कैसे शुरू हो हजार बिस्तर अस्पताल की धर्मशाला, ‘नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी’

 एक हजार बिस्तर के अस्पताल का भवन 400 करोड़ में बना, इसमें भर्ती मरीजों के स्वजन के ठहरने के लिए बनी 250 बेड की धर्मशाला भी बनी। अस्पताल तो शुरू हो गया लेकिन धर्मशाला के ताले खुलने का इंतजार दो साल से अटेंडेंट कर रहे हैं।

इसे शुरू करने के लिए प्रबंधन को एक करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट नहीं मिल पाया है। यहां ‘नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी’ मुहावरा पूरी तरह फिट बैठ रहा है। ये धर्मशाला जब से बनी है, तबसे इसमें ताला ही पड़ा है। बजट के अभाव में फर्नीचर व अन्य सामान की खरीदी नहीं होने से मरीज के स्वजन को धर्मशाला का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

 

तत्कालीन संभाग आयुक्त दीपक सिंह ने एक हजार बिस्तर अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों व उनके स्वजन की सुविधा के बनी धर्मशाला के 32 कमरों में सेवाएं देना शुरू करने के निर्देश दिए थे। 16 कमरें जिला रेडक्रास सोसाइटी व इतने ही कमरों में फर्नीचर सहित अन्य व्यवस्थाएं मेडिकल कालेज के आटोनोमस फंड से करने को कहा गया था, लेकिन न रेडक्रास सोसाइटी ने एक कदम आगे बढ़ाया न ही मेडिकल कालेज के आटोनोमस से फंड मिला। ऐसे में धर्मशाला खुलने की आस टूट गई।

धर्मशाला शुरू करने का मामला जीआरएमसी की ईसी बैठक में भी उठा। इस दौरान भी संभाग आयुक्त ने धर्मशाला को शुरू करने के लिए एक कमेटी का गठन का आवश्यक सुविधाओं की सूची बनाकर खर्च होने वाली राशि का प्रस्ताव बनाने के निर्देश दिए थे। कमेटी ने करीब एक करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि का बजट सुविधाएं जुटाने के लिए खर्च होना पाया। प्रस्ताव जीआरएमसी तक पहुंचा और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

 

धर्मशाला निर्माण के दौरान डीपीआर में शामिल नहीं था फर्नीचर

 

 

धर्मशाला निर्माण कार्य के दौरान डीपीआर में धर्मशाला में फर्नीचर लगाना शामिल नहीं था, इसलिए फर्नीचर नहीं लग सका। यह काम अस्पताल प्रबंधन को कराना था। लेकिन जिम्मेदार बजट का रोना रोकर फर्नीचर नहीं लगवा पाए। फर्नीचर के लिए बजट के लिए प्रस्ताव भी तैयार हुए, लेकिन दो साल से सिवाए इंतजार के कुछ हासिल नहीं हुआ। इससे अस्पताल में भर्ती रहने वाले मरीजों के स्वजन धर्मशाला की सुविधाओं से वंचित रहे।

 

सर्द रात बिना धर्मशाला के काट दीं अब गर्मी का झेल रहे सितम

 

 

अस्पताल प्रबंधन की अनदेखी के चलते अस्पताल में भर्ती मरीजों के स्वजन ने धर्मशाला के ताले खुलने के इंतजार में सर्दी का सीजन अस्पताल परिसर में रात गुजार कर बिता दिया। अब वह गर्मी का सितम झेल रहे हैं। लेकिन अस्पताल प्रबंधन अब तक धर्मशाला को खोलकर स्वजन को राहत पहुंचाने में सफल नहीं हो सका है। बजट स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजने की बात कहकर प्रबंधन हर बार पल्ला झाड़ लेता है।

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