इंदौर में 20 से अधिक नशा मुक्ति केंद्रों के जरिए लड़ी जा रही नशे से लड़ाई

इंदौर। संगत का असर किसी को नहीं छोड़ता। अच्छी संगत हो तो व्यक्ति का जीवन संवर जाता है और बुरी संगत हो तो जीवन बर्बाद हो जाता है। यह बात नशा करने वालों पर बिल्कुल फिट बैठती है। बुरे दोस्तों की संगत में आकर अब युवा नशे की गिरफ्त में आने लगे हैं। यही कारण है कि नशा मुक्ति केंद्रों पर हर साल 20 प्रतिशत तक संख्या बढ़ रही है। इंदौर में 20 नशा मुक्ति केंद्रों पर युवाओं को नशे से बाहर लाने की कोशिश की जा रही है।

गौरतलब है कि इनमें 15 वर्ष के किशोर और कालेज में पढ़ने वाली युवतियां भी शामिल हैं। नशे में डूब रहे ऐसे युवाओं को अब इस कुचक्र से बाहर लाने के लिए नए सिरे से प्रयास किए जा रहे हैं। नशा मुक्ति केंद्रों पर इन लोगों को 45-45 दिनों के दो सत्र दिए जा रहे हैं। यहां इन्हें थैरेपी, काउंसलिंग, डाइट संबंधी सलाह, योग, मनोरोग चिकित्सक आदि की सेवाएं और सुविधाएं दी जा रही हैं। इनके माध्यम से लोगों को नशे की लत से दूर किया जा रहा है।

आने लगे बेहतर परिणाम

इंदौर में 20 नशा मुक्ति केंद्र हैं, जिनमें लोगों को नशे की गिरफ्त से बाहर लाने का काम किया जा रहा है। अच्छी बात है कि इन प्रयासों का काफी अच्छा परिणाम भी सामने आ रहा है। अधिकांश लोग नशा मुक्ति केंद्र आने के बाद नशे से दूरी बना रहे हैं। कई लोगों को यहां स्वजन छोड़कर जाते हैं, जबकि कई लोग स्वयं ही यहां आते हैं। नशा मुक्ति केंद्र संचालकों ने बताया कि शराब के साथ ही अब एमडी ड्रग्स, ब्राउन शुगर, स्मैक, अफीम, चरस, गोगो जैसे नशे की लत करने वाले लोग भी यहां भर्ती हो रहे हैं और इस लत को छोड़ने में सफल हो रहे हैं।

दोस्त बनकर इलाज कर रहे विशेषज्ञ डाक्टर

नशे से पीड़ित मरीजों का उपचार मनोरोग विशेषज्ञ कर रहे हैं। ये बिहेवियर थेरेपी अर्थात व्यवहार विज्ञान का उपयोग करते हैं। ये काउंसलिंग के माध्यम से पीड़ितों के व्यवहार में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं। डाक्टर इनके दोस्त बनकर उन्हें सहज करते हैं और फिर उनका इलाज कर रहे हैं। उन्हें नशे के दुष्परिणाम के बारे में जानकारियां भी दे रहे हैं। इससे 70-80 प्रतिशत लोगों को फायदा हो रहा है।

काउंसलिंग के साथ देते हैं दवाइयां

मनोरोग विशेषज्ञ डा. अभय पालीवाल कहते हैं कि नशा अपने आपमें एक बड़ी समस्या है। इससे मानसिक समस्या भी होने लगती है। 17 से 40 साल तक के लोगों में नशे की लत देखी जा रही है। काउंसलिंग में नशा करने का कारण कमजोर आर्थिक स्थिति, मानसिक समस्या, पारिवारिक कारण, तनाव, नौकरी, शादी, बच्चों की फीस आदि होते हैं। ऐसे लोग नशा करके अपनी समस्या को कुछ देर के लिए भुला देना चाहते हैं, लेकिन इसके गंभीर परिणाम होते हैं। उन्हें घबराहट, बेचैनी के साथ फिर नशे की बार-बार याद आने लगती है। ऐसे लोगों को काउंसलिंग के साथ ही दवाइयां भी दी जाती हैं।

कुछ दिन तक आती है परेशानी

अचानक नशा छोड़ने के कारण कई लोगों को सप्ताहभर परेशानी आती है। सात दिन बाद भी वे लोग वापस इसकी चपेट में आ सकते हैं। उन्हें इनसे बचने की समझाइश दी जाती है। इलाज के बीच नशीले पदार्थ का सेवन करने वाले को भी समझाया जाता है।

यूं जाते हैं नशे की गर्त में

यथार्थ नशा मुक्ति केंद्र के संचालक दीपक दुबे ने बताया, पहले हमें लगता था कि शहर के लोग ही नशे की गिरफ्त में हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी अधिक संख्या में केंद्रों में आने लगे हैं। चिंताजनक है कि किशोरों की संख्या भी अब बढ़ने लगी है। नशे की लत में पड़ चुके युवा काउंसलिंग में अक्सर बताते हैं कि उन्हें दोस्त ने नशे की गर्त में धकेला। दोस्त ने कहा था कि एक बार कर लो, इससे कुछ नहीं होता। जब एक बार किया तो धीरे-धीरे चाव बढ़ा और यह लत बन गया। एक कारण यह भी सामने आया कि कई लोग तनाव को दूर करने के लिए दूसरों को देखकर नशा करने लगते हैं और फिर इसकी गर्त में गिरते चले जाते हैं।

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