इंदौर। सन् 1942 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन के बाद पूरे देश में स्वतंत्रता का संघर्ष जोरों पर था, इंदौर में भी देशभक्ति का ज्वार उफान मार रहा यह वो दौर था, जब इंदौर में क्रांतिकारियों ने न सिर्फ अंग्रेजों से सीधी लड़ाई लड़ी बल्कि गीतों माध्यम से लोगों में देशभक्ति की भावना को बढ़ाया। नईदुनिया के इस खास लेख में आपको इंदौर के स्वतंत्रता संघर्ष के बारे में बताते हैं।
इंदौर में क्रांति के दो केंद्र
अखिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के अध्यक्ष मदन परमालिया बताते हैं कि महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए करो या मरो आंदोलन के बाद इंदौर में दो स्थानों पर क्रांति के केंद्र विकसित हुए, जिसमें एक था सराफा और दूसरा जेल रोड। एक तरफ जहां सराफा बाजार में क्रांतिकारी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रणनीतियां तैयार करते थे तो वहीं जेल रोड स्थित खातीपुरा में अंग्रेजो से सीधी लड़ाई लड़ी जाती थी।
बकौल मदन परमालिया खातीपुरा क्षेत्र दो हिस्सों में बंटा था, जहां एक ओर ब्रिटिश हुकूूमत थी तो वहीं दूसरी ओर होल्कर स्टेट का शासन था। खास बात यह थी कि दोनों की ओर से सैनिक एक-दूसरे की सीमा पार नहीं करते थे, क्रांतिकारी ये बात खूब जानते थे, जिसका फायदा उन्होने जमकर उठाया।
खातीपुरा क्षेत्र में उस दौर में 100-100 फीट लंबे मकान हुआ करते थे, यह मकान होल्कर स्टेट और अंग्रेजों के शासन वाले क्षेत्र को जोड़ते थे, क्रांतिकारी इन्ही मकानों के जरिए अंग्रेजों के क्षेत्र में जाते, वहां गदर मचाते और वापस होलकर स्टेट में लौट आते, ब्रिटिश सैनिकों की मजबूरी थी कि वे होलकर स्टेट में नहीं आ पाते थे। बाल उम्र के क्रांतिकारी श्याम कुमार आजाद और नगेंद्र आजाद जैसे सेनानियों ने अंग्रेजों के शासन में गदर मचाकर ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी थी।
इंदौर में अंग्रेजी राज के प्रति किस तरह का गुस्सा व्याप्त था, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वर्तमान में एमजी रोड स्थित पोस्ट आफिस में क्रांतिकारियों ने आग लगा दी। यह पोस्ट आफिस उन दिनों कच्चा था, जहां आस-पास मौजूद पेड़ और कचरे को इक्ट्ठा कर आग लगाई गई थी।
सराफा में होती थी रणनीति तैयार
जेल रोड पर जहां अंग्रेजो को खुली चुनौती दी जा रही थी तो वहीं सराफा में इस संग्राम की रूप रेखा तैयार हो रही थी। क्रांतिकारियों की मौजूदगी बताने और बैठकों की जानकारी देने के लिए क्रांतिकारियों ने सिंदूर लगे डंडे को संकेतक बनाया था।
दरअसल, क्रांतिकारियों ने सराफा चौराहे पर एक टंकी को काटकर उसमें बालू रेल भर दी और बालू रेत से भरी इस टंकी में एक डंडा गाड़ दिया था, जिसे सिंदूर से रंगा गया था।
सिंदूर से रंगा डंडा इस बात का संकेत था कि यह क्रांतिकारियों का क्षेत्र है और यहां पहले से क्रांतिकारी मौजूद हैं, यदि किसी से क्रांतिकारी से मिलना होता था तो वह यह डंडा हिला देता, यह संकेत मिलने के बाद क्रांतिकारी और उस व्यक्ति की मुलाकात होती थी। साथ ही इस डंडे के संकेत का उपयोग कर क्रांतिकारी मिलते थे और अगली रणनीति बनाते थे।
जेल में भी जारी था संघर्ष
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष खुले तौर पर जारी था तो वहीं जेल में बंद कैदी भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़काए हुए थे। इंदौर में जितने भी कैदियों को पकड़ा जाता था उनमें से अधिकतर कैदियों को महेश्वर की जेल में रखा जाता था। जेल से बाहर जब भी कोई क्रांति होती तो जेल में बंद कैदी भी अंग्रेजो के खिलाफ बगावत शुरू कर देते। कैदी जेल का दरवाजा तोड़कर जेल के बाहर चले जाते, वहां सत्याग्रह करते और वापस जेल लौट आते।
मालवी गीतों जरिए किया संघर्ष के लिए प्रेरित
इंदौर में मालवी गीतों के माध्यम से भी लोगों को आजादी की जंग के लिए प्रेरित किया जा रहा था। इंदौर के नत्थू सिंह उर्फ नरेंद्र सिंह तोमर प्रसिद्ध मालवी कवि थे। उन दिनों सुभाष चौक पर ही बड़ी सभाएं होती थी। उन सभाओं में नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल होते और मालवी में क्रांतिकारी गीत गाकर लोगों को स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरित करते। तोमर प्रसिद्ध मालवी कवि हैं, जिन्होने मालवी भाषा में कई कविताएं भी लिखी है।
अंततः मिली आजादी
15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी दासता से मुक्त हो गया। देशभर के साथ इंदौर में भी इसका जश्न मनाया जा रहा था। इस दिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभाकर राव हलदुले मस्ताना ने पूरे शहर में मिठाईयां बांटकर इसका जश्न मनाया था।
इंदौर में स्वतंत्रता संग्राम ने इन सेनानियों निभाई भूमिका
- श्याम कुमार आजाद
- नगेंद्र आजाद
- श्री राम आगर
- आनंद मोहन माथुर
- कन्हैयालाल खादीवाला
- भाई नारायण सिंह सपूत
- बाबूलाल पाटौदी
- प्रभाकर राव हल्दुले
- रखबशेनजी बाबेल
- गोपीलाल शर्मा
आजादी के लिए संघर्ष में महिलाओं की भूमिका भी अहम थी। राधाबहन आजाद और लीलादेवी व्यास ने स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका निभाई थी।
इंदौर के मुख्य रेलवे स्टेशन की दीवार और सेंट्रल जेल में बने शिलालेख में इंदाैर के सैकड़ों क्रांतिकारियों के नाम लिखे गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक इंदौर के करीब 772 सेनानियों ने अंग्रेजाें के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ी थी।
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