बिहार: चुनावी साल में राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक, प्रदेश अध्यक्ष समेत कई मुद्दों पर हो सकता है मंथन
बिहार में इस साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. इसको लेकर राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) तैयारी में है. राजद की तरफ से उसके राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग के लिए तारीख मुकर्रर कर दिया गया है. मीटिंग पटना में होगी. पांच साल में यह दूसरा मौका होगा, जब इस मीटिंग को पटना में आयोजित किया जा रहा है. पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मीटिंग में कई अहम बिंदुओं पर चर्चा हो सकती है.
राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों के प्रदेश अध्यक्ष/प्रमुख की नियुक्ति, पार्टी के संगठन को और मजबूती जैसे विषयों पर चर्चा हो सकती है. साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को अहम नीतिगत और अहम मामलों पर फैसला लेने के लिए अधिकृत किया जा सकता है. मीटिंग में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के साथ ही पार्टी के सभी बड़े नेता और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के नेता और सदस्य हिस्सा लेंगे. सूत्रों के मुताबिक, यह बैठक 18 जनवरी को होना है.
जून में पार्टी संगठन का चुनाव
पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजद पूरे दमखम से आगामी विधानसभा चुनाव में उतरेगी. चुनावी साल होने की वजह से पार्टी की इस मीटिंग की अहमियत बढ गई है. बताया जा रहा है कि इस मीटिंग में चुनाव के दौरान लोगों तक अपनी बात को पहुंचाने के लिए अहम मुद्दों पर भी चर्चा होगी. इसके अलावा पार्टी के चुनावी कार्यक्रमों पर भी इस मीटिंग में मुहर लगने की संभावना है. राजद के संविधान के अनुसार, पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग हर तीन साल पर आहूत की जाती है.
इससे पहले 2022 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में और उससे पहले 2019 में पटना में इस मीटिंग को आयोजित किया गया था. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता एजाज अहमद ने बताया कि वर्तमान में हमारी पार्टी का सदस्यता अभियान चल रहा है. हमारा लक्ष्य एक करोड़ सदस्य बनाने का है. अपने लक्ष्य में हम 60 प्रतिशत सदस्य बना चुके हैं. पार्टी सूत्रों के अनुसार राजद आगामी जून माह में पार्टी संगठन के चुनाव को पूरा कर लेना चाहती है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस बिंदु पर भी चर्चा हो सकती है.
ज्ञात हो कि वर्तमान में राजद का बिहार समेत देश के 22 राज्यों में संगठन है. बताया यह भी जा रहा है कि इन सभी राज्यों में पार्टी संगठन के चुनाव कराये जा सकते हैं. इनमें पार्टी के वार्ड, पंचायत, प्रखंड, जिला अध्यक्ष और उनकी टीम की घोषणा की जा सकती है. हालांकि पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, सवाल चुनावी साल का नहीं है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग समय समय पर होती रहती है. अभी हमारा सदस्यता अभियान चल रहा है.
जगदानंद सिंह की जगह कौन?
बिहार की राजनीतिक फिजां में अब यह चर्चा है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष की कमान कौन संभालेगा? दरअसल, मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने अपने पद से हटने का मन बना लिया है. ऐसे में अगर जगदानंद सिंह अपने पद से इस्तीफा देते हैं तो उनकी जगह कौन लेगा? जगदानंद सिंह राष्ट्रीय जनता दल में एक बड़ा नाम है. 1997 में जब लालू प्रसाद ने तत्कालीन जनता दल से अलग होकर के राजद की नींव रखी थी तो जगदानंद सिंह उनके साथ कंधे से कंधा मिला करके खड़े रहे.
हालांकि, तब सिवान से राजद के एमपी रहे शहाबुद्दीन, आलोक मेहता, पूर्व मंत्री अब दिवगंज रघुनाथ झा समेत कई और नाम भी इस सूची में शामिल हैं. हालांकि बिहार की राजनीति में यह बात तेजी से चर्चा में है कि पिछले दिनों संपन्न हुए विधानसभा उपचुनाव में बिहार की रामगढ़ सीट पर जब जगदानंद सिंह के बेटे को हार मिली, तभी जगदानंद सिंह ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के पद को छोड़ने का मन बना लिया था. हालांकि उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र का भी हवाला दिया है.
