कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 11 पंजाबियों को इस बार विधानसभा चुनाव में उतारा है, जिसमें सात पंजाबी और चार सिख समाज से प्रत्याशी हैं. ऐसे में देखना है कि 2020 से ज्यादा पंजाबी विधायक क्या 2025 में पहुंचेंगे या फिर नहीं?

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