चाचा से हार का हिसाब चुकता कर पाएगी भतीजी? पाटिलपुत्र में मीसा के सामने रामकृपाल की हैट्रिक रोकने की चुनौती

लोकसभा चुनाव अपने आखिरी चरण में पहुंच रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी सीट से लेकर कई हाई प्रोफाइल सीटों पर 1 जून को वोटिंग होनी है. इन्हीं में से एक बिहार की पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. इस सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मौजूदा सांसद रामकृपाल यादव लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की उम्मीदवार मीसा भारती हैं. अब सवाल खड़ा हो रहा है क्या मीसा भारती “चाचा” से हार का हिसाब चुकता कर पाएंगी या फिर रामकृपाल यादव हैट्रिक मारकर इतिहास रचेंगे?

पाटलिपुत्र लोकसभा सीट पटना जिले के अंतर्गत आती है. इसमें छह विधानसभा क्षेत्र लगते हैं, जिसमें दानापुर, मनेर, फुलवारी (एससी), मसौढ़ी (एससी), पालीगंज और बिक्रम शामिल हैं. ये सीट 2008 में परिसीमन के बाद सामने आई और यहां पहली बार 2009 में लोकसभा के चुनाव करवाए गए. इस बार कहा जा रहा है कि बीजेपी और आरजेडी के बीच आमने-सामने की टक्कर है. बीजेपी से मौजूदा सांसद रामकृपाल यादव लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और लालू यादव की बेटी मीसा भारती रामकृपाल से 2014 और 2019 के चुनाव में हार चुकी हैं और इस बार जीत की उम्मीद लगाए बैठी हैं.

मीसा लगातार दो बार करीब 40 हजार वोटों से हारीं

पाटलिपुत्र सीट से आरजेडी ने मीसा भारती को पहली बार 2014 के चुनाव में टिकट दिया था. पार्टी मानकर चल रही थी कि उसे जीत हासिल होगी, लेकिन मोदी लहर के आगे मीसा भारती टिक नहीं पाईं और उन्हें 40 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी के रामकृपाल यादव को 3,83,262 (39.16 फीसदी) वोट मिले थे, जबकि मीसा के खाते में 3,42,940 (35.04 फीसदी) वोट गए. कमोवेश हार-जीत का यही आंकड़ा 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था. रामकृपाल यादव को 509,557 (47.28 फीसदी) को वोट मिले और मीसा की झोली में 4,70,236 (43.63 फीसदी) वोट गए. आरजेडी नेता को 39 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.

इस सीट पर पहली बार आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी अपना भाग्य आजमा चुके हैं, लेकिन उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी. उन्हें 2009 के चुनाव में जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव ने साढ़े 23 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. लालू को 2,45,757 वोट मिले थे, जबकि जेडीयू 2,69,298 वोट हासिल करने में सफल हो गई थी. जेडीयू में रहे रंजन प्रसाद यादव ने भले ही लालू यादव को हरा दिया हो, लेकिन कहा जा रहा है कि उनके रिश्ते लालू यादव से हमेशा अच्छे रहे हैं. यही वजह रही है कि उन्होंने हाल ही में आरजेडी का दामन थाम लिया.

मीसा के लिए लालू परिवार ने झोंकी पूरी ताकत

पाटलिपुत्र लोकसभा सीट का जब से सृजन हुआ है तब से आरजेडी यहां संघर्ष करती हुई नजर आई है. इस बार मीसा भारती ने अपने क्षेत्र में जमकर प्रचार किया है. उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है. मीसा के लिए पूरा लालू परिवार चुनावी मैदान में पसीना बहाते नजर आया है. लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव सहित आरजेडी के दिग्गज नेता मतदाताओं तक पहुंच बनाने के लिए प्रचार करने उतरे. इस बार चुनावी मुकाबला इस वजह से भी दिलचस्प हो गया है क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के फारुख रजा भी ताल ठोक रहे हैं.

वहीं, सूबे में रामकृपाल यादव एक बड़े नेता हैं. वह मेयर का चुनाव लड़ते हुए संसद तक पहुंचे. एक जमाने में वह लालू यादव के सबसे करीबी नेताओं में शामिल रहे हैं. यह कारण है कि उन्हें हमेशा मीसा भारती चाचा कहकर ही संबोधित करती रही हैं. रामकृपाल आरजेडी के टिकट पर पटना सीट से 1993, 1996 और 2004 में लोकसभा चुनाव जीते. इसके बाद लोकसभा चुनाव 2014 से पहले वह बीजेपी में शामिल हो गए. इसके बाद बीजेपी ने उन्हें पाटलिपुत्र सीट से लड़ाया.

क्या मीसा के लिए MY फैक्टर करेगा काम?

पाटलिपुत्र सीट पर करीब 4 लाख यादव और 1.5 लाख मुस्लिम वोटर हैं, जोकि आरजेडी का कोर वोट बैंक माना जाता है. हालांकि इस बार तस्वीर अलग नजर आ रही है. आरजेडी के MY (मुस्लिम-यादव) फैक्टर के पूरी तरह से एकजुट होने की संभावना कम ही है. इसका एक कारण ये है कि मीसा भारती के चाचा के खाते में भी यादव वोट जा सकते हैं और एआईएमआईएम ने भी यहां अपना उम्मीदवार खड़ा किया है, जिससे मुस्लिम वोटों के बंटने की संभावना बढ़ी है. फारुख रजा वही नेता हैं जो एक बार आरजेडी की यूथ विंग में महासचिव का पद संभाल चुके हैं और 2019 के चुनाव में मीसा भारती के लिए मुस्लिम वोट साधने का काम किया था.

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