हार का डर या रणनीति का हिस्सा…राहुल ने अमेठी के बजाय रायबरेली को क्यों चुना?

उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के दुर्ग माने जाने वाली रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर आखिरकार कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. रायबरेली सीट से राहुल गांधी और अमेठी सीट से किशोरी लाल शर्मा (केएल शर्मा) को टिकट दिया है. दोनों नेता शुक्रवार को नामांकन दाखिल करेंगे, जिसकी तैयारी भी पूरी हो गई है. प्रियंका गांधी चुनाव नहीं लड़ेंगी. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर क्या वजह है कि राहुल गांधी ने अमेठी के बजाय रायबरेली सीट को चुनाव लड़ने के लिए चुना?

अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र गांधी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को मात देकर अपना कब्जा जमाया था. स्मृति ईरानी फिर से चुनावी मैदान में है, जिनके खिलाफ कांग्रेस ने राहुल गांधी के बजाय किशोरी लाल शर्मा को उतारा है. राहुल गांधी अब अपनी मां सोनिया गांधी और दादी इंदिरा गांधी की सीट से चुनावी मैदान में किस्मत आजमाएंगे. राहुल गांधी को अमेठी के बजाय रायबरेली से उतारना कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है.

अमेठी छोड़ना डर या रणनीति का हिस्सा

राहुल गांधी का अमेठी सीट छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे चुनाव हारने का डर नहीं बल्कि भाजपा की रणनीति को फेल करने की मंशा मानी जा रही है. 2024 का चुनावी माहौल पूरी तरह से मोदी बनाम राहुल के इर्द-गिर्द नजर आ रहा है. ऐसे में राहुल गांधी अगर अमेठी सीट से चुनावी मैदान में उतरते तो यह नैरेटिव बदलकर राहुल बनाम ईरानी हो जाता. कांग्रेस ने ऐसा नैरेटिव नहीं बनने देने के लिए ही राहुल गांधी को अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया.

प्रियंका गांधी के चुनाव न लड़ने की वजह

राहुल गांधी अगर अमेठी से चुनावी मैदान में उतरते तो फिर प्रियंका गांधी को मजबूरन रायबरेली सीट से प्रत्याशी बनना पड़ता. प्रियंका गांधी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक नहीं थी. इसके पीछे वजह यह थी कि प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने से बीजेपी के हाथों कांग्रेस को परिवारवाद के मुद्दे पर घेरने का मौका मिल जाता. इतना ही नहीं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों ही चुनाव लड़ते तो फिर उनको अपनी-अपनी सीटों पर व्यस्त रहना पड़ जाता. ऐसे में देश के अन्य भागों में भी कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान के प्रभावित होने की संभावना थी. राहुल एवं प्रियंका द्वारा अपने क्षेत्रों में कम समय देने पर क्षेत्र के प्रति उदासीनता के आरोप लगते.

राहुल गांधी को रायबरेली से उतारना रणनीति

कांग्रेस ने रणनीति के तहत राहुल गांधी को रायबरेली से उतारा है ताकि उन पर प्रदेश छोड़कर भागने के आरोप न लग सकें और प्रियंका भी अन्य क्षेत्रों में प्रचार के लिए उपलब्ध रहें. प्रियंका गांधी के अब प्रत्याशी न होने पर कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोपों को गाढ़ा करना भी बीजेपी और पीएम मोदी के लिए मुश्किल होगा. इसीलिए राहुल गांधी को अमेठी के बजाय रायबरेली सीट से उतारा गया है ताकि चुनाव में बीजेपी को किसी तरह का कोई मौका न मिल सके.

स्मृति ईरानी चुनावी मैदान में

अमेठी लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर स्मृति ईरानी एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं. पिछले चार महीने से उन्होंने डेरा जमा रखा है. अगर स्मृति ईरानी के खिलाफ राहुल गांधी अमेठी से चुनाव मैदान में उतरते और किसी कारण दोबारा से चुनाव हार जाते तो कांग्रेस के साथ-साथ गांधी परिवार के लिए इसका संदेश राजनीतिक तौर पर बहुत गलत जाता. इससे उत्तर भारत की राजनीति में राहुल के लिए सियासी राह काफी मुश्किल हो जाती. माना जा रहा है कि इसी किरकिर से बचने के लिए अमेठी सीट के बजाय रायबरेली सीट को चुना गया है.

हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते हैं कि राहुल गांधी इस बार अमेठी से चुनाव लड़ते हैं तो जीत सकते हैं, लेकिन उनके न लड़ने के पीछे दूसरा बड़ा कारण यह है कि स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव लड़कर अब उन्हें बहुत ज्यादा सियासी अहमियत नहीं देना चाहते हैं. स्मृति ईरानी को राजनीतिक पहचान सिर्फ इसीलिए मिली है, क्योंकि अमेठी में राहुल गांधी को चुनाव में हराया है. राहुल अगर अब दोबारा से चुनाव लड़ते तो उससे स्मृति ईरानी को बहुत तवज्जो मिलती. अगर वो चुनाव जीतने में सफल रहती हैं तो उनका सियासी कद गांधी परिवार के सामांतर हो जाएगा. इसीलिए गांधी परिवार ने अब खुद लड़ने के बजाय अपने करीबी किशोरी लाल शर्मा को उतारा है.

