संसद में प्रियंका गांधी की एंट्री, कांग्रेस की सियासत में क्या-क्या बदलेगा?

सियासत में एंट्री के 5 साल बाद प्रियंका गांधी लोकसभा पहुंच गई हैं. प्रियंका के शपथ लेने से कांग्रेस और गठबंधन के नेता उत्साहित नजर आ रहे हैं. संजय राउत ने जहां प्रियंका को शेरनी की उपाधि दी है. वहीं खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे प्रियंका की एंट्री को ऊर्जा और शक्ति बता रहे हैं.

संगठन से संसदीय राजनीति में प्रियंका

प्रियंका गांधी केरल के वायनाड सीट से सांसद चुनकर आई हैं. 2009 में राजनीतिक परिदृश्य में आए केरल की यह सीट 2019 में सुर्खियां बटोरी थी. 2019 में यहां से राहुल गांधी जीतकर संसद पहुंचे थे.

2024 में भी राहुल को यहां से जीत मिली, लेकिन रायबरेली से जीत जाने की वजह से राहुल ने यह सीट छोड़ दी. इसके बाद राहुल ने प्रियंका को वायनाड सीट की कमान सौंपी.

2019 में प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में आई थीं. उन्हें तब संगठन में भेज दिया गया था. 2022 तक प्रियंका उत्तर प्रदेश की प्रभारी रहीं, लेकिन उनके नेतृत्व में भी कांग्रेस यूपी में कुछ खास नहीं कर पाई. कांग्रेस ने इसके बाद प्रियंका की ड्यूटी यूपी से हटा दी.

प्रियंका गांधी अभी खरगे की टीम में महासचिव की भूमिका में हैं. हालांकि, उनके पास किसी भी राज्य का प्रभार नहीं है. प्रियंका पहली बार संसदीय राजनीति में आई हैं.

संसद में प्रियंका, कांग्रेस में क्या-क्या बदलेगा?

1. फ्लोर मैनेजमेंट में भूमिका- पिछले 10 साल में संसद के भीतर कांग्रेस का फ्लोर मैनेजमेंट काफी कमजोर रहा है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर जब सरकार बिल पेश करने जा रही थी, तब राज्यसभा में कांग्रेस के सचेतक ने ही दल बदल लिया था. प्रियंका के संसद में आने से इसमें सुधार होने की बात कही जा रही है. बड़े मुद्दों पर नई रणनीति के तहत कांग्रेस सरकार को घेर पाएगी.

99 सांसद वाली कांग्रेस मुख्य विपक्ष की भूमिका में है. फ्लोर मैनेजमेंट के लिए सहयोगियों को साधना भी उसी की जिम्मेदारी है. 2024 के चुनाव के बाद स्पीकर चुनाव के वक्त भी कांग्रेस फ्लोर मैनेजमेंट नहीं कर पाई थी. उस वक्त कांग्रेस के रवैए से तृणमूल नाराज हो गई थी.

बाद में राहुल गांधी ने अभिषेक बनर्जी से बात कर पूरे मामले का डैमेज कंट्रोल किया था.

2. कांग्रेस के पास हिंदी भाषी वक्ता- 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर भारत की डेढ़ दर्जन सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन ऐसा कोई नहीं है, जिसका भाषण पूरे हिंदी बेल्ट में पसंद किया जाता हो. प्रियंका के संसद में आने से कांग्रेस इस क्राइसिस से निपट सकती है.

नेता प्रतिपक्ष के पद पर होने की वजह से राहुल गांधी को अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में बोलना पड़ता है. प्रियंका के आने से यह दुविधा भी खत्म होगी. प्रियंका मजबूती से अपनी बात रखने के लिए जानी जाती हैं. ऐसे में संसद में उनका भाषण कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

कहा जा रहा है कि प्रियंका मुख्य तौर पर महिलाओं के मुद्दे पर ज्यादा फोकस कर सकती हैं. मल्लिकार्जुन खरगे के एक बयान से इसके संकेत भी मिले हैं. खरगे ने कहा है कि प्रियंका महिलाओं की मजबूत आवाज है.

लोकसभा के बाद देश की सियासत में महिलाएं मुख्य धुरी बनकर उभरी हैं. झारखंड और महाराष्ट्र जैसे चुनाव के नतीजे बदलने में महिलाएं एक्स फैक्टर साबित हुई हैं.

3. गठबंधन की धुरी बन सकती हैं- संसद में प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस को एक फायदा गठबंधन के सहयोगियों को साधने में भी होगा. यूपी के अखिलेश यादव से लेकर अन्य नेताओं से उनके सियासी ताल्लुकात अच्छे हैं. पर्दे के पीछे से गठबंधन में प्रियंका कई बार बड़ी भूमिका निभा चुकी हैं.

संसद में प्रियंका के आने से अब सहयोगी दलों के नेता सीधे उन्हीं से बात करना चाहेंगे. पहले यह वैक्यूम बना हुआ था. यही वजह है कि कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ सहयोगी दलों के नेता भी प्रियंका के संसद में आने से उत्साहित हैं.

संजय राउत ने प्रियंका को शेरनी की संज्ञा दी है. सपा की डिंपल भी संसद के भीतर प्रियंका को बधाई देती नजर आईं. वहीं प्रियंका के रोल में हुए इस बदलाव का असर उन नेताओं पर पड़ेगा, जो अभी यह काम देख रहे हैं.

वर्तमान में फ्लोर मैनेजमेंट से लेकर सहयोगियों को साधने तक की जिम्मेदारी केसी वेणुगोपाल पर है. वेणुगोपाल संगठन के महासचिव हैं. साथ ही वे लोकलेखा समिति के भी प्रमुख हैं.

ऐसे में अब प्रियंका के संसद में आने के बाद कहा जा रहा है कि उनका भार कुछ कम हो सकता है.

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