महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में मात खाए उद्धव ठाकरे की नजर बृहन्मुंबई नगर निगम पर है. बीएमसी फतह कर उद्धव की कोशिश असल शिवसेना की लड़ाई को बनाए रखने की है. बीएमसी शिवसेना का गढ़ माना जाता है और 1996 से ही लगातार पार्टी यहां अपना मेयर बनाती रही है.
शिवसेना में टूट के बाद एक लोकसभा और एक विधानसभा के चुनाव हुए. लोकसभा में उद्धव को बढ़त मिली तो वहीं विधानसभा में बीजेपी के साथ मिलकर एकनाथ शिंदे ने खेल कर दिया. अब बीएमसी के जरिए उद्धव बढ़त बनाने की कोशिश में जुटे हैं.
उद्धव के लिए बीएमसी इसलिए भी अहम
1966 में स्थापित शिवसेना को पहली बार मुंबई नगर निगम के चुनाव में ही जीत मिली. 1971 में शिवसेना के एचएच गुप्ता मुंबई के मेयर चुने गए. उस वक्त महाराष्ट्र की सियासत में कांग्रेस का दबदबा था. इसके बाद शिवसेना ने मुंबई को अपना गढ़ बनाना शुरू किया.
1985 से 1992 तक लगातार मुंबई में शिवसेना के ही मेयर बनते रहे. हालांकि, छगन भुजबल की बगावत की वजह से 3 साल कांग्रेस ने अपने मेयर मुंबई में बैठा दिए, लेकिन जल्द ही बाला साहेब ने मुंबई की सत्ता को अपनी तरफ खींच लिया.
1996 में शिवसेना के मिलिंद वैद्य को मेयर की कुर्सी सौंपी गई. इसके बाद से अब तक लगातार शिवसेना ही यहां जीतती रही है. वो भी तब, जब 15 साल तक महाराष्ट्र की सत्ता में कांग्रेस और एनसीपी की मजबूत सरकार थी.
आर्थिक दृष्टिकोण से भी बीएमसी काफी अहम है. 2024-25 के लिए बीएमसी का कुल बजट 59,954.75 करोड़ रुपए पेश किया गया था. यह बजट देश के गोवा और त्रिपुरा जैसे 7 छोटे राज्यों से ज्यादा है.
गढ़ बचाने के लिए उद्धव क्या कर रहे हैं?
हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने में जुटे- उद्धव ठाकरे की पार्टी लगातार हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने में जुटी है. इसकी शुरुआत उद्धव के सहयोगी मिलिंद नार्वेकर की एक पोस्ट से हुई थी. नार्वेकर ने बाबरी विध्वंस की बरसी पर एक पोस्ट किया था. इसमें नार्वेकर ने बालासाहेब को क्रेडिट देते हुए सभी हिंदुओं के लिए बधाई पोस्ट लिखा.
कांग्रेस के कई नेताओं ने इस पोस्ट पर ऐतराज जताया, लेकिन उद्धव गुट की तरफ से इसको लेकर कोई खंडन सामने नहीं आया. इतना ही नहीं, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले को भी उद्धव की पार्टी ने मुद्दा बनाया. उद्धव की पार्टी बांग्लादेश से सामरिक रिश्ते खत्म करने की मांग कर रही है.
संजय राउत ने हाल ही में आरएसएस के हिंदुत्व को लेकर भी टिप्पणी की है. राउत का कहना है कि शिवसेना का हिंदुत्व न झुकने वाला है.
नेताओं के साथ मातोश्री में समीक्षा- उद्धव ठाकरे मुंबई विधायक, सांसद और संगठन के सभी नेताओं के साथ मातोश्री में 4 दिन की बैठक करेंगे. इस बैठक में जमीनी हालातों पर चर्चा की जाएगी. इतना ही नहीं, सभी संगठन के पदाधिकारियों से पूछकर आगे की रणनीति तैयार होगी.
शिवसेना (यूबीटी) की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक 26 दिसंबर को बोरीवली विधानसभा, दहिसर विधानसभा, मागाठाणे विधानसभा, डिंडोशी, चारकोप, कांदिवली और मलाड विधानसभा और 27 दिसंबर को अंधेरी वेस्ट, अंधेरी ईस्ट, विलेपार्ले, बांद्रा ईस्ट, बांद्रा वेस्ट, चांदीवली, कुर्ला, कलिना विधानसभा की बैठक आयोजित की गई है.
28 दिसंबर को मुलुंड, विक्रोली, भांडुप, मानखुर्द – शिवाजीनगर, घाटकोपर पूर्व, घाटकोपर पश्चिम, अणुशक्तिनगर, चेंबूर, सायन कोलीवाड़ा और 29 दिसंबर को धारावी, वडाला, माहिम, वर्ली, शिवडी, बायकुला, मालाबार हिल, मुबादेवी और कोलाबा की समीक्षा बैठक मातोश्री में आयोजित की गई है.
अकेले लड़ सकते हैं उद्धव- विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट ट्रांसफर न करना उद्धव के लिए झटका साबित हुआ. कई सीटों पर कांग्रेस के नेताओं ने उद्धव के उम्मीदवार का अंदरुनी तौर पर भी खेल बिगाड़ा. अब कहा जा रहा है कि मुंबई चुनाव में उद्धव कोई रिस्क नहीं लेना चाह रहे हैं.
उद्धव बीएमसी इलेक्शन में अकेले उतरने की तैयारी में हैं. हाल ही में पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इसके संकेत भी दिए हैं. राउत का कहना है कि मुंबई में चुनाव लड़ने के लिए हमारे पास बहुत सारे दावेदार हैं. किसी का टिकट काटना आसान काम नहीं है.
बीएमसी में 236 सीटें, 119 जादुई आंकड़ा
मुंबई नगर निगम में 236 सीटें हैं, जहां मेयर चुनने के लिए कम से कम 119 पार्षदों की जरूरत होती है. 2017 में आखिरी बार मुंबई में निकाय के चुनाव कराए गए थे. उस चुनाव में 84 सीटों पर शिवसेना और 80 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी.
मुंबई निकाय चुनाव में इस बार 7 प्रमुख पार्टियां मैदान में उतरेंगी. इनमें कांग्रेस और बीजेपी के सामने शिंदे सेना, उद्धव सेना, अजित की एनसीपी, शरद की एनसीपी प्रमुख रूप से शामिल हैं.
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