चर्चा में हैं कई नाम
बिहार में राजद के सूत्रों की मानें तो प्रदेश राजद अध्यक्ष के लिए कई नाम चर्चा में चल रहे हैं. इनमें सबसे अहम नाम विधान परिषद में राजद के सचेतक अब्दुल बारी सिद्दीकी और पार्टी का प्रमुख दलित चेहरा पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम और पार्टी की महिला प्रकोष्ठ की प्रदेश अध्यक्ष रितु जायसवाल का है. इनमें सिद्दीकी और शिवचंद्र राम दोनों ही राजद के स्थापना काल से पार्टी में हैं. दोनों ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के खास माने जाते हैं. वहीं रितु जायसवाल की राजनीति में आने से पहले सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रह चुकी हैं. रितु की पहचान एक बेहतर और चर्चित मुखिया के रूप में भी रही है.
जगदानंद थे पहले सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष
प्रदेश राजद की कमान अगर शिवचंद्र राम को सौंपी जाती है तो वह कमल पासवान, पीतांबर पासवान और उदय नारायण चौधरी के बाद चौथे ऐसे चेहरे दलित चेहरे बन जाएंगे जो प्रदेश राजद की कमान को संभालेंगे. पीतांबर पासवान, कमल पासवान और उदय नारायण चौधरी में सबसे छोटा कार्यकाल कमल पासवान का रहा है. वह केवल 24 दिनों तक इस पद पर रहे. जबकि पीतांबर पासवान के साथ एक खास तथ्य जुड़ा हुआ है. दरअसल जब बिहार का बंटवारा हो रहा था, तब पीतांबर पासवान बिहार राजद के प्रदेश अध्यक्ष थे.
प्रदेश राजद का सबसे लंबा कार्यकाल राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता डॉक्टर रामचंद्र पूर्वे के नाम है. वह 9 साल तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे. इसके बाद अगर किसी का कार्यकाल सबसे लंबा रहा है तो वह जगदानंद सिंह का ही रहा है. जगदानंद सिंह ने 2019 में प्रदेश राजद की कमान संभाली थी और 2024 तक वह इस पद पर बने हुए हैं. वह पार्टी के पहले सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी पहले भी प्रदेश राजद की कमान संभाल चुके हैं. सिद्दकी इससे पहले 2003 से 2010 तक प्रदेश राजद अध्यक्ष रह चुके हैं.
राजद की नजर जातिगत समीकरण पर
दरअसल, चर्चा इस बात की भी है कि राष्ट्रीय जनता दल अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगाने में राज्य के जातिगत समीकरण को भी ध्यान में रख रहा है. इस साल जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए और उसके बाद बिहार विधानसभा की 4 सीटों पर जब उप चुनाव हुए तब राजद को आशातीत सफलता नहीं मिली थी. राजद का बेस वोट बैंक रहे अल्पसंख्यक और दलितों का राजद से मोह भंग हुआ है. विशेष रूप से मिथिलांचल और सीमांचल के इलाकों में राजद को सफलता नहीं मिली. जबकि वहां अन्य दूसरे दल काफी मजबूत रहे.
वहीं, चार सीटों पर जब उपचुनाव हुए तो इनमें दो सीट राजद की ही थी. जिन्हें बचाने में राजद असफल रहा. रामगढ़ में तो राजद के प्रदेश अध्यक्ष के बेटे ही चुनाव लड़ रहे थे. ऐसे में अब प्रदेश नेतृत्व पूरी तरीके से जातिगत समीकरणों की तरफ ध्यान दे रहा है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो अगर प्रदेश राजद अध्यक्ष की कमान अब्दुल बारी सिद्दीकी या शिवचंद्र राम को दी जाती है तो इसके पीछे पार्टी की सोच अपने वोट बैंक को साधने की रहेगी. राजद ने अल्पसंख्यकों में इस बात का संदेश देने की भी कोशिश की है. हाल ही में अब्दुल बारी सिद्दीकी को बिहार विधान परिषद में पार्टी का सचेतक भी बनाया गया है.
अगला विधानसभा चुनाव है टारगेट
वरिष्ठ पत्रकार संजय उपाध्याय कहते हैं, राजद अपने प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर के अब जो भी निर्णय लेगा. वह केवल जातिगत समीकरण ही नहीं बल्कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखकर भी लेगा. राजद की झोली से अल्पसंख्यक और दलित मतों में बिखराव हुआ है. संभवत: इन मतों को एकजुट रखने को लेकर के ही राजद नेतृत्व अब अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगाएगा.
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