कैसे हुई सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना, जानें इसके पीछे की रोचक कथा और महत्व

हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंग विशेष महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. भारत में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, ये सब ज्योतिर्लिंग भगवान शिव की अनंत ऊर्जा का स्वरूप माने जाते हैं. इन 12 ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे पहले नंबर पर आता है. यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का बहुत खास महत्व माना जाता है.

इस ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव के द्वारा किया गया है. सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव का पूजन विशेष विधि-विधान से किया जाता है. सोमनाथ का अर्थ है ‘सोम के स्वामी’, जो चंद्रमा के देवता हैं. यह मंदिर इस बात को भी प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि भगवान शिव समस्त सृष्टि के आधार हैं और सभी जीव-जंतुओं के पालनहार हैं.

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिव पुराण, स्कंद पुराण, और अन्य पवित्र ग्रंथों में भी मिलता है. इसे बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान प्राप्त है. मान्यता है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और उनके समस्त पापों का नाश होता है. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भगवान शिव के साथ साथ मां पार्वती की भी कृपा प्राप्त होती है.

सोमनाथ मंदिर की प्रमुख पौराणिक कथा

  • चंद्रमा और दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियां

पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा (सोम) दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों के पति थे. लेकिन इन सब में चंद्रमा को अपनी पत्नी रोहिणी से विशेष स्नेह था, जिससे अन्य 26 पत्नियां खुद को उपेक्षित और अपमानित अनुभव करने लगीं और उन्होंने चंद्र देव की शिकायत अपने पिता से की. जब यह बात दक्ष प्रजापति को पता चली, तो उनको अपनी 26 पुत्रियों को लेकर बहुत दुख हुआ. उन्होंने चंद्रदेव को समझाने का प्रयास भी किया, लेकिन असफल रहे. तब राजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया कि उनका तेज धीरे-धीरे कमजोर हो जाएगा.

  • चंद्रमा की तपस्या

दक्ष प्रजापति के श्राप के कारण चंद्रमा का तेज कम होने लगा और वे अत्यंत दुखी हो गए. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने ब्रह्मदेव के कहने पर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास तट पर जाकर, शिवलिंग की स्थापना कर उनकी पूजा की, और भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगे. चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और राजा दक्ष के श्राप से मुक्ति प्रदान की और उन्हें अमर होने का वरदान दिया.

  • शिव का नाम “सोमनाथ”

भगवान शिव ने चंद्रमा को आशीर्वाद दिया और कहा कि वे प्रत्येक 15 दिनों में पुनः पूर्णिमा का रूप धारण करेंगे और फिर से क्षीण होंगे. इसके बाद से भगवान शिव को “सोमनाथ” कहा गया, जिसका अर्थ है “सोम (चंद्रमा) के स्वामी”.

  • ज्योतिर्लिंग की स्थापना

कहा जाता है कि श्राप मुक्त होकर चंद्रमा ने भगवान शिव से उनके बनाए हुए शिवलिंग में रहने की प्रार्थना की. भगवान शिव ने चन्द्रमा की प्रार्थना स्वीकार की और उस शिवलिंग में विराजमान हो गए. तभी से इस शिवलिंग को सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा.

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