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तेलंगाना में एक मंदिर ऐसा है जहां करोड़ों रुपए का दान आता है. इस मंदिर का नाम यदागिरिगुट्टा लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी है. यह प्रदेश का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है, जोकि भुवनगिरी जिले में पहाड़ियों के बीच स्थित है. यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार लक्ष्मी नरसिंह स्वामी को समर्पित है. मान्यता है कि इसे वेदगिरि के नाम से जाना जाता था क्योंकि भगवान विष्णु ने सभी 4 वेदों को यहां रखा था. यही वजह है कि हर दिन हजारों की संख्या में भक्त आते हैं.
कार्तिक महीने में लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों की कतारे लगी रहती हैं. कार्तिक के सोमवार को भक्तों ने जमकर दान दिया है, जिससे इसकी आय रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. मंदिर के अधिकारियों का कहना है कि मंदिर के दान में 1 करोड़ 57 हजार रुपए आए हैं. अगर प्रसाद की बात की जाए तो 27 लाख, 43 हजार, 220 रुपए का बिका है.
उन्होंने कहा कि भक्तों की भीड़ को देखते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्था की गई है कि किसी भी कठिनाई का सामना न करना पड़े. चूंकि कार्तिक माह में सोमवार से पहले आने वाले रविवार को अवकाश होता है इसलिए आस-पास के राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. तेलुगु राज्यों के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों से भक्त यदागिरिगुट्टा में पहुंचे.
VIP दर्शन से मंदिर की लगभग 17 लाख हुई कमाई
मंदिर मं सत्यनारायण स्वामी व्रत, बिल्व अर्चन और निज अभिषेक बड़े पैमाने पर किए गए, जबकि सैकड़ों श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर में कार्तिक दीप जलाए. अधिकारियों ने बताया कि मुख्य मंदिर और पाता गुट्टा दोनों जगहों पर आयोजित श्री सत्यनारायण स्वामी व्रत में 1958 जोड़ों ने भाग लिया और टिकटों की बिक्री से 19.58 लाख रुपये की आय हुई. सिर्फ वीआईपी दर्शन टिकटों की बिक्री से 16.95 लाख रुपए की आय हुई.
भारी भीड़ के कारण श्रद्धालुओं को सामान्य कतारों में लगभग चार घंटे और वीआईपी दर्शन के लिए दो घंटे इंतजार करना पड़ा. शिव मंदिर, व्रत मंडप और कार्तिक दीप राधान स्थल भक्तों से खचाखच भरे रहे. मंदिर परिसर शिव केशवनम् के जयघोष से गूंज रहा था. भीड़ के बावजूद मंदिर के कर्मचारियों ने सुचारू व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन सुनिश्चित किया.
लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर की मान्यता
लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर की मान्यता है कि इस जगह पर ऋषि श्रृंग के पुत्र ऋषि यदा ने तपस्या की थी. उन्होंने ये तपस्या भगवान नरसिंह की थी. बताया जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. भगवान ने तपस्या से प्रसन्न होकर 5 अलग-अलग अवतारों में दर्शन दिए थे, जिसमें योगानंद नरसिंह, ज्वाला नरसिंह, उग्र नरसिंह, लक्ष्मी नरसिंह और गंडबेरुंड नरसिंह शामिल हैं. भगवान उनकी तपस्या से बेहद प्रसन्न हुए थे. ऋषि यदा ने भगवान से अनुरोध किया था कि वे इसी पहाड़ी पर विराजमान हो जाएं और आदिवासियों को आशीर्वाद दें. उनके अनुरोध के बाद देवता सुंदर मूर्तियों में बदल गए. उन्होंने वचन दिया कि कलियुग के अंत तक वह इसी जगह रहेंगे. यही वजह है कि इस जगह की पंच नरसिंह क्षेत्र के रूप में भी पूजा की जाती है.