गांव की सुख – शांति के लिए कांटों की शय्या पर लेटते हैं भगत, शरीर में पिरोते हैं नाड़ा

भैंसदेही तहसील अंतर्गत आने वाले ग्राम मालेगांव के प्रसिद्ध माता मंदिर प्रांगण में चैत्र मेले का आयोजन सोमवार किया गया। मेले में मन्नत का भार उतारने के लिए भगत बने श्रद्धालुओं ने कांटों की शय्या पर लेटकर आस्था का प्रदर्शन किया। कोरकू समाज के खुशराज भूरी – भाकलू ढिकू दहीकर ने इस परंपरा की जानकारी देते हुए बताया कि गांव की सुख और शांति के लिए हरे बेर की कांटों की झाड़ी के नीचे माता के भगत बनकर बैठते हैं। यह प्राचीन परंपरा उनकी आस्था को दिखाती है।

इस परंपरा में शरीर में सुई से नाड़ा पिरोने और गाड़ी खींचने की सदियों पुरानी परंपरा है। उन्होंने बताया गांव की सुख-समृद्धि एवं अमन – चैन के लिये मुख्य पंचायती भगत के अलावा जिन श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी हो जाती है वे भी मन्नत का भार उतारने के लिये भगत बनकर ढोल बाजे – नगाड़े पर माता के जयकारे और उदो उदो के नारों के साथ मनमोहक आस्था एवं श्रद्धा में डूबकर नृत्य करके घर घर जोगवा मांगने की परम्परा को पूरा करते है।

महिलाएं नीम की पत्ती को नाड़े में पिरोकर पूजा पाठ करके पहनती हैं। मुख्य पंचायती भगत पूरे गांव की सुख-समृद्धि और अमन – चैन के लिये मुख्य चौराहे पर हरे बेर के नुकीले कांटों की सय्या पर माता शक्ति से लोटांगन करता है। उसके बाद गांव में लोहारी का काम करने वाला कुशल कारीगर मुख्य भगत के शरीर में लोहे की बनी विशेष सुई की नोक से शरीर की चमड़ी में टोचन करके धागा पिरोते हैं। धागा पिरोने के बाद उस स्थान पर लोनी मही और अन्य एंटीबायोटिक  सामग्री मिलाकर बार-बार लगाते है ताकि किसी प्रकार का नुकसान न हो।

दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

बेर के हरे कांटों पर भगत द्वारा लेट कर लोटांगन करने की परम्परा आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिये दूर – दूर से नाते रिश्तेदारों का विशाल जन सैलाब उमड़ता है। इस परम्परा को गांव के मुख्य। पंचायती भगत गुलाबराव उर्फ खुड्डा साकोम जो कि कोरकू आदिवासी समाज से है बखूबी निर्वहन कर रहे हैं।

 

इसके पूर्व गांव के मुख्य भगत किसना पिपरदे इस परम्परा के वाहक थे। सर्वप्रथम अनुभवी बुजुर्गों के द्वारा मुख्य एवं पंचायती भगत को बेर की हरी-भरी कांटों की झाड़ी से बनायी सेज पर लोटांगन कराया जाता है।

 

चैत्र नवरात्र के अवसर पर गांव में स्थित सभी देवी-देवता माता-माय, खोकली माय, मुठवा देव, काला देव, खेड़ापति, हरदोली माय, महाबीर, सिवाना देव, दैय्यत, महिषासुर, गायकी देव भाण्ड बाबा, राणा देव, काली माई आदि ग्राम देवताओं का वार्षिक पूजन अनिवार्यतः करने की परम्परा है।

 

चैत्र के अवसर पर आटे से बने दीये, सात बेडली अनाज, महुंआ फूल के साथ अगरबत्ती, कपूर बट्टी, हल्दी, कुमकुम आदि के साथ पुरी का नैवेद्य भेंट करने का विशेष महत्व है। मन्नत पूर्ण होने के बाद घर के किसी एक व्यक्ति को भगत बनाया जाता है अथवा किसी एक महिला को नीम पहनाकर माता-माय का पूजन करके भार उतारने की परम्परा है।

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