कांग्रेस का अमेठी-रायबरेली से रिश्ता

बता दें कि कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता अमेठी और रायबरेली के साथ काफी पहले जुड़ गया था. रायबरेली के साथ नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता चार पीढ़ियों का है और वो आजादी से पहले का है, जबकि अमेठी सीट से गांधी परिवार का लगाव 1977 में हुआ है, जब संजय गांधी चुनाव लड़े. रायबरेली से सोनिया गांधी की सास इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी चुनाव लड़े और जीतकर सांसद बने थे, उसके बाद से इंदिरा गांधी ने अमेठी सीट को अपनी कर्मभूमि बनाई. इंदिरा गांधी ने 1967 के आम चुनावों में यहां से जीत हासिल की. इसके बाद 1971 और 1980 में सांसद बनी. 2004 से सोनिया गांधी रायबरेली सीट से सांसद रही.

रायबरेली लोकसभा सीट के साथ मोतीलाल नेहरू से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी से नाता जुड़ा हुआ है. आजादी से पूर्व किसान आंदोलन के दौरान 7 जनवरी 1921 को मोतीलाल नेहरू ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर पंडित जवाहर लाल नेहरू को भेजा था. ऐसे ही 8 अप्रैल 1930 के यूपी में दांडी यात्रा के लिए रायबरेली को चुना गया और उस समय जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष थे, उन्होंने अपने पिता मोतीलाल नेहरू को रायबरेली भेजा था. इसके बाद से नेहरू-गांधी परिवार का नाता रायबरेली सीट से रहा है. इसीलिए राहुल गांधी को रायबरेली और अमेठी में से किसी एक को चुनने की बात आई तो रायबरेली को उन्होंने चुना.

रायबरेली से गांधी परिवार का चार पीड़ियों का नाता

गांधी परिवार रायबरेली सीट को नहीं छोड़ना चाहता है, क्योंकि यहां से उसका चार पीड़ियों का नाता है. अमेठी सीट 1977 में बनी और पहली बार इसी चुनाव में संजय गांधी मैदान में उतरे, लेकिन हार गए. इसके बाद 1980 में जीतने में कामयाब रहे, उसके बाद से राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी चुनाव मैदान में उतरे. राजीव और सोनिया अमेठी में अजेय रहे, लेकिन राहुल गांधी लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद 2019 में हार गए. 2024 में सोनिया गांधी लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं, क्योंकि राज्यसभा सांसद है और प्रियंका चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं है. ऐसे में राहुल गांधी वायनाड सीट से चुनाव लड़ ही रहे है, लेकिन अमेठी और रायबरेली में से किसी एक सीट पर चुनाव लड़ने की बात आई तो रायबरेली उनके लिए चुनी गई.

गांधी परिवार के लिए रायबरेली ज्यादा अहम

राहुल गांधी वायनाड सीट से लड़ रहे हैं, जहां से उनका जीतना तय माना जा रहा है. राहुल गांधी पर कांग्रेस की परंपरागत सीट रही रायबरेली और अमेठी सीट में किसी एक पर चुनाव लड़ने का दबाव था. ऐसे में राहुल ने साफ कर दिया था कि चुनाव लड़ने और हार से डर नहीं रहे हैं, लेकिन अगर चुनाव वो जीतते हैं तो वायनाड सीट नहीं छोड़ेंगे. ऐसे में कांग्रेस ने तय किया अमेठी के बजाय रायबरेली सीट से चुनावी मैदान में उतारा जाए, क्योंकि रायबरेली की अहमियत गांधी परिवार के लिए अमेठी से ज्यादा है. इसीलिए राहुल गांधी को अमेठी के बजाय रायबरेली सीट से प्रत्याशी बनाया गया है और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को टिकट दिया है.

वायनाड सीट गांधी के लिए जरूरी

अमेठी के बजाय रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने के पीछे रणनीति यह भी है कि राहुल गांधी दोनों ही सीटों से जीतने की स्थिति में एक सीट से इस्तीफा देना होगा. राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के बाद दोनों सीटों से जीतने में सफल रहे तो रायबरेली या वायनाड सीट छोड़ते हैं तो फिर वहां से वैकल्पिक उम्मीदवार के रूप में प्रियंका गांधी उपलब्ध रहेंगी. राहुल गांधी जिस तरह वायनाड सीट किसी भी सूरत में नहीं छोड़ना चाहते हैं तो माना जा रहा है कि रायबरेली सीट छोड़ेंगे. इस स्थिति में प्रियंका गांधी उपचुनाव लड़कर सांसद बन सकती है.

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