भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद अब यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में मौजूद 337 टन जहरीले कचरे को नष्ट करने की प्रक्रिया चल रही है. पहले चरण में धार जिले के पीतमपुर इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी के कर्मचारियों ने कचरे की पैकिंग शुरू कर दी है. यह कचरा एयर टाइट बैग में रखकर 12 कंटेनरों से भोपाल से पीतमपुर भेजा जा रहा है. यह पूरा काम केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की निगरानी में हो रहा है.
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के बाहर चौकी बनाकर पुलिस टीम लगा दी गई है. फैक्ट्री में सभी तरह के आवागमन पर रोक लगा दी गई है. फैक्ट्री परिसर की जहां दीवारे टूटी हैं, वहां बैरिकेड्स लगाए गए हैं. हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर को 1 महीने के भीतर कचरे को निष्पादित करने का आदेश दिया था. यह प्रक्रिया उसी के आदेश के तहत हो रही है.
भोपाल गैस त्रासदी राहत पुनर्वास विभाग के संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि हाई कोर्ट में 3 जनवरी को कचरे के निष्पादन की जानकारी देनी है तो 2 जनवरी तक कचरा कंपनी तक पहुंचा दिया जाएगा. 2015 में 10 टन कचरे को जलाने का ट्रायल हो चुका है. इसकी रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश की गई थी. इसके बाद ही यह प्रक्रिया शुरू हुई है.
ऐसे नष्ट होगा जहरीला कचरा
पीतमपुर में जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए विशेष भट्ठी बनाई गई है. बताया जा रहा है कि अगर 90 किलोग्राम प्रति घंटे की मानक दर से इसको जलाया जाए तो भी इसे नष्ट करने में 153 दिन यानी 5 महीने का समय लगेगा. जलाने के बाद इसकी राख का वैज्ञानिक परीक्षण होगा. अगर सुरक्षित रहा तो उसे खास तौर पर बने लैंडफिल साइट पर डंप किया जाएगा.
कचरा पैकिंग के दौरान स्वास्थ्य सुविधा के लिए एक एंबुलेंस और डॉक्टरों की टीम भी तैनात की गई है. कचरा पैकिंग कर रहे कर्मचारियों के स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखा जा रहा है. सभी कर्मचारियों को सुरक्षा के मास्क आदि उपकरण दिए गए हैं. इसके बाद भी अधिक किसी का स्वास्थ बिगड़ता है तो उसे तत्काल मौके पर उपचार दिया जाए और जल्द ही अस्पताल पहुंच जाए इसकी व्यवस्था की गई है.
250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया जाएगा
कंटेनर को पीतमपुर ले जाने के लिए करीब 250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर भी बनाया जाएगा. फैक्ट्री से कंटेनर निकालने के बाद करोंद मंडी होते हुए करोद चौराहा पहुंचेंगे. यहां से गांधीनगर से सीधे फंदा टोल नाका के आगे इंदौर बायपास से होते हुए पीतमपुर के लिए रवाना हो जाएंगे. सभी कंटेनर का एक यूनिक नंबर रहेगा, जिससे जिले के पुलिस व प्रशासन के अधिकारी उनकी पहचान पुख्ता कर सकेंगे. इसके लिए जिलों की पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को अलर्ट किया गया है. 2 दिसंबर 1984 को भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनाइट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था. इस हादसे में पांच हजार से अधिक लोगों की मौत गई थी.
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