देश के किसी भी राज्य या देश से बाहर विदेशों में भी जब बिहार का नाम लिया जाता है तो यहां के स्वादिष्ट व्यंजन को भी लोग जरूर याद करते हैं. जब यहां के फेमस फूड की बात आती है तो लिट्टी-चोखा को प्रथम स्थान दिया जाता है, क्योंकि यह बिहार की एक पारंपरिक डिश है, जिसे लोग ब्रेकफास्ट में ही नहीं लंच में भी बड़े चाव से खाते हैं. अब बिहार की पहचान लिट्टी-चोखा को जीआई टैग मिलने वाला है. इसके लिए भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर ने पहल की है. जल्द ही बिहार के प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा को जीआई टैग मिल जाएगा, जो बिहार के लिए गौरव की बात होगी.
इसको लेकर बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में पिछले दिनों बीएयू के निदेशक अनुसंधान के सभागार में कुलपति प्रोफेसर डी.आर सिंह की अध्यक्षता में उत्पादों को जीआई टैग दिलाने के लिए चल रही प्रक्रिया की समीक्षा की गई. इस दौरान दी गई प्रस्तुतियों के बाद कहा गया कि पांच उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. इसमें सर्वप्रथम बिहार की पहचान प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा का नाम है.
इसके साथ ही पानी फल, जिसे लोग सिंघाड़ा के नाम से भी जानते हैं, सोनाचूर चावल, गुलशन टमाटर, दीघा मालदा शामिल है. इस दौरान बीएयू के कुलपति प्रोफेसर दुनिया राम सिंह ने कहा कि बिहार को जीआई टैग पंजीकरण में चौथे स्थान पर ले जाना है, जिसके लिए हम लोग कड़ा प्रयास कर रहे हैं. बता दें कि इससे पहले भागलपुरी कतरनी चूड़ा व जर्दालू आम को भी जीआई टैग मिल चुका है और उसे विदेशों तक भेजा जाता है.
मगध काल से जुड़ा है लिट्टी-चोखा का इतिहास
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि लिट्टी-चोखा जैसे स्वादिष्ट व्यंजन की उत्पत्ति कहां से हुई और इसे कैसे तैयार किया जाता है? दरअसल, लिट्टी चोखा बिहार का फेमस व्यंजन है, जिसे लोग बहुत शौक से खाते हैं. इसका इतिहास बेहद दिलचस्प है और यह मगध काल से जुड़ा है, क्योंकि लिट्टी का प्रचलन मगध साम्राज्य में था और इसका सेवन किया जाता था. प्राचीन समय में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र हुआ करती थी, जो वर्तमान समय में बिहार की राजधानी पटना है.
युद्ध में लिट्टी-चोखा ले जाते थे सैनिक
कहा जाता है कि यहां के राजा चंद्रगुप्त मौर्य के सैनिक युद्ध में अपने साथ लिट्टी-चोखा लेकर जाते थे और युद्ध के दौरान उसका ही सेवन करते थे, क्योंकि इसकी खासियत है कि यह जल्दी खराब नहीं होता और खाने में हल्का भी होता है. इतिहास की कई किताबों के अनुसार, 18वीं शताब्दी में लंबी दूरी तय करने वाले मुसाफिरों का मुख्य भोजन लिट्टी-चोखा हुआ करता था. इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि बिहार में पहले लिट्टी-चोखा को किसान लोग खाया और बनाया करते थे, क्योंकि इसे बनाने में अधिक समय नहीं लगता था और यह पेट के लिए काफी फायदेमंद था.
कैसे तैयार होता है लिट्टि-चोखा?
दरअसल, गेंहू के आंटे को पानी से गूंथकर उसकी लोई बनाकर अंदर सत्तू के मसालेदार सूखे पाउडर को तैयार कर भरा जाता है, फिर उसे गोबर के उपले के आग में पकाया जाता है. इसके बाद, इसे देसी घी में डुबोकर सर्व किया जाता है. हालांकि, कई लोग बिना घी में भी डुबोकर खाना पसंद करते हैं. वहीं, इसके साथ लोग बैंगन का चोखा खाना पसंद करते हैं. आग में पकने के बाद यह व्यंजन काफी लजीज हो जाता है.
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