41 साल पहले का ‘बॉबी कांड’, कैसे IPS कुणाल किशोर की जांच से हिल गई थी बिहार सरकार?

बिहार के पटना में महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल अब इस दुनिया में नहीं रहे. लेकिन यह भी एक तथ्य है कि महावीर मंदिर न्यास के सचिव बनने से पहले उनकी भूमिका एक कड़क आईपीएस ऑफिसर के रूप में होती थी. उनके द्वारा एक तरफ अपनी आइपीएस की सेवा अवधि में किए गए कार्य और जनकल्याण के लिए किए गए कार्यों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा.आचार्य किशोर कुणाल का एक किस्से का जिक्र जब भी आता है तो बिहार की राजनीति के कई रूप सामने नजर आ जाते हैं. आचार्य किशोर कुणाल की द्वारा लिखी गई उनकी किताब ‘दमन तक्षकों का’ में उन्होंने खुद इस मामले का जिक्र किया है.

कहानी की शुरुआत 1983 के मई महीने में होती है. इसी महीने की 11 तारीख को एक खबर छपी, जिसमें एक लड़की की मौत की खबर थी. श्वेता निशा त्रिवेदी नाम की इस लड़की की खबर को शुरू में हर किसी ने एक आम खबर के रूप में लिया था, लेकिन एक आईपीएस के तौर पर किशोर कुणाल को इस मामले में कुछ बातें संदिग्ध लग रही थीं. उन्होंने इस मामले को लेकर अपनी जांच शुरू की और इसके बाद जो चीज सामने आईं, उसने आम लोगों के दिल और दिमाग को हिला कर रख दिया था.

बेहद खूबसूरत थी श्वेता निषाद

बताया जाता है कि श्वेता निशा त्रिवेदी यानी बॉबी को तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद के तत्कालीन सभापति राजेश्वरी सरोज दास ने गोद लिया हुआ था. 35 साल की श्वेता निषाद दिखने में बहुत ही खूबसूरत थी. श्वेता का पुकार का नाम बेबी था. कोई नहीं जानता था कि श्वेता निशा के साथ जो घटना घटी, वो ऐसे कांड के रूप में मशहूर हो जाएगी कि उसका जब भी जिक्र होगा, कुणाल किशोर के नाम का भी जिक्र होगा.

श्वेता की मां से हुई पूछताछ

जब श्वेता निशा त्रिवेदी की मौत हुई तो पटना के एसपी रहे आचार्य किशोर कुणाल ने मामले की जांच शुरू की. सबसे पहले उन्होंने श्वेता निशा की मां से पूछताछ की, जिसमें उनको पता चला कि वह सात मई की शाम अपने घर से निकली थी और देर रात में वापस आई. घर आने के साथ ही उसकी तबीयत खराब हो गई. पेट में दर्द होने लगा और खून की उल्टियां भी होने लगी. श्वेता निशा को तुरंत पीएमसीएच में ले जाया गया और उन्हें इमरजेंसी वार्ड में एडमिट कराया गया. वहां से श्वेता निशा को वापस घर भेज दिया गया जहां उसकी मौत हो गई.

मौत की दो रिपोर्ट, दोनों में अंतर

कड़क आईपीएस रहे किशोर कुणाल को श्वेता निशा के पास से तब ऐसा कोई सुबूत जरूर मिला था, जिससे यह लगभग स्पष्ट हो रहा था कि इस मामले में जरूर कहीं कुछ अलग है. उन्होंने यह भी जिक्र किया है कि तब श्वेता निशा की मौत के बाद दो रिपोर्ट को तैयार किया गया था. एक रिपोर्ट में मौत की वजह इंटरनल ब्लडिंग बताया गया था, जबकि दूसरे रिपोर्ट में यह कहा गया था कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई है. इतना ही नहीं दोनों ही रिपोर्ट में श्वेता निशा के मरने का वक्त भी अलग-अलग था. पहली रिपोर्ट में मृत्यु वक्त सुबह के 4 बजे लिखा गया था तो दूसरे में सुबह 4:30 बजे.

पोस्टमार्टम कराने का लिया फैसला

श्वेता निशा के मरने की असली वजह सामने नहीं आने के बाद आईपीएस किशोर कुणाल ने तब पोस्टमार्टम कराने का फैसला किया. क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही एक ऐसा तरीका था, जिसमें यह सामने आता कि इन शक उठाती बातों का समाधान कैसे होगा? इसके लिए एक अदालती प्रक्रिया भी हुई. प्रक्रिया पूरी करने के बाद पोस्टमार्टम कराया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह सामने आया कि श्वेता निशा को मिथेलियन नाम का जहर दिया गया था. इसके बाद पुलिस का शक पूरी तरीके से हकीकत में बदल गया और यह बात भी सामने आ गई की श्वेता निशा की मौत नहीं हुई थी बल्कि उसकी हत्या की गई थी.

श्वेता का हुआ रसूखदारों से संपर्क

जब किशोर कुणाल ने पूरे मामले की तहकीकात करनी शुरू की तो एक के बाद एक कई परतें खुलनी शुरू हो गयीं. यह भी सामने आया कि 1978 में बिहार विधानसभा में एक विशेष प्राइवेट एक्सचेंज बोर्ड लगाया गया था, जहां पर श्वेता निशा की नौकरी लगी थी. हालांकि, बाद में यह भी खबर आयी कि वह एक्सचेंज बंद हो गया. विधानसभा में नौकरी करने के दौरान ही श्वेता निशा के संपर्क रसूखदार लोगों से हो गया था. जिक्र यह भी है कि इस बोर्ड को केवल इसलिए लगाया गया था कि श्वेता निशा को जॉब दी जा सके.

तबीयत बिगड़ने के बाद हुई मौत

जब किशोर कुणाल ने बारीकी से इस पूरे मामले की जांच शुरू की तो उन्होंने पाया कि सरकारी आवास में वह रहती थी. वहां से बॉबी के जीवन से जुड़ी हुई कई चीजे गायब हैं. किशोर कुणाल ने वहां रहने वाले दो लड़कों से भी पूछताछ की, जिसमें यह सामने आया कि सात मई की रात में रघुवर झा नाम का एक शख्स उनसे मिलने आया था. इस शख्स के बारे में श्वेता निशा की मां ने भी किशोर कुणाल को बताया था. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने ही बॉबी को दवा दी थी, जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी और बाद में उसकी मौत हो गई थी.

नकली डॉक्टर बन दी थी दवा

आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी किताब में यह भी जिक्र किया है कि इस मामले का मुख्य अभियुक्त विनोद कुमार नाम का एक शख्स था. जो एक नकली डॉक्टर बना था. इस मामले में अब एक बड़े नेता का नाम आ रहा था. इसलिए मामला अब हाई प्रोफाइल बन रहा था. पुलिस ने जैसे ही अपनी जांच को आगे बढ़ना शुरू किया, सत्ता के गलियारों में हड़कंप फैलने लगा. धीरे-धीरे इस केस की खबर अब पटना से निकाल कर के देश के अखबारों तक पहुंचने लगी थी. यह भी सामने आ रहा था कि इसमें कुछ सत्ताधारी विधायक के साथ ही मंत्री भी शामिल हैं. तब विपक्ष में रहने वाली कम्युनिस्ट पार्टी भी लगातार मुख्यमंत्री पर हमला करने लगी. विपक्ष की तरफ से सीबीआई जांच की भी मांग होने लगी.

मुख्यमंत्री का आया फोन

इस किताब में कुणाल लिखते हैं, इसको लेकर के उनके ऊपर बहुत प्रेशर था. एक दिन किशोर कुणाल के पास सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा का फोन आया. किशोर कुणाल इस किताब में लिखते हैं कि सीएम ने उनसे पूछा था कि यह बॉबी का मामला क्या है? यह भी बताया जाता है कि किशोर कुणाल ने तब सीएम से कहा था कि यह ऐसी आग है जिसमें आपका हाथ जल जाएगा. आप इससे अलग रहिए. कहा जाता है कि यह मामला इतना हाई प्रोफाइल हो चुका था कि 1983 में लगभग 50 से भी ज्यादा विधायकों और मंत्रियों की टीम मुख्यमंत्री से मिली और यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया.

बाद में बंद कर दिया केस

कुणाल लिखते हैं कि सीबीआई ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें यह बताया गया कि यह हत्या का नहीं बल्कि खुदकुशी का मामला है. मृतक का अपने प्रेमी से मिल धोखे से परेशान थी. इसलिए उसने टेबलेट खा लिया था. जिससे उसकी मौत हो गई. रिपोर्ट में जिस रघुवर झा का नाम आ रहा था, उसे निर्दोष बताया गया था. पटना पुलिस पर आरोप लगाया गया कि उसने दो लड़कों को टॉर्चर किया था.

इसके अलावा कई सारी ऐसी बातें थी जो कुणाल किशोर के जांच से बिल्कुल अलग थी. सीबीआई की रिपोर्ट जैसे ही आई, बिहार में फिर हंगामा शुरू हो गया. क्योंकि पटना के फोरेंसिक लैब पर सीबीआई की रिपोर्ट में सवाल उठाए गए. पोस्टमार्टम में उसे टैबलेट का कोई अंश नहीं था, जबकि पहले की जांच में जहर की बात सामने आई थी. कई उतार चढ़ाव के बाद इस चर्चित बॉबी कांड की केस को बंद कर दिया गया.

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