उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में दस उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच है. 26 साल बाद एक बार फिर से बीजेपी और सपा मिल्कीपुर में आमने-सामने खड़ी नजर आ रही हैं. जिसके चलते ही दोनों दलों ने पूरी ताकत झोंक रखी है. मिल्कीपुर सीट के नतीजे का भले ही सत्ता पर कोई असर न पड़े, लेकिन सियासी परसेप्शन बनाने वाला माना जा रहा है. इसीलिए बीजेपी और सपा छोटे से छोटे समीकरण को साधने में जुटी हैं, ताकि उपचुनाव के जीत की इबारत लिख सकें.
मिल्कीपुर विधानसभा सीट भले ही दलित समुदाय के लिए आरक्षित हो, लेकिन जीत का मंत्र दूसरी जातियों के वोट बैंक में छिपा है. यहां के उपचुनाव में D-M-Y फार्मूला यानी दलित, मुस्लिम और यादव वोटों से ज्यादा अहम B-P समीकरण मतलब ब्राह्मण और पिछड़ा वोट बैंक है.
ऐसे में मिल्कीपुर उपचुनाव में दलित, पिछड़े वर्ग के साथ अगड़ा वोट खासकर ब्राह्मण समाज ट्रंप कार्ड माना जा रहा है. जिसको साधने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही पूरी ताकत झोंक रखी है.
मिल्कीपुर सीट सियासी समीकरण
मिल्कीपुर विधानसभा सीट के जीत का मंत्र अगर समझना है तो पहले यहां के जातीय समीकरण को जान लें. मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर करीब 3.23 लाख मतदाता हैं. यहां के जातीय समीकरण को देखें तो एक लाख से ज्यादा दलित मतदाता हैं. दलित वोटों में करीब 60 हजार सिर्फ पासी समाज का वोट है और 65 हजार यादव मतदाता है.
इसके बाद ब्राह्मण 50 हजार, मुस्लिम 35 हजार, ठाकुर 25 हजार, गैर-पासी दलित 50 हजार, मौर्य 8 हजार, चौरासिया 15 हजार, पाल 8 हजार, वैश्य 12 हजार के करीब है. इसके अलावा 30 हजार अन्य जातियों के वोट हैं.
पासी बनाम पासी की लड़ाई बन गई
जातीय समीकरण देखें तो सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं और इसके बाद पासी और ब्राह्मण समाज का वोट है. पासी वोटों के समीकरण समीकरण को देखते हुए सपा और बीजेपी दोनों ही पासी समाज से प्रत्याशी उतारे हैं. सपा ने सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है तो बीजेपी ने पासी समाज से ही आने वाले चंद्रभान पासवान को उतारा है. इस तरह मिल्कीपुर सीट पर पासी बनाम पासी की लड़ाई बन गई है. दोनों ही नेताओं की नजर पासी वोटों को अपने साथ साधने की है, जिसके चलते स्वाभाविक है कि पासी वोटों में बिखराव होगा.
D-M-Y से ज्यादा क्यों B-P अहम
मिल्कीपुर सीट पर दलित-मुस्लिम-यादव वोटर मिलकर उपचुनाव जीता जा सकता है, लेकिन दलित वोट दो हिस्सों में बंटा हुआ है. एक पासी और दूसरा गैर-पासी दलित के बीच. पासी समाज से दोनों ही प्रमुख पार्टियों के कैंडिडेट होने के वजह से बिखराव होगा. मुस्लिमों का वोट सपा के पक्ष में लामबंद हो सकता है तो यादव समाज का ज्यादातर वोट भी सपा में जा सकता है, लेकिन बीजेपी ने अपने रुदौली के विधायक रामचंद्र यादव को लगा रखा है. इस वजह से यादव वोटों में बंटवारे की संभावना है. ऐसे में दलित-मुस्लिम-यादव समीकरण से ज्यादा अहम दूसरे अन्य वोट हो गए हैं.
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में गैर-पासी दलित और पिछड़ा के साथ अगड़ा वोट खासकर ब्राह्मण समाज के वोट बैंक को ट्रंप कार्ड माना जा रहा है. यहां पर करीब 50 हजार गैर-पासी दलित वोट हैं. अगड़ों में देखें तो ठाकुर 25 हजार, वैश्य 12 हजार और ब्राह्मण 50 हजार वोटर हैं. गैर-यादव ओबीसी की जातियों के वोट देखें तो मौर्य 8 हजार, चौरासिया 15 हजार, पाल 8 हजार और 30 हजार अन्य जातियों के वोट हैं. मिल्कीपुर सीट पर यही वोटर निर्णायक भूमिका अदा करने वाले माने जा रहे हैं.
सपा की रणनीति में छिपा कास्ट समीकरण
सपा मिल्कीपुर सीट पर यादव-मुस्लिम-पासी समीकरण के सहारे जीत दर्ज करती रही है तो बीजेपी सवर्ण वोटों के साथ ओबीसी वोटरों को साधकर जीतने में सफल रही है. मिल्कीपुर सुरक्षित सीट होने के बाद से दो बार सपा जीती है और एक बार बीजेपी ने अपना कब्जा जमाया था. मिल्कीपुर पर जब से चुनाव हो रहे हैं, उस लिहाज से देखें तो चार बार सपा जीती है और दो बार ही बीजेपी जीत सकी.
सपा से अवधेश प्रसाद जीतते रहे हैं तो 2017 में बीजेपी से बाबा गोरखनाथ चुने गए थे. 2022 के चुनाव में सपा के अवधेश प्रसाद को 103,905 वोट मिले थे और बीजेपी के गोरखनाथ को 90,567 वोट मिले थे. सपा यह सीट 13,338 वोटों के जीतने में कामयाब रही थी. मिल्कीपुर उपचुनाव के लिए अब सपा और भाजपा के बीच ही सीधी लड़ाई नजर आ रही है. यहां पर कॉस्ट समीकरण में ही जीत का मंत्र छिपा हुआ है.
मिल्कीपुर विधानसभा में अभी तक की राजनीति देखें तो यहां पर ओबीसी और अपर कास्ट का वोट बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. इस चुनाव में सबसे ज्यादा नजर ब्राह्मण मतदाता पर है, क्योंकि जितना पासी समाज का वोट है,उतना ही करीब-करीब ब्राह्मण वोट भी है. बीजेपी ने दलित, ओबीसी और अपर कॉस्ट वोटों को साधकर ही बीजेपी 1991 और 2017 में जीत सकी है. वहीं, सपा ने पासी, मुस्लिम, यादव और कुछ अपर कॉस्ट खासकर ब्राह्मण के कॉम्बिनेशन बनाकर जीतती रही है.
बीजेपी और सपा बना रही जीत का फार्मूला
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर जीत के लिए सपा और बीजेपी दोनों ही अपने-अपने लिहाज से समीकरण बना रहे हैं, लेकिन निगाहें अपर कॉस्ट और गैर-यादव ओबीसी वोटों पर है. बीजेपी की कोशिश पासी वोटों में सेंधमारी के साथ-साथ गैर-पासी दलित, अन्य पिछड़ा और अपर कास्ट को साधकर जीत की राह तलाश रही है.
बसपा के उपचुनाव में न होने से बीजेपी और सपा उसके दलित वोट बैंक को हर हाल में अपने साथ जोड़ना चाहती है. इस बार उपचुनाव में बसपा ही नहीं कांग्रेस भी मैदान में नहीं है, जिसके चलते मिल्कीपुर का मुकाबला सीधे सपा और बीजेपी के बीच है. ऐसे में जो भी दल अपने सियासी समीकरण बनाने में सफल रहती हैं, उनकी जीत की राह आसान हो जाएगी?
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