MP में चीता परियोजना के लिए मध्य प्रदेश के वन अधिकारी नहीं ले रहे विशेषज्ञों की सलाह सुप्रीम कोर्ट में भेजा पत्र

भोपाल।दक्षिण अफ्रीका के वन्यजीव विशेषज्ञ प्रो़ एड्रियन टार्डिफ और नामीबिया की डा़ लारी मार्कर ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) एवं वन विभाग के चीता प्रबंधन परियोजना और वन अधिकारियों के दावों की कलई खोल दी है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय को लिखे पत्र में साफ कहा है कि चीता परियोजना में भारत और मध्य प्रदेश के वन अधिकारी विशेषज्ञों की सलाह नहीं ले रहे हैं। उनकी विशेषज्ञता की अनदेखी कर रहे हैं। उन्हें चीते लाने तक सीमित कर दिया गया है। उनसे किसी भी घटना-दुर्घटना या चीतों के इलाज को लेकर कोई सलाह नहीं ली जा रही है, बल्कि घटनाओं की सूचना तक नहीं दी जा रही है।

विशेषज्ञों ने साफ कहा है कि परियोजना की दीर्घकालीन सफलता के लिए चीतों को दूसरे स्थान पर शिफ्ट करना जरूरी हो गया है। वर्तमान परिस्थिति में गांधीसागर अभयारण्य को तैयार किए जाने का इंतजार नहीं किया जा सकता है। पूरी तरह से उपयुक्त राजस्थान के मुकुंदरा नेशनल पार्क में शिफ्ट करने का निर्णय लिया जा सकता है। इस पर विचार करना चाहिए।

यहां यह बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने भी राजनीतिक परिस्थितियों को दरकिनार कर चीतों की शिफ्टिंग करने का निर्देश दिया था। चीतों के मृत्यु के बाद की परिस्थितियों का स्मरण करें तो यह बात अब साफ हो जाती है कि चीता प्रबंधन को लेकर एनटीसीए और मध्य प्रदेश के वन अधिकारी मनमानी और गुमराह करते रहे।

प्रत्येक चीते की मौत के बाद वह मीडिया से तो यह कहते रहे कि अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से इलाज और प्रबंधन को लेकर सलाह ली जा रही है, पर परियोजना से जुड़े विशेषज्ञों से बात तक नहीं की। विशेषज्ञों ने साफ कहा है कि यह बात जल्दी पता चल जाती कि कालर आईडी की रगड़ से चीतों की गर्दन में घाव हो रहे हैं और कीड़े पड़ रहे हैं, तो चीतों को बचाया जा सकता था।

इसके लिए पर्याप्त पर्यवेक्षण, निगरानी, पशु चिकित्सकों का हस्तक्षेप जरूरी था। उन्होंने ब्रीडिंग के लिए मादा और नर चीतों को एक साथ बाड़े में छोड़ने पर भी आपत्ति जताई है। वे कहते हैं कि चीता प्रबंधन में 30 वर्षों का हमारा ज्ञान है। जिसका लाभ लिया जा सकता था। लापरवाही व मनमानी के संदर्भ में विशेषज्ञों का इशारा परियोजना के संचालक उत्तम शर्मा और पार्क के डीएफओ प्रकाश वर्मा की ओर बताया जा रहा है।

अब भोजन का भी संकट

डा. लारी मार्कर का कहना है कि चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाकर पहली बार भारत की धरती पर बसाने तक कूनो ठीक था, पर पार्क में अब चीतों के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। जब कूनो को परियोजना के लिए चुना गया था, तब भी स्थिति ठीक थी। उसके बाद मध्य प्रदेश को उनके भोजन का इंतजाम करना था, जो नहीं किया और स्थिति बिगड़ती गई। अब कूनो में अधिक भोजन का इंतजाम करने की जरूरत है।

शाकाहारी वन्यप्राणियों की कूनो में शिफ्टिंग करानी होगी। परियोजना में शामिल भारतीय विज्ञानी और प्रबंधक अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं, लेकिन उन्हें चीता प्रबंधन का अनुभव नहीं है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि दक्षिण अफ्रीकी टीम को नजरअंदाज तो किया ही भारत में एक मात्र चीतों के बारे में जानकारी रखने वाले भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विज्ञानी प्रो़ वायवी झाला को भी नजरंदाज कर दिया गया।

पार्क में चीता प्रबंधन के लिए कोई भी प्रशिक्षित नहीं है। कुछ लोगों को मामूली प्रशिक्षण दिया गया है, जो पर्याप्त नहीं है। मार्कर ने कहा है कि पार्क में अब चीतों के इलाज का अनुभव रखने वाले एक पशुचिकित्सक की तुरंत जरूरत है।

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