सिविल सेवा परीक्षा में धोखाधड़ी और गलत तरीके से ओबीसी और विकलांगता कोटा का लाभ लेने की आरोपी पूर्व आईएएस प्रोबेशनर पूजा खेडकर ने अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सवाल उठता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट से भी पूजा खेडकर को राहत मिली तो फिर क्या होगा? इसका एक ही जवाब है कि पूजा खेडकर को फिर सलाखों के पीछे भी जाना पड़ सकता है. हालांकि, काफी कुछ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी निर्भर करेगा.
खेडकर की याचिका पर जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ कल यानी 15 जनवरी को सुनवाई कर सकती है. खेडकर ने 23 दिसंबर 2024 के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है, जिसने उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए खेडकर ने हाई कोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए कहा है कि यह न्यायपूर्ण नहीं है. हाई कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यह एक क्लासिक धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें केवल एक संवैधानिक निकाय ही नहीं, बल्कि पूरी समाज और देश को धोखा दिया गया है.
हाई कोर्ट मामले को बताया था गंभीर
हाई कोर्ट ने कहा कि खेडकर के खिलाफ प्रथम दृष्टया एक मजबूत मामला बनता है और सिस्टम में हेरफेर करने की ‘बड़ी साजिश’ का पता लगाने के लिए जांच की आवश्यकता है और गिरफ्तारी से पहले जमानत इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी. इसलिए अग्रिम जमानत की याचिका खारिज की जाती है. हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद खेडकर की गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण भी हट गया. हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका दायर करने के बाद अदालत ने 2 अगस्त, 2024 को नोटिस जारी किया था. इसके बाद से अदालत ने समय-समय पर गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण को आगे बढ़ाता रहा.
‘धोखाधड़ी का एक उत्कृष्ट उदाहरण’
हाई कोर्ट ने कहा था कि यूपीएससी परीक्षा सबसे प्रतिष्ठित परीक्षाओं में से एक है और यह मामला एक संवैधानिक संस्था के साथ-साथ समाज के साथ धोखाधड़ी का एक उत्कृष्ट उदाहरण था. खेडकर पर आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, 2022 के लिए अपने आवेदन में जानकारी को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का आरोप है. उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया.
याचिका का दिल्ली पुलिस और UPSC ने किया था विरोध
खेडकर की ओर से हाई कोर्ट में दायर की गई अग्रिम जमानत की याचिका का दिल्ली पुलिस के वकील और शिकायतकर्ता यूपीएससी ने विरोध किया था. जबकि खेडकर के वकील ने तर्क दिया था कि वह जांच में शामिल होने और सहयोग करने को तैयार थीं और चूंकि सभी सामग्री दस्तावेजी प्रकृति की थी, इसलिए उनकी हिरासत की आवश्यकता नहीं है. वहीं, दिल्ली पुलिस ने दलील दी थी कि मामले में दूसरों की संलिप्तता का पता लगाने के लिए उनकी हिरासत में पूछताछ जरूरी है.
Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.