भोले बाबा पर मायावती का आक्रामक रुख, क्यों ले रहीं इतना बड़ा रिस्क?

हाथरस हादसे के 4 दिन बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने बाबा साकार हरि पर हमला बोला है. मायावती ने साकार हरि के खिलाफ सख्त एक्शन लेने की मांग की है. मायावती यूपी की पहली राजनेता हैं, जिसने सूरजपाल जाटव उर्फ साकार हरि के खिलाफ बयान दिया है. वो भी ऐसे वक्त में जब यूपी में विधानसभा की 8 सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित है. इन 8 में से कई सीटों पर बाबा साकार हरि का दबदबा है और यहां पर उनके समर्थक जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

बाबा साकार हरि हाथरस हादसे को लेकर सुर्खियों में हैं. आरोप है कि उनके सत्संग के बाद हाथरस के सिकंदराऊ क्षेत्र के फुलरई में भगदड़ मच गई, जिसके कारण 121 लोगों की मौत हो गई. यूपी पुलिस ने मामले में न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं.

सूरजपाल जाटव पर मायावती ने क्या लिखा है?

हादसे के 4 दिन बाद मायावती ने नारायण हरि साकार उर्फ भोले बाबा को लेकर तल्ख टिप्पणी की है. मायावती ने लिखा- देश में गरीबों, दलितों व पीड़ितों को अपनी गरीबी व अन्य सभी दुःखों को दूर करने के लिए हाथरस के भोले बाबा जैसे अनेकों और बाबाओं के अन्धविश्वास व पाखण्डवाद के बहकावे में आकर अपने दुःख व पीड़ा को और नहीं बढ़ाना चाहिए. मैं सबको यही सलाह देना चाहती हूं.

मायावती ने आगे लिखा- इन तबकों को अपना दुख दूर करने के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बताए हुए रास्तों पर चलकर इन्हें सत्ता खुद अपने हाथों में लेकर अपनी तकदीर खुद बदलनी होगी. इसके लिए इन्हें अपनी पार्टी बीएसपी से ही जुड़ना होगा. तभी ये लोग हाथरस जैसे काण्डों से बच सकते हैं.

बसपा सुप्रीमो ने बाबा पर कार्रवाई की भी मांग की है. उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा है- हाथरस कांड में बाबा भोले सहित अन्य जो भी दोषी हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. ऐसे अन्य और बाबाओं के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी जरूरी. इस मामले में सरकार को अपने राजनैतिक स्वार्थ में ढ़ीला नहीं पड़ना चाहिए.

सपा, कांग्रेस और बीजेपी ने साधी चुप्पी

यूपी की सत्ताधारी पार्टी हो या विपक्षी, हाथरस हादसे पर अब तक किसी ने भी बाबा के खिलाफ खुलकर मोर्चा नहीं खोला है. इन पार्टियों का फोकस मुआवजे और पीड़ित को हक दिलाने पर ही रहा है.

सपा ने प्रशासनिक लापरवाही को जरूर मुद्दा बनाया है, लेकिन उसने बाबा के खिलाफ कोई बड़ी टिप्पणी नहीं की है. उलटे पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने बाबा को बेकसूर बता दिया. इसकी 2 बड़ी वजहे हैं-

1. मैनपुरी से लेकर आगरा तक के इलाकों में बाबा के भारी तादाद में समर्थक हैं. इन इलाकों में लोकसभा की 10 और विधानसभा की कम के कम 50 सीटें हैं.

2. बाबा दलित समुदाय से आते हैं और उनके अधिकांश समर्थक भी इसी जाति के हैं. यूपी में दलित समुदाय की आबादी 22 प्रतिशत है, जिसमें 13 प्रतिशत जाटव हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि फिर मायावती ने बाबा के खिलाफ मोर्चा खोलकर इतना बड़ा रिस्क क्यों लिया है?

मायावती के पास खोने के लिए कुछ नहीं बचा है

1990 से लेकर 2022 तक पश्चिमी यूपी और आलू बेल्ट के इस इलाके में बीएसपी का मजबूत दबदबा था, लेकिन 2022 के बाद इन इलाकों से बीएसपी बुरी तरह हार रही है. यूपी में वर्तमान में बीएसपी के सिर्फ एक विधायक हैं, जबकि उसके सांसदों की संख्या शून्य पर पहुंच गई है.

मायावती की पार्टी से जो एक विधायक चुनाव जीते हैं, वो भी पूर्वांचल इलाके से आते हैं. ऐसे में मायावती के पास इन इलाकों में खोने के लिए कुछ विशेष बचा नहीं है. मायावती बाबा पर निशाना साधकर अपने पुराने लॉ एंड ऑर्डर वाली इमेज से लोगों के बीच पहुंचने की कोशिश कर रही हैं.

कोर वोटर्स को फिर से वापस लाने की कवायद

2019 के बाद मायावती का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी को सिर्फ 9 प्रतिशत मत मिले हैं. आम तौर पर मायावती का वोट 18-20 प्रतिशत के आसपास रहा है.

मायावती का बाबा पर निशाना साधने को इस नजरिए से भी देखा जा रहा है. मायावती ने अपने बयान में बीएसपी को दलितों की पार्टी बताई है और लोगों से अपील की है कि उनके दुख को कोई बाबा नहीं, बल्कि सरकार ही खत्म कर सकेगा.

मायावती ने दलित मतदाताओं से बीएसपी के साथ आने की भी अपील की है. सीएसडीएस के मुताबिक लोकसभा चुनाव में मायावती को जाटव समुदाय का 44 प्रतिशत और गैर-जाटव दलित का 15 प्रतिशत वोट मिला है.

यूपी में दलितों की आबादी करीब 22 प्रतिशत है. इनमें जाटवों की संख्या 13 प्रतिशत है. यूपी में लोकसभा की 17 और विधानसभा की 86 सीटें दलितों के लिए आरक्षित है.